देश में घटता रकबा आने वाले दिनों में किसानों के पेट भरने लायक आमदनी देने में सक्षम नहीं दिखाई देता. ऐसे में किसानों को चाहिए कि वह समय की मांग के अनुसार खेती में कुछ ऐसा करें, जिस से न केवल उन का पेट भर सके, बल्कि परिवार के खर्च को भी निकाल सके.

ऐसे में उत्तर प्रदेश के जिला महाराजगंज मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर गांव अंजना के एक किसान ने बहुत ही कम जमीन पर खेती में कुछ ऐसा किया कि उन के हालात में सुधार आया, बल्कि उन्होंने आसपास के सैकड़ों परिवार को रोजगार के अवसर भी उपलब्ध कराए.

कृषि विषय में स्नातक नागेंद्र पांडेय ने जब पढ़ाई पूरी कर नौकरी की तलाश शुरू की, तो उन्हें यह नहीं पता था कि वह पूर्वांचल के जिलों में खेती की नजीर बन जाएंगे.

नागेंद्र पांडेय ने 20 वर्ष पूर्व नौकरी की तलाश करतेकरते यह मान लिया था कि उन्हें अब नौकरी नहीं मिलेगी. ऐसे में उन के पास एक ही चारा बचा था कि अपने पुरखों की थोड़ी जमीन पर गांव में ही रह कर खेती करें, लेकिन उन्हें यह नहीं सूझ रहा था कि वे खेती में ऐसा क्या करें, जिस से उन के परिवार का भरणपोषण अच्छे से हो पाए. उन्होंने अपनी कृषि की शिक्षा का प्रयोग अपने खेत में करने की ठानी. उन्होंने देखा कि अकसर छोटी जोत के किसान खाद व रसायनों की किल्लत से दोचार हो रहे हैं. इस के बावजूद महंगी खाद का प्रयोग करने से भी किसानों को अपेक्षित उत्पादन व लाभ नहीं मिल पा रहा है.

फिर क्या था, किसान नागेंद्र पांडेय ने यह निश्चय कर लिया कि वह अपनी थोड़ी जमीन में जैविक खादों को तैयार करेगें और बाकी बची जमीन में जैविक खेती करेंगे. उन्होंने इस के लिए सब से पहले वर्मी कंपोस्ट तैयार करने की सोची, इस के लिए उन्होंने वर्मी खाद तैयार करने के लिए प्रयोग आने वाले केंचुओं की प्रजातियों के लिए कृषि व उद्यान महकमे से संपर्क किया, लेकिन उन्हें विभाग से केंचुए नहीं मिल पाए.

इस के बाद वे गोरखपुर जिले के कैम्पियरगंज से मात्र 20 की संख्या में केंचुओं की व्यवस्था कर पाए. वे उन 20 केंचुओं की आइसीनिया फोरिडा प्रजाति को घर ले कर आए और उन्होंने 20 केंचुओं को पशुओं के चारा खिलाने वाली नाद में वर्मी कंपोस्ट में प्रयोग होने वाले गोबर व पत्तियों के बीच डाला. केंचुओं की नियमित देखभाल का ही परिणाम रहा कि 20 केंचुओं से उन के पास 45 दिनों बाद 2 किलोग्राम केंचुए तैयार हो चुके थे.

नागेंद्र पांडेय ने वर्ष 2001 में बिना किसी सहयोग के ही एक वर्मी पिट बनवाया और फिर शुरू हुआ इन के जीवन में बदलाव का एक नया अध्याय.

पूर्वी उत्तर प्रदेश के सब से बड़े वर्मी खाद के उत्पादक

Organic Farmingनागेंद्र पांडेय द्वारा 20 केंचुओं से शुरू किया गया वर्मी खाद उत्पादन का प्रयास इस समय पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों के किसानों के लिए मौडल स्थापित कर चुका है. बिना किसी सरकारी सहायता के महाराजगंज व गोरखपुर जिले में 3 बड़ीबड़ी यूनिट स्थापित कर चुके उन्होंने वर्मी खाद व वर्मी के केंचुओं को किसानो को बेच कर जहां एक तरफ जैविक खेती को बढ़ावा देने का काम किया है, वहीं इसी वर्मी कंपोस्ट के यूनिट के सहारे उन्होंने प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से सैकड़ों परिवारों को रोजगार दे रखा है.

