रहनसहन में बदलाव, ग्राहकों की पसंद, खरीद व इस्तेमाल में आसानी के चलते खानेपीने की पैकेटबंदी चीजों का चलन दुनियाभर में बहुत तेजी से बढ़ा है. बाजार के ताजा रुझान की खोजबीन में लगी संस्था ‘यूरोमौनिटर इंटरनैशनल’ के मुताबिक, पैकेटबंद चीजों का कारोबार तकरीबन 17 फीसदी की दर से बढ़ कर अब 5 लाख करोड़ रुपए सालाना हो गया है.

कुछ अपवादों को छोड़ दें तो ज्यादातर किसान अपनी उपज मंडी में ले जा कर थोक में बेचते?हैं, लेकिन किसी भी फसल की बहुतायत होने पर किसानों को मुनाफा मिलना तो दूर उस की वाजिब कीमत भी नसीब नहीं होती. यह किसानों की सब से बड़ी समस्या है.

इस समस्या से निबटने के लिए किसानों को खेती से एक कदम आगे बढ़ कर मार्केटिंग के गुण सीखने होंगे और उपज की कीमत बढ़ाने के तरीके अपनाने होंगे.

ऐसा करना मुश्किल या नामुमकिन नहीं है. शुरू में यह काम सीख कर तजरबे के तौर पर कुल उपज के थोड़े से हिस्से से शुरू कर के बाद में धीरेधीरे बढ़ाया जा सकता है.

कई बार लागत व मेहनत मिट्टी में मिलती देख गुस्साए किसान अपने आलू, प्याज व टमाटर वगैरह को औनेपौने दामों में बेच कर पीछा छुड़ाते हैं या उन्हें सड़कों पर यों ही फेंक देते हैं. इस से नेताओं व अफसरों के कानों पर तो कभी कोई जूं नहीं रेंगती, लेकिन किसानों को बहुत नुकसान होता है इसलिए सरकार के भरोसे रह कर कुछ होने वाला नहीं है.

तकनीक से तरक्की

अब जमाना नई तकनीक का है व हर रोज नई मशीनों के इस्तेमाल करने का है. इन की मदद से खेती के नुकसान को फायदे में बदलना कोई मुश्किल काम नहीं है. जरूरत है, अपना दकियानूसी नजरिया बदल कर इस रास्ते पर पहल करने की.

ऐसे बहुत से उद्यमी हैं, जो दलहन, तिलहन, फलसब्जी व मसालों वगैरह की पैकेटबंदी कर के बेचने में कामयाब हुए हैं और अपना कारोबार बढ़ा कर खासी कमाई कर रहे हैं.

गौरतलब है कि आम कारोबारी तो बाजार से कच्चा माल खरीद कर पैक करते हैं तब उस पर मुनाफा कमाते हैं, लेकिन किसानों के पास कच्चा माल अपना होता है इसलिए उन्हें लागत कम रहने से फायदे की गुंजाइश ज्यादा होती है. अगर किसान मार्केटिंग के गुण अपनाएं तो उम्दा माल के लिए बाजार तलाशना व उस में पैर जमाना मुश्किल या नामुमकिन नहीं है.

दूसरी ओर पैकेटबंद चीजों की कीमतें कई गुना बढ़ जाती हैं. मसलन, मेरठ की थोक सब्जी मंडी में बागबानों को 10 किलोग्राम हरा धनिया के 1 गट्ठर की कीमत बमुश्किल 40-50 रुपए मिलती है, जबकि यही धनिया मैगा मौल या किसी बड़े स्टोर में पैक हो कर 10 रुपए का 100 ग्राम यानी 100 रुपए किलोग्राम तक में आसानी से बिकता है.

माहिरों का कहना है कि 10 इंच लंबी व 6 इंच चौड़ी पौलीथिन में 50 ग्राम हरा धनिया की डंडी रख कर अगर 2 लाइनों में 12 छेद कर दिए जाएं तो उसे ठंडक में आसानी से हफ्तेभर तक हरा रखा जा सकता है. ऊपर से मुंह चिपकाने वाली ऐसी थैलियां अब आसानी से बाजारों में मिल जाती हैं. बस, किसानों को नए खुल रहे बड़ेबड़े बाजारों में जा कर पैकेजिंग के तरीके देखने और सीखने चाहिए.

पैकेटबंदी करने का सब से सस्ता व आसान उपाय है पौली बैग. हालांकि कई राज्यों में पौलीथिन पर पाबंदी है, लेकिन पैक्ड पैकेटों के इस्तेमाल पर छूट है.

