देश के इतिहास में अब एक और नया अध्याय जुड़ गया है. नक्सली हिंसा के लिए कुख्यात बस्तर अब अपनी एक नई पहचान बना रहा है. छत्तीसगढ़ का यह इलाका अब “हर्बल और स्पाइस बास्केट” के रूप में दुनिया का ध्यान अपनी ओर खीँच रहा है. इस बदलाव के नायक हैं किसान वैज्ञानिक डा. राजाराम त्रिपाठी, जिन्होंने काली मिर्च की एक अद्भुत किस्म विकसित कर के पूरे देश को गौरवांवित किया है.
कोंडागांव के रहने वाले डा. राजाराम त्रिपाठी ने सालों की कड़ी मेहनत और शोध से काली मिर्च की ‘मां दंतेश्वरी काली मिर्च-16 (MDBP-16) उन्नत किस्म विकसित की है, जो कम बारिश वाले क्षेत्रों में भी औसत से 4 गुना अधिक उत्पादन देती है. इस प्रजाति को हाल ही में भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान (आईआईएसआर), कोझिकोड, केरल द्वारा मान्यता दी गई है.
इसे भारत सरकार के प्लांट वैरायटी रजिस्ट्रार द्वारा नई दिल्ली में भी पंजीकृत किया गया है. यह काली मिर्च की एकलौती उन्नत किस्म है, जिसे दक्षिणी राज्यों से अलग हट कर छत्तीसगढ़ के बस्तर में सफलतापूर्वक विकसित किया. साथ ही, इसे भारत सरकार ने नई किस्म के रूप में पंजीकरण कर मान्यता भी दे दी है. यह बस्तर और छत्तीसगढ़ के लिए एक बहुत बड़ी गौरवशाली उपलब्धि है.
सपने को सच कर दिया : 100 साल तक उत्पादन देने वाली काली मिर्च
डा. राजाराम त्रिपाठी की इस काली मिर्च को विकसित करने में 30 साल का समय लगा. यह लतावर्गीय पौधा है, जो सागौन, बरगद, पीपल, आम, महुआ और इमली जैसे पेड़ों पर चढ़ा कर उगाई जा सकती है. इन पेड़ों पर उगाई गई काली मिर्च न केवल 4 गुना अधिक उत्पादन देती है, बल्कि क्वालिटी में भी देश की दूसरी प्रजातियों से कहीं बेहतर है. इसलिए बाजार में भी इसे हाथोंहाथ लिया जा रहा है और दूसरी प्रजाति की काली मिर्च की तुलना में इस के दाम भी ज्यादा मिलते हैं.
उन्होंने आगे बताया कि इस किस्म ने सब से बेहतरीन परिणाम आस्ट्रेलियन टीक (सागौन) पर चढ़ कर दिए हैं. खास बात यह है कि यह प्रजाति कम सिंचाई और सूखे क्षेत्रों में भी बिना विशेष देखभाल के पनप सकती है.
मसालों की दुनिया में नई पहचान
कभी हिंसा और संघर्ष से प्रभावित बस्तर अब वैश्विक बाजार में मसालों का केंद्र बनने की ओर अग्रसर है. डा. राजाराम त्रिपाठी का यह भी कहना है कि आज उन की काली मिर्च की किस्म देश के 16 राज्यों और बस्तर के 20 गांवों में उगाई जा रही है. लेकिन सरकारी मान्यता मिलने के बाद इस खेती में और तेजी आने की उम्मीद है.
उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि भारत अपने मसालों के लिए सदियों तक ‘सोने की चिड़िया’ कहलाता था. अगर सरकार और लोग मिल कर मसालों और जड़ीबूटियों पर ध्यान दें, तो भारत फिर से वह गौरव हासिल कर सकता है.
प्रधानमंत्री से मिलेंगे डा. राजाराम त्रिपाठी
अपनी सफलता से उत्साहित डा. राजाराम त्रिपाठी जल्दी ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल कर इस विषय पर मार्गदर्शन चाहते हैं. उन का सपना है कि छत्तीसगढ़ और बस्तर की इस नई पहचान को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मजबूती मिले.
नए साल की शुरुआत में बस्तर से आई यह खबर भारत के हर किसान और कृषि वैज्ञानिक के लिए प्रेरणा है. यह सिर्फ एक काली मिर्च की कहानी नहीं, बल्कि संघर्ष, नवाचार और आत्मनिर्भरता की मिसाल है. 2025 का यह नया अध्याय भारतीय कृषि क्षेत्र को एक नई दिशा देने का वादा करता है.