नागेंद्र पांडेय ने अपने गांव में पहले उधार के पैसे से 120 वर्मी के गड्ढे तैयार कर उस पर टीनशेड डलवा कर व्यावसायिक स्तर पर काम शुरू किया, जिस में प्रति माह 750 क्विंटल खाद तैयार होती थी, जिस की पैकेजिंग व मार्केटिंग का काम भी यहीं से होता था. वर्तमान में वह 450 वर्मी बेड के जरीए हर साल लगभग 1,000 मीट्रिक टन वर्मी कंपोस्ट की खाद तैयार कर बाहर के राज्यों को भेजते हैं. इस के लिए उन के वर्मी कंपोस्ट यूनिट पर यहां प्रतिदिन बाहर से गाड़ियां भी आती हैं. उन के द्वारा बोरी 200 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से किसानों के बीच बेची जाती है. इस के अलावा वे किसानों को निःशुल्क केंचुआ भी उपलब्ध कराते हैं. बाहर के लोग इन के यहां से 800 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से केंचुआ ले जाते हैं.

वे अपने यहां तैयार होने वाली वर्मी खाद की गुणवत्ता का विशेष खयाल रखते हैं. वे वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए किसानों से गोबर खरीद कर उसे वर्मी कंपोस्ट बनाने में प्रयोग करते हैं. इन के यहां तैयार होने वाली वर्मी खाद में किसी तरह की मिलावट नहीं की जाती है. वे समयसमय पर खाद की गुणवत्ता की जांच के लिए लैब टेस्ट कराते रहते हैं. इन के यहां तैयार होने वाले वर्मी खाद में सामान्य से अधिक नाइट्रोजन 1.8 फीसदी, फास्फोरस 2.5 फीसदी व पोटाश 3.23 फीसदी पाया गया है. इसलिए इस खाद से पौधों की बढ़वार व उपज दोनों अच्छी होती है. वे सामान्य तौर पर बेची जाने वाली वर्मी खाद की अपेक्षा अपने यहां की वर्मी खाद को बहुत ही कम रेट पर किसानों को उपलब्ध कराते हैं. जहां सामान्य रूप से बाजार में वर्मी कंपोस्ट 15 से 20 रुपया किलोग्राम बिक रहा है, वहीं इन के द्वारा तैयार खाद मात्र 7 रुपए प्रति किलोग्राम ही किसानों को उपलब्ध है.

परिवारों को मिला रोजगार

किसान नागेंद्र पांडेय के वर्मी पिट यूनिट में दर्जनों महिलायें काम करती हैं, जो वर्मी कंपोस्ट की पलटाई, पैकेजिंग इत्यादि का काम करती हैं. यहां इन्हें प्रतिदिन तय मजदूरी दी जाती है.

यहां काम करने वाली दुर्गावती का कहना है कि मनरेगा में नियमित रूप से काम नहीं मिल पाता है, लेकिन यहां हमें प्रतिदिन काम मिलना निश्चित है, वहीं यहा 5 सालों से काम करने वाली ज्ञानमती का कहना है कि अकसर मेरे पति की कमाई परिवार का खर्चा नहीं चला पाती थी, लेकिन अब मैं अपने गांव में ही रोजगार पाने में सफल रही हूं. वहीं बसंती के बच्चों की पढ़ाई का खर्चा यहां काम कर के निकलता है.

कुछ इसी तरह सिंघारी, सावित्री व कलावती जैसी तमाम औरतें भी यहां नियमित रूप से काम कर के अपने घर के खर्चे में पतियों को सहयोग कर रही हैं. इस के अलावा यहां तैयार खादों को बेचने वाले किसानों व गोबर की सप्लाई देने वाले किसानों की कमाई भी नागेंद्र पांडेय की बदौलत ही बढ़ी है.