पहले मोमबत्ती की लौ से गरम कर के पन्नी की थैलियों का मुंह बंद किया जाता था, फिर बिजली से चलने वाली हौट प्लेट आई, स्टैपलर की पिन लगी. अब तो हर साइज की तैयार थैलियां मिलती हैं, जिन के मुंह पर लगी छोटी सी महीन परत हटाने के बाद उन्हें चिपका कर आसानी से बंद किया जा सकता है.

मेरठ के महेश ने थोक में खजूर खरीद कर उन्हें 250 ग्राम के पैकेट में बंद कर फल वालों, कंफैक्शनरी वालों व किराना कारोबारियों को सप्लाई करना शुरू किया था. धीरेधीरे उस का यह धंधा चल निकला तो उस ने खजूर की गुठली निकाल कर उस में एक काजू रख दिया. इस से उस की बिक्री दोगुनी हो गई इसलिए इस धंधे में उस ने अपने भाइयों को भी लगा लिया.

इसी तरह बिशन सिंह ने एक चीनी मिल से गन्ने के मैले से तैयार जैविक खाद के बोरे खरीदे. उन से 250 ग्राम, 500 ग्राम, 1 किलोग्राम व 2 किलोग्राम के पैकेट बनाए व नर्सरियों को सप्लाई किया और हौकरों से कालोनियों में आवाज लगा कर बिकवाया तो चौगुनी कीमत मिली. ऐसे 1-2 नहीं, बल्कि बहुत से लोग हैं जो पैकेटबंदी के काम में खासी कमाई कर रहे हैं.

सावधानी

ज्यादातर ग्राहक बाजार में मौजूद खानेपीने की चीजों में मिलावट की समस्या से परेशान हैं. मुंहमांगी कीमत देने के बावजूद भी शुद्धता की गारंटी नहीं मिलती. इसलिए पैकेटबंदी में सब से पहला व जरूरी कदम है, ग्रेडिंग यानी छंटाई व सफाई, ताकि माल खालिस, उम्दा क्वालिटी का हो और धूलमिट्टी व कंकड़ रहित हो. साथ ही, उस की पैकिंग अच्छी हो व कीमत भी वाजिब होने से बाजार में साख जल्दी व अच्छी बन जाती है. ग्राहकों का भरोसा बढ़ने पर माल की कीमत भी अच्छी मिलती है.

बाजार में पैकेटबंद चीजों की मांग लगातार बढ़ रही है. शहरों में खुल रहे बड़ेबड़े मौल में ज्यादातर चीजें पैकेटबंद बिकती हैं. सब्जी मंडी व ठेलों पर बिकने वाली मशरूम, मटर के दाने व अंकुरित अनाज वगैरह के पैकेट कहीं भी देखे जा सकते हैं इसलिए किसान अपने मोटे अनाज साबुत या उन्हें पिसवा कर, सब्जी, फल व मसाले वगैरह पैकेट बंद कर के बेच सकते हैं.

अब पैकेजिंग तकनीक में इतने ज्यादा सुधार और बदलाव हुए हैं कि टिन, लकड़ी व गत्ते की भारी पैकिंग अब बीते जमाने की बात हो गई है. अब ऊपरी सिरे से बंद होने वाले पौली पैक, छोटेबड़े पाउच, थर्मोकोल की हलकी प्लेट व उस पर चिपकी महीन पौली फिल्म जैसी सहूलियतों वाली किफायती पैकिंग के तरीके ज्यादा अपनाए जाने लगे हैं.

पैकेटबंदी शुरू करने से पहले यह तय करना जरूरी है कि हमें किस चीज की पैकिंग करनी है. उत्पाद तरल, ठोस, दानेदार या पाउडर किस किस्म का है? प्रति पीस कितने वजन की पैकिंग करनी है? उसे इकाई से बाजार तक पहुंचाने के लिए किस तरह के डब्बे में रखना होगा कि वह महफूज भी रहे और आसानी से पहुंचाया भी जा सके. खानेपीने की चीजों की पैकेटबंदी करने में इस बात की खास सावधानी बरतनी पड़ती है कि अंदर रखी चीज पैकेट के संग, रंग या गंध वगैरह की वजह से खराब न हो.

जानकारी

खानेपीने की चीजें तैयार करने, उन्हें टिकाऊ बनाने से ले कर पैक करने तक के बारे में तकनीकी जानकारी केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी संस्थान यानी सीएफटीआरआई, मैसूर, कर्नाटक से हासिल की जा सकती है.

इस संस्थान के माहिरों ने तकरीबन 300 तरह की खानेपीने की चीजें तैयार करने की तकनीकें व 40 तरह की मशीनें निकाली हैं. यह संस्थान तालीम, ट्रेनिंग व सलाह देता है. इस बारे में फोन नंबर 0821-2514534 पर जानकारी ली जा सकती है.

