सात के दिनों में हरी सब्जियों (Green Vegetables) के दाम आसमान छूने लगते हैं और इन पानी के दिनों में इन का स्वाद भी फीकाफीका सा लगने लगता है. ऐसे में हरी सब्जियों का ही बना सूखावटा बहुत काम आता है. सूखावटा उसी तरह से बनाया जाता है, जिस तरह से हरी सब्जियां बनाई जाती हैं.

आलू, फूलगोभी, चने का साग, हरा धनिया व टमाटर वगैरह को सुखा कर उन का सूखावटा बनाया जाता है. इन सब्जियों का बनाया हुआ सूखावटा बरसात के दिनों में पका कर खाने में सोंधा और स्वादिष्ठ लगता है. हरी सब्जियों का सूखावटा बाजार में नहीं बिकता है, क्योंकि इसे बनाने का तरीका ज्यादा लोगों को नहीं मालूम है और न ही यह ज्यादा प्रचलित  है.

इसे काफी मात्रा में बना कर बाजार में बेचा जा सकता है. इसे बेचने के साथ पकाने की विधि बताना जरूरी है. अकसर कई सब्जियों की उपज जरूरत से ज्यादा होने के कारण किसानों को उन्हें फेंकना पड़ता है. वैसी हालत में उन सब्जियों का सूखावटा बना कर बाजार में बेचने से किसानों को फायदा होगा.

हरी सब्जियों का सूखावटा बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में बहुत प्रचलित है. वहां इस का इस्तेमाल खाने में खूब होता है. वहां बरसात के दिनों में जब हरी सब्जियों की कमी हो जाती है, तो हरी सब्जियों का सूखावटा खूब पसंद किया जाता है.

हरी सब्जियों में पत्तागोभी, फूलगोभी, चने का साग, धनिया की पत्ती, टमाटर और आलू वगैरह की उपज जाड़े के मौसम में काफी मात्रा में होती है. इन सब्जीभाजियों को खाने से जब मन भर जाता है, तो उन्हें सुखा कर बरसात के दिनों के लिए सुरक्षित रख लिया जाता है.

बरसात के दिनों में सब्जियों के दाम आसमान छू रहे होते हैं. ऐसे ही समय में सूखावटा की याद आती है. हरी सब्जियों का सूखावटा बरसात के दिनों में खाने का स्वाद बढ़ा देता है और सेहत भी बरकरार रखता है.

फूलगोभी का सूखावटा

जाड़े के दिनों में फूलगोभी की पैदावार काफी होती है. मौसम की शुरुआत में इस की सब्जी खाने में बहुत मजेदार लगती है. लेकिन धीरेधीरे इस का स्वाद बेकार लगने लगता है.

उस समय तक आलम यह होता है कि बाजार में भारी मात्रा में इस की खेप आ जाने से रेट भी काफी गिर जाते हैं. यही समय होता है, जब इसे ज्यादा मात्रा में खरीद कर सूखावटा बनाया जाए.

सूखावटा बनाने के लिए सब से पहले फूलगोभी को टुकड़ों में काट लेते हैं. फिर इन टुकड़ों को सुतली की माला में पिरो कर धूप में सूखने के लिए रख दिया जाता है. धूप में यह धीरेधीरे सूखता रहता है. जब यह पूरी तरह से सूख जाता है, तो डब्बे में बंद कर के रख दिया जाता है. जब बरसात का मौसम आता है, तब इसे डब्बे से निकाल कर गरम पानी में धो लिया जाता है, उस के बाद इस की सब्जी सामान्य तरीके से बनाई जाती है. इस का सोंधा सा स्वाद खाने में  लाजवाब लगता है. सूखने के बाद भी इस में विटामिंस और मिनरल्स काफी मात्रा में मौजूद रहते हैं, लिहाजा यह सेहत के लिहाज से भी मुनासिब है.

चने के साग का सूखावटा

चने के साग का सूखावटा तो सूखने के बाद खाने में और भी ज्यादा मजेदार लगता है. चने के साग की पैदावार कम होने के कारण कहींकहीं यह बहुत महंगा भी मिलता है. वैसे तमाम लोग चने का साग काफी चाव से कच्चा ही नमक, तेल, लहसुन और मिर्च के साथ मिला कर खाते हैं. खेत में जब इस की लंबाई करीब 6 इंच हो जाती है, तब इसे खोट कर (जड़ छोड़ कर ऊपरी भाग को तोड़ना) साग के रूप में पका कर भी खाया जाता है. यह बहुत ही स्वादिष्ठ और सेहत के लिए मुफीद होता है.

चने के साग का सूखावटा बनाने के लिए सब से पहले हरे साग को खेत से खोट लिया जाता है. अलग से चने की दाल को पानी में भिगो कर फुला लिया जाता है. फिर दाल को गीला पीस कर उस में हरे साग को मिला दिया जाता है. जब हरे साग में दाल का गीला घोल पूरी तरह मिल जाता है, तब उसे हाथ से गोलगोल आकार दे कर कड़ी धूप में पुराने कपड़े पर सूखने के लिए फैला दिया जाता है.

10-12 दिनों में जब वह पूरी तरह से सूख जाता है, तो उसे डब्बे में बंद कर के रख दिया जाता है. बरसात के दिनों मे इस की सब्जी बेहद स्वादिष्ठ और सोंधी लगती है.

बिहार के गांवों में चने के साग का बना सूखावटा बहुत मशहूर है. जाड़े के दिनों में चने का साग भरपूर मात्रा में मौजूद रहताहै. तभी इसे बना कर रख लिया जाता है.

आलू का सूखावटा

आलू की गिनती सदाबहार सब्जियों में होती है. घर में कोई सी भी हरी सब्जी हो या न हो, बस आलू होना चाहिए और कुछ भी नहीं हो तो आलू का चोखा ही स्वादिष्ठ रेसिपी बन जाता है. लेकिन हमेशा आलू की रेसिपी खाने से भी मन ऊब जाता है. ऐसे में आलू का बना सूखावटा बरसात के दिनों में चावल या रोटी के साथ खाने का मजा दोगुना कर देता है.

आलू का सूखावटा बनाने के लिए सब से पहले मध्यम आकार के आलुओं को चुन कर उन्हें उबालना होता है. जब आलू पूरी तरह से उबल जाते हैं, तो उन को छील दिया जाता है. फिर किसी धारदार चाकू से आलुओं को संतरे की फांक की तरह काट दिया जाता है. कटी हुई फांकों को एक पुराने कपड़े में डाल कर धूप में सूखने के लिए फैला दिया जाता है. जब आलू की फांकें पूरी तरह से सूख जाती हैं, तो सूखावटा तैयार हो जाता है. उसे किसी डब्बे में भर कर रख दिया जाता है.

आलू का सूखावटा सूखने के बाद ठोस हो जाता है. सब्जी बनाने से पहले आलू के सूखावटा को पानी में थोड़ी देर फूलने के लिए छोड़ दिया जाता है. फिर सब्जी बनाई जाती है, जो बेहद स्वादिष्ठ होती है.

ध्यान रहे कि हरी सब्जियों से बने सूखावटा में बहुत जल्दी ही फफूंद लगने का डर रहता है. बरसात के दिनों में तो और भी जल्दी फफूंद लग जाती है, इसलिए इसे किसी एयर टाइट डब्बे में रखना ही ठीक रहता है. इसे किसी मिट्टी के बर्तन में भी रख सकते हैं. उस में फफूंद लगने का उतना डर नहीं होता है. बरसात के दिनों इसे कभी भी बना कर खाया जा सकता है.

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