फसल अवशेष जलाने से निकलने वाले धुएं में मौजूद जहरीली गैसों से इनसान की सेहत पर विपरीत प्रभाव के साथसाथ वायु प्रदूषण का स्तर भी बढ़ता है.

* फसल अवशेष को जलाने से केंचुए, मकड़ी जैसे मित्र कीटों की संख्या कम हो जाती है. वहीं, इस से हानिकारक कीटों का प्राकृतिक नियंत्रण नहीं हो पाता है. नतीजतन, महंगे कीटनाशकों का इस्तेमाल करना बहुत ही आवश्यक हो जाता है.

* फसल अवशेष जलाने से मिट्टी में मौजूद लाभदायक सूक्ष्मजीवों की संख्या व उन के काम करने की क्षमता कम हो जाती है.

* जीवांश पदार्थ की मात्रा कम हो जाने से मिट्टी की उत्पादन क्षमता कम हो जाती है.

फसल अवशेषों को खेत की मिट्टी में मिलाने के लाभ

* जैविक कार्बन की मात्रा बढ़ती है. फसल अवशेष से बने खाद में पोषक तत्त्वों का भंडार होता है. इस से भूमि की उर्वराशक्ति बढ़ने से फसलों की पैदावार बढ़ती है और फसल को पोषक तत्त्व अधिक मात्रा में मिलते हैं.

* भूमि में नमी बनी रहती है.

* भूमि में खरपतवारों के अंकुरण व बढ़वार में कमी होती है.

* फसल अवशेष भूमि के तापमान को बनाए रखते हैं. गरमियों में छायांकन प्रभाव के कारण तापमान कम होता है और सर्दियों में गरमी का प्रवाह ऊपर की तरफ कम होता है, जिस से तापमान बढ़ता है.

* मिट्टी की ऊपरी सतह पर छेड़छाड़ न होने के कारण केंचुए आदि सूक्ष्मजीवों की क्रियाशीलता बढ़ जाती है.

* मिट्टी भुरभुरी बनने से उस की जल धारण क्षमता बढ़ती है.

* भूमि से पानी के भाप बन कर उड़ने में कमी आती है.

ऐसे करें फसल अवशेष का प्रबंधन

* गेहूं, जौ, सरसों, धान आदि फसलों की कटाई के बाद खेत में शेष रहे फसल अवशेष के साथ ही जुताई कर हलकी सिंचाई करें. इस के बाद ट्राइकोडर्मा का भुरकाव करना चाहिए. ऐसा करने से फसल अवशेष 15 से 20 दिन बाद कंपोस्ट में बदल जाएंगे, जिस से अगली फसल के लिए मुख्य एवं सूक्ष्म पोषक तत्त्व अधिक मात्रा में प्राप्त होंगे.

* ट्रैक्टरचालित कल्टीवेटर में जाली फंसा कर फसल अवशेष को आसानी से इकट्ठा कर गड्ढे में गोबर का छिड़काव कर दबाने के बाद ट्राइकोडर्मा आदि डाल कर बढि़या कंपोस्ट तैयार किया जा सकता है.

* फसल अवशेषों के रहते बोआई में कठिनाई आती है, परंतु आधुनिक मशीनों जैसे जीरो ड्रिल, बीज व खाद ड्रिल, हैप्पी सीडर, टर्बो सीडर और रोटरी डिस्क द्वारा सीधी बोआई आसानी से की जा सकती है. इस से भूमि में नमी बनी रहने के कारण 2 फसलें आसानी से ली जा सकती हैं.

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