अदना सा प्याज केवल काटने पर ही आंसू बहाने पर मजबूर नहीं करता है, खरीदने पर भी ग्राहकों के आंसू निकाल देता है. कई सरकारें प्याज के बढ़ते दामों की भेंट चढ़ चुकी हैं. केंद्र की मोदी सरकार के समय प्याज की कीमतों ने पुराने सभी रिकौर्ड तोड़ दिए हैं. देश में पहली बार प्याज की कीमत ने सैंचुरी लगाई और 150 रुपए प्रति किलोग्राम से भी ज्यादा हो गई थी.

प्याज की बढ़ती कीमत पर कांग्रेस की संप्रग सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने वाली भाजपा अपने कार्यकाल में प्याज की बढ़ती कीमतों पर खामोश थी. लोकसभा में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने तो यहां तक कह दिया था, ‘मैं प्याज नहीं खाती हूं.’

वित्त मंत्री के इस बयान की निंदा भी हुई. मोदी सरकार ने प्याज की बढ़ती कीमतों को कम करने के लिए अफगानिस्तान से प्याज का आयात किया. इस के बाद भी प्याज की कीमतें 80 रुपए से ले कर 100 रुपए के बीच ही हैं.

प्याज की कीमतों ने पहले भी तमाम सरकारों का भविष्य तय किया है. साल 1998 में प्याज के बढ़ते दामों ने दिल्ली में सुषमा स्वराज और राजस्थान में भैरों सिंह शेखावत सरकार को विधानसभा चुनावों में हार का मुंह देखने को मजबूर कर दिया था. उस समय प्याज की कीमत 60 रुपए प्रति किलोग्राम ही बढ़ी थी.

जानेमाने अर्थशास्त्री और देश के पूर्व प्रधानमंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह की सरकार के समय में प्याज की कीमत 80 रुपए के ऊपर तक चली गई थी.

प्याज के तेवर देख केंद्र सरकार ने इस की कीमतों को नीचे लाने का काम शुरू किया, पर तब तक खाने वाले आंसू बहाने लगे थे. ऐसे में 2014 के लोकसभा चुनाव में मनमोहन सिंह सरकार को हार का सामना करना पड़ा था.

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