कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि गरमी के मौसम में यानी अप्रैल से जून तक किसान भाई कम खर्च कर के काई वाली खाद यानी नील हरित शैवाल का मदर कल्चर ले कर इस का सफल उत्पादन कर सकते हैं और इसे धान की फसल में डाल कर अच्छी उपज ले सकते हैं.

ऐसे करें तैयार

नील हरित शैवाल जैव उर्वरक खाद तैयार करने के लिए 5 मीटर लंबा, 1 मीटर चौड़ा और आधा फुट गहरा गड्ढा बनाना होता है. इस गड्ढे में मोटी पौलीथिन बिछानी होती है. उस के बाद चारों तरफ से उसे मिट्टी से ढक कर क्यारी बना लें. उस क्यारी में 5 इंच पानी भरते हैं, 5 किलोग्राम खेत की उपजाऊ मिट्टी डालते हैं, 500 ग्राम काई का भोजन सिंगल सुपर फास्फेट खाद डालते हैं. इस में कीड़े न पड़ें, इसलिए इस में 50 ग्राम कार्बोफ्यूरान डालते हैं और इस में सबकुछ अच्छी तरह से मिला देते हैं. इस के  बाद उसे 4 घंटे के लिए छोड़ देते हैं ताकि सबकुछ आसानी से बैठ जाए. उस के बाद नील हरित शैवाल के मदर कल्चर को उस में डाल दें.

इस सारी प्रक्रिया को पूरा करने में एक हफ्ते का समय लगता है. इस के बाद आप की खाद तैयार हो जाती है.

बरतें सावधानी

आप टैंक बनाते समय इस बात का जरूर खयाल रखें कि जहां पर टैंक बना रहे हैं, उस जगह खुली धूप आनी चाहिए. गड्ढे के आसपास किसी बच्चे या जानवर का आनाजाना न हो, क्योंकि उत्पादन टैंक में कार्बोफ्यूरान जहर पड़ा होता है.

अगर गलती से भी इसे जानवर पी लें या घर के छोटे बच्चे अपना हाथ टैंक में डाल दें, दोनों ही हालात में हानिकारक होगा. इसलिए पहले से ही इस की सावधानी बरतनी चाहिए.

बनाने का तरीका

इसे बनाने में आप को एक हफ्ते का ही समय लगेगा. एक हफ्ते बाद टैंक का पानी सूख जाएगा और उस में दूध की मलाई की तरह मोटी परत काई की तरह आ जाएगी. इस तरीके से एक टैंक से आप एक हफ्ते में तकरीबन 6 किलोग्राम नील हरित शैवाल का उत्पादन कर सकते हैं.

इस के इस्तेमाल के लिए किसान धान की रोपाई के 5 दिन बाद इसे साढ़े 12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डाल दें. इस में 25 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट मिला लें या फिर किसी खेत की उपजाऊ मिट्टी को मिला कर डालें.

इस के तमाम फायदे

इस का इस्तेमाल आप के खेतों के लिए काफी मुफीद माना जाता है. पहला फायदा तो यह है कि खेत में जो नमी होती है, उसी के जरीए ये पूरे खेत में फैल जाता है. इस के फैलने से खेतों में जो मौसमी खरपतवार होते हैं, उन की बढ़वार रुक जाती है. नील हरित शैवाल जो वायुमंडल में 78 फीसदी प्राकृतिक नाइट्रोजन होता है, उस को ये जमीन में स्थिर करता है और फसल को नाइट्रोजन उपलब्ध कराता है.

इस के परिणामस्वरूप आप देखेंगे कि प्रति हेक्टेयर 75 किलोग्राम यूरिया की बचत होती है. जो भी यूरिया आप खेत में डालते हैं, उस में 25 फीसदी कम कर के खेत में डालें और इस का सकारात्मक असर देखें.

नील हरित शैवाल जैव उर्वरक खाद के इस्तेमाल से धान में जो सूखी बाली निकलने की दिक्कत होती है, उस में बाली सूखने की समस्या नहीं होती है. जो सूक्ष्म पोषक तत्व होते हैं, जैसे कि जिंक, बोरान, आयरन इन की उपलब्धता भी इस के जरीए बढ़ती है.

इस के इस्तेमाल से सिंचाई भी कम करनी पड़ती है. अगर 3 साल तक लगातार आप काई डालते हैं तो चौथे साल में आप को काई डालने की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि ये अपनेआप पैदा होती है. यही नहीं, अगर आप ने इसे धान की फसल में इस्तेमाल किया है तो रबी की फसल में भी इस का फायदा देखने को मिलेगा.

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