जैविक खेती को मिला बढ़ावा

महाराजगंज जिले में नागेंद्र पांडेय के प्रयासों से जैविक खेती को बढ़ावा भी मिल रहा है, क्योंकि यहां की खादों को खेतों में डालने के बाद किसानों के खेतों में फसल की उपज में लगातार इजाफा देखने को मिला है. ऐसे में जहां किसान को नुकसान कम हो रहा है, वहीं लागत में कमी आने से मुनाफे में भी बढ़ोतरी हो गई है.

प्रयासों को मिली पहचान

नागेंद्र पांडेय द्वारा किए जा रहे प्रयासों को अब उन्हें उचित मुकाम मिलना शुरू हो गया है. गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ ने अपने गौशाला के गोबर निस्तारण के लिए गोरखनाथ मंदिर व चिकित्सालय के पास खाली पड़ी जमीन पर वर्मी कंपोस्ट यूनिट लगाने का काम किया. इस के अलावा नेपाल बार्डर के नजदीक भी इन्होंने 25,000 टन खाद तैयार करने का एक यूनिट लगाया है. अब आसपास के जिले के किसान भी इन के यहां जानकारी के लिए आने लगे हैं.

वाटर हार्वेस्टिंग का नायाब तरीका

Water Harvestingकिसान नागेंद्र पांडेय ने खेतों की सिंचाई में प्रयोग आने वाले पानी व वर्षा के पानी के लिए एक तालाब खुदवा रखा है, जिस में खेत से सीधा पाइप लगा कर जोडा गया है. वहां से अतिरिक्त पानी पाइप के रास्ते गड्ढे में इकट्ठा हो जाता है. जिस का प्रयोग वे दोबारा वर्मी पिट की नमी बनाने व खेतों की सिंचाई के लिए करते हैं.

करते हैं आधुनिक खेती

नागेंद्र पांडेय धान को श्रीविधि रोपाई कर के अधिक आमदनी प्राप्त करते हैं, वहीं गेहूं की बोआई सीड ड्रिल से कर के लागत में कमी भी लाने में सफल रहे हैं. वे अपने खेतों में वर्मी खाद व वर्मी वास का ही इस्तेमाल करते हैं.

वर्मी वास की रहती है मांग

नागेंद्र पांडेय ने ‘साश्वत’ नाम से जैविक खेती को बढ़ावा देने वाला एक ग्रुप यानी समूह बनाया है. इस के जरीए वे अपनी कृषि शिक्षा का प्रचारप्रसार भी कर रहे हैं. वे केंचुओं से वर्मी वास बनाते हैं, जिस में मटके में गोबर मिला कर उसे ऊपर टांग कर पानी डाल दिया जाता है, जिस में इन केंचुओं के हार्मोंस मिल कर बूंदबूंद बाहर आता है, जो फसलों में छिड़काव के काम आता है.

नागेंद्र पांडेय द्वारा स्थायी कृषि के किए जा रहे प्रयासों के बारे में जान कर गोरखपुर जिले के कमिश्नर, उपनिदेशक, कृषि, सीडीओ सहित तमाम लोग इन की यूनिट का भ्रमण कर चुके हैं और इन के प्रयासों की सराहना भी की.

नागेंद्र पांडेय की सफलता को ले कर सिद्धार्थनगर जिले के रहने वाले श्रीधर पांडेय का कहना है कि किसान नागेंद्र पांडेय ने जैविक खेती की दिशा में जो प्रयास किया है, वह दूसरे किसानों के लिए मिसाल बन गए हैं. उन्होंने न केवल जैविक खेती को बढ़ावा दिया है, बल्कि कई परिवारों को रोजगार का साधन भी मुहैया कराने में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. किसान नागेंद्र पांडेय के बारे में अधिक जानकारी या वर्मी कंपोस्ट तैयार करने की विधि की जानकारी के लिए आप उन के मोबाइल नंबर 9839198163 से संपर्क कर जानकारी ले सकते हैं.

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