‘मरीज ए इश्क पर रहमत खुद की, मरज बढ़ता गया ज्योंज्यों दवा की...’ मिर्जा गालिब की ये पंक्तिया भारत की खेती और किसानों के हालात पर बिलकुल सटीक बैठती है. हाल ही में देश का 'आर्थिक सर्वे' और सालाना बजट 24 लगातार 2 दिनों तक देश की सब से बड़ी पंचायत 'संसद' में पेश किया गया.

इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि को देश के विकास का इंजन बताया. सैध्दांतिक आधार पर उन का यह कहना गलत भी नहीं है, क्योंकि देश की लगभग 70 फीसदी जनता रोजगार के लिए और सौ फीसदी जनता भोजन के लिए कृषि व कृषि संबद्ध उपक्रमों पर ही आश्रित है. लेकिन जब बजट में कृषि के लिए राशि आवंटन की बात आई, तो हमेशा की तरह इस बार भी महज 3 से 4 फीसदी के बीच में ही सिमट गई.

विडंबना यह भी रही कि जब एक ओर सरकार कृषि के क्षेत्र में अपनी उपलब्धियां गिना रही थी, उसी समय दिल दहलाने वाली खबर आई कि देश के अमरावती जिले में पिछले 152 दिनों में 145 किसानों ने आत्महत्या की है. संसद में यह भी बताया गया कि देश में 31 किसान प्रतिदिन आत्महत्या कर रहे हैं. कृषि प्रधान कहलाने वाले देश के लिए इस से बड़ा दुख और शर्म का विषय और क्या हो सकता है.
विश्व की 5वीं सब से बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का दम अवश्य भरिए, पर हकीकत से भी आंख मत चुराइए. आंकड़े हमें आईना दिखा रहे हैं कि अमेरिका के किसान की सालाना आमदनी 65 लाख रुपए है यानी दैनिक आमदनी 18,000 रुपए है, वहीं भारत के किसान की प्रतिदिन की आमदनी महज 27 रुपए है. ऐसे में देश के करोड़ों किसान परिवार किन कठिन हालात में जीवनयापन करते होंगे, यह हमारे देश के नेताओं को आखिर कब समझ में आएगा?

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