मुंबई में अंधेरी पूर्व की रोड नंबर 8 में भारतीय पैकेजिंग तकनीक का राष्ट्रीय संस्थान है. पटपड़गंज, दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता, हैदराबाद व अहमदाबाद में इस की 5 शाखाएं हैं. इस संस्थान के माहिरों ने सालों की खोजबीन के बाद खानेपीने की चीजों को ज्यादा देर तक ताजा, टिकाऊ व महफूज रखने के लिए खास तरह की पैकेजिंग तरकीबें ईजाद की हैं. पैकेजिंग तकनीक के कमाल से स्ट्राबेरी व फूल सी नाजुक चीजें भी निर्यात हो रही हैं.

इंडियन इंस्टीट्यूट औफ पैकेजिंग सरकारी संस्था है. यह उद्यमियों की जरूरत के मुताबिक बेहतर पैकिंग रने की ट्रेनिंग, तकनीक, मशीनों की जानकारी व रायमशवरा की सहूलियतें मुहैया कराती है. पैकेटबंदी करने के इच्छुक किसान व उद्यमी इस संस्थान के फोन नंबर 9122-28219803 पर जानकारी हासिल कर सकते हैं.

बाजार

किसी भी माल को खपाने व उस की वाजिब कीमत पाने के लिए बाजार की जरूरत पड़ती है. राहत की बात यह है कि खानेपीने की चीजों का खुदरा व थोक बाजार ज्यादातर इलाकों में पसरा हुआ है, बशर्ते अपने उत्पाद का कोई ब्रांडनेम रख लें ताकि उस की अलग पहचान बन सके. शहरी इलाकों में लगी इकाइयों को जिला उद्योग केंद्र व गंवई इलाकों की इकाइयों को बाजार दिलाने में राज्यों के ग्रामोद्योग बोर्ड मदद करते हैं.

किसान खुद का बिक्री केंद्र खोल कर भी अपने बच्चों को रोजगार का मौका दे सकते हैं. आसपास के शहरों में खुले मौल, डिपार्टमैंटल स्टोर, सुपर बाजार, थोक व खुदरा दुकानदारों से सीधे भी संपर्क कर सकते हैं.

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान वगैरह राज्यों में कृषि उपज की मार्केटिंग के लिए हर तहसील लैवल पर सहकारी क्रयविक्रय समितियां व बहुत से सहकारी उपभोक्ता संघ भी काम कर रहे हैं इसलिए उन का भी फायदा उठाया जा सकता है.

गांवकसबों में लगने वाली साप्ताहिक पैठ, मेला, प्रदर्शनी में स्टौल लगा कर अपना प्रचार व बिक्री की जा सकती  है. शहरी कालोनियों में रिकशा ठेली पर घूमघूम कर कमीशन बेस पर घरेलू सामान बेचने वाले हौकरों की मदद ली जा सकती है. अब तो ह्वाट्सएप वगैरह सोशल मीडिया पर घरेलू चीजों की होम डिलीवरी करने वाले ग्रुप बन गए हैं.

मशीनरी

किसी भी सामान को पैक कर के बेचने के लिए अब हर तरह की पैकिंग करने की मशीनें देश में आसानी से मिल जाती हैं.

ज्यादातर कारखानेदार व कारोबारी अपनी पैकिंग के लिए खाली पाउच व पैकेट वगैरह खुद न बना कर बाहर से बनवातेछपवाते हैं, फिर उन्हें अपनी इकाई में मंगा कर भरने के बाद सीलबंद करते हैं.

शुरू में ही पैकेजिंग के बड़े और आटोमैटिक प्लांट लगाने के बजाय कम पैसे व छोटी मशीनों से भी काम चलाया जा सकता?है. मसलन, गेहूं उगाने वाले किसान आटा, सूजी, दलिया व मैदा व चना उगाने वाले किसान भुने चने, चने की दाल व शुद्ध बेसन की पैकेटबंदी कर सकते हैं.

छोटीबड़ी पैकेजिंग की मशीनें मंगाने के इच्छुक निम्न पते पर संपर्क कर सकते हैं :

-मै. विजय पैकेजिंग सिस्टम, 3213, राम बाजार, मोरी गेट, दिल्ली – 110 006 फोन नंबर : 011-23976263.

-मै. पैकेजिंग सोल्यूशंस, राजेंद्र नगर, सैक्टर -3, साहिबाबाद, उत्तर प्रदेश, मोबाइल फोन : 8071681600.

अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें...