लखनऊ के अमीनाबाद बाजार में ‘रत्ती के खस्ते’ वाले का नाम काफी मशहूर है. 40 साल पहले उस ने खोमचे में खस्ता के साथ चटपटे आलू बेचने की शुरुआत की थी. 3 से 4 घंटे में ही उस के सारे खस्ता खत्म हो जाते थे. धीरेधीरे उस का यह कारोबार बढ़ गया. जिस जगह वह खस्ता बेचता था, वहीं एक दुकान खरीद ली. अब वहीं पर एक बड़ी बिल्डिंग हो गई है. इस में मिठाइयों के साथसाथ खानपान की एक बड़ी सी दुकान खोल ली. आज भी यहां के ‘रत्ती के खस्ते’ पूरे लखनऊ में मशहूर हैं.
असल में ऐसी दुकानें हर शहर के बाजार में होती हैं. सड़क किनारे खाने की दुकानों में खाने का सामान ताजा, स्वाद से भरपूर और चटपटा होता है. यहां बाजार आने वाले लोग नाश्ते में इस तरह के खाने को पसंद करते हैं. लखनऊ में खस्ते की हजारों दुकानें हैं. ‘रत्ती के खस्ते’ आज भी हर जबान पर हैं.
पूरी और समोसा के बाद खस्ता उत्तर भारत का सब से पसंद किया जाने वाला नाश्ता है. कहीं इसे आलू की सूखी सब्जी के साथ खाते हैं तो कहीं रसेदार सब्जी, छोले के साथ इस का स्वाद लिया जाता है. सुबह के नाश्ते में यह बहुत ही पसंदीदा व्यंजन है.
हर शहर में दुकानों पर भी सुबहसुबह नाश्ते के लिए गरमागरम खस्ता तैयार किया जाता है. यह उड़द की दाल भर कर भी बनाया जाता है. आलू की सूखी सब्जी, मिर्च और चटनी के साथ इस को खाया जाता है. 2 से 4 खस्ता अच्छाखासा पेट भर देते हैं. कई जगहों पर इसे जलेबी के साथ भी खाया जाता है. खस्ता और जलेबी का खाने में चोलीदामन वाला साथ होता है.
शहरों से ले कर छोटे बाजारों तक में खस्ता एक अच्छे रोजगार की तरह होता है. इस के कारोबार में मुनाफा भरपूर है.
छोटीबड़ी हर दुकान में यह खाने को मिल जाता है. 20 रुपए से ले कर 35 रुपए प्रति प्लेट तक में यह मिलता है. एक प्लेट में 2 खस्ता और सब्जी होती है. कई दुकानों में इस के साथ मीठी या तीखी चटनी भी होती है और कुछ जगहों पर केवल सब्जी खस्ता.
आमतौर पर शहर में इस की कुछ खास दुकानें होती हैं जो खस्ता बेचती हैं. आमतौर पर ये दुकानें बहुत छोटे स्तर पर ही खोली जाती हैं. इस से साफ लगता है कि कम बजट में खस्ता बेचने की दुकान खोली जा सकती है. इस में मुनाफा भी भरपूर होता है. औसतन 50 फीसदी की बचत हो जाती है. इस वजह से खस्ता बेचना मुनाफे का सौदा होता है. इस के लिए सड़क किनारे छोटी सी जगह पर इस की शुरुआत की जा सकती है.
जरूरत है कि आप का बनाया गया खस्ता खाने वाले को पसंद आ जाए. इस तरह की दुकान खोलने में लागत कम आती है. इस वजह से मुनाफा ज्यादा होता है. यह किसी सीजन का मुहताज नहीं, पूरे साल इस की बिक्री होती है.
खस्ता बनाने की विधि
खस्ता बनाने के लिए सब से पहले दाल को 3-4 घंटे के लिए पानी में भिगो दें. दूसरी तरफ मैदे में तेल और नमक डाल कर मिला लें और उसे पानी में नरम गूंध लें और फिर 20 मिनट के लिए ढक कर रख दें.
इस के बाद भीगी हुई दाल को मिक्सी में दरदरा पीस लें. कड़ाही में 2-3 चम्मच तेल डाल कर गरम करें, फिर उस में जीरा, हींग, धनिया पाउडर, सौंफ पाउडर, हरी मिर्च और अदरक डाल कर भून लें. जब वह अच्छी तरह भुन जाए तो उस में पिसी हुई दाल मिला दें और धीरेधीरे चमचे से चलाएं. जब वह भुन कर ब्राउन हो जाए तो उस में हरा धनिया और गरम मसाला मिला कर 2 मिनट और भून लें. अब खस्ता में भरने के लिए दाल की पीठी तैयार है.
खस्ता तलने के लिए कड़ाही में तेल डाल कर गैस पर रख दें. गूंधे हुए मैदे से बराबर के 20 गोले बना लें. एक गोले को चकले पर बेलन से थोड़ा सा बेल कर उस में एक छोटी चम्मच भर कर दाल रख दें. चारों ओर से आटा उठाएं और दाल को बंद कर दें. दाल भरे गोले को हथेली से थोड़ा सा दबा कर चपटा करें और फिर बेलन से कम ताकत लगा कर उसे 3-4 इंच के व्यास में बेल लें.
ध्यान रखें कि वह फटे नहीं. उसे थोड़ा मोटा ही रखें. बेली गई खस्ता को गरम तेल में डालें और पलटपलट कर दोनों ओर से ब्राउन होने तक धीमी या मीडियम गैस पर कुरकुरा तलें, फिर इन्हें कड़ाही से निकाल कर प्लेट में नैपकिन के ऊपर रख लें.
आप एकसाथ 3 या 4 खस्ता एक बार में तल सकते हैं. सभी खस्ता इसी तरह तल कर तैयार कर लें और हरा धनिया की चटनी या आलू सब्जी के साथ खाएं. आलू की सूखी सब्जी के अलावा कहींकहीं रसेदार सब्जी के साथ लोग खाना पसंद करते हैं तो कई जगह पर इसे मटर की सब्जी के साथ भी खाते हैं. सब से ज्यादा चलन आलू की सूखी सब्जी के साथ खाने का है.
जरूरी सामान
खस्ता बनाने के लिए आटे की लोई को सब से पहले तैयार किया जाता है. इस के लिए मैदा 400 ग्राम, रिफाइंड तेल 100 ग्राम, नमक स्वादानुसार.
खस्ता में भरने के लिए पीठी बनाने के लिए धुली उड़द की दाल 70 ग्राम, हींग चुटकीभर, जीरा एकचौथाई चम्मच, धनिया पाउडर एक छोटी चम्मच, सौंफ पाउडर एक छोटी चम्मच, गरम मसाला आधा छोटी चम्मच, हरी मिर्च 2 बारीक कटी हुई, अदरक बारीक कटा हुआ, हरा धनिया 2 चम्मच बारीक कटा हुआ, नमक स्वादानुसार और तलने के लिए तेल.