राजस्थान का पिपलांत्री गांव देशविदेश के मानचित्र पर किसी परिचय का मोहताज नहीं है. गूगल पर गांव का नाम डालते ही इस के इतिहास से ले कर वर्तमान तक की कई कहानियों और तसवीरों के लिंक यहां दिखाई देने लगते हैं.

मैं ने भी इस गांव की बहुत चर्चा सुनी थी. पिछले दिनों एक अल्प प्रवास पर राजसमंद जाने का मौका मिला और इस से भी बड़ी बात यह रही कि जिस इनसान से मिलना था, वे इस गांव में संस्कृत विषय के प्रथम श्रेणी अध्यापक हैं. उन्हीं के सहयोग से गांव की संपूर्ण विकास की यात्रा जाननेसमने और देखने का अवसर मिला और इस के नायक से मिलने को भी मन लालायित हुआ.

विकास की इस यात्रा के संचालक पूर्व सरपंच और वर्तमान सरपंच पति श्याम सुंदर पालीवाल से विशेष भेंट और बात करने का भी मौका मिला. तो आइए जानते हैं, गांव के विकास की कहानी उन्हीं की जबानी:

गांव की तसवीर पहले क्या थी और आप को क्यों लगा कि इसे बदलना चाहिए?

साल 2005 में जब मैं सरपंच बना, उस के बाद लगातार कई सालों तक यहां अकाल पड़ा. पानी पाताल में चला गया. पेड़पौधे, जमीन, पहाडि़यां… सबकुछ सूख गया. तब मुझे लगा कि इस समस्या का कोई टिकाऊ समाधान निकालना चाहिए. चूंकि हम किसान परिवार से हैं, इसलिए खेती हमारे खून में है. जल संरक्षण भी हम ने अपने पुरखों से सीखा था, लेकिन कभी काम में नहीं लिया.

उस अकाल के समय हमारे गांव की स्थिति बाकी जगहों से अधिक खराब थी, क्योंकि यहां मार्बल खनन का काम होता है और बाहरी लोगों का आनाजाना बराबर लगा रहता है, इसलिए यहां की आबादी अन्य जगहों से अधिक थी.

उन भयावह हालात से निबटने के लिए हम ने इस पर योजना बना कर काम शुरू किया और आज नतीजा पूरी दुनिया के सामने है.

खनन और अकाल के कारण यहां की पहाडि़यां बिलकुल सूनी हो गईं. उन्हें फिर से हराभरा बनाने के लिए आप ने जो किया, वह सारी दुनिया देख रही है, लेकिन कैसे किया ये, हम आप से जानना चाहते हैं?

अकाल तो एक बड़ा कारण था ही. चूंकि यहां मार्बल की खानें हैं, इसलिए जाहिर सी बात है कि यहां खनन का मलबा भी बहुत होता है. कुछ तो खनन के लिए विस्फोटक इस्तेमाल करने से और कुछ उस मलबे के कारण भी बहुत से पहाड़ बंजर हो गए. ऐसे में जल और वन संरक्षक की आवश्यकता तो महसूस की ही जा रही थी.

साल 2006 में मेरी बेटी की मौत हो गई. उस की याद में मैं ने पेड़ लगाने का निश्चय किया. उस के बाद मैं ने तय किया कि सिर्फ एक बेटी नहीं, बल्कि पंचायत की हर बेटी के नाम पेड़ लगाने का काम करेंगे.

फिर हम ने इस वृक्षारोपण को एक उत्सव के रूप में मनाना शुरू किया, जिस में रक्षाबंधन के अवसर पर बेटियां इन पेड़ों को राखी बांधती हैं और हम सब मिल कर उन की रक्षा की जिम्मेदारी लेते हैं. हम गांव में किसी की मौत होने पर उस की याद में भी पौधा लगाते हैं.

धीरेधीरे ये बंजर पहाडि़यां फिर से हरीभरी होने लगीं. इस से बाकी लोगों को भी ऐसा करने की प्रेरणा मिली और देश में बहुत सी पंचायत समितियों ने हमारी पहल को सराहा और अपनाया भी.

जो काम आप की पंचायत समिति ने किए और कर रही है वो तो सभी पंचायत समितियां करती होंगी, फिर आप के मौडल को इतनी सराहना क्यों मिली?

अकसर ही लोग सोचते हैं कि गांव में सड़कनालियां बनाने और अपनी पार्टी का वोट बैंक बढ़ाने के अलावा सरपंच का कोई विशेष काम नहीं होता, लेकिन पंचायत का असल काम तो गांव का सर्वांगीण विकास करना होता है और लोग उसी में चूक जाते हैं.

सर्वांगीण विकास के लिए इन सब के साथसाथ यह भी जरूरी है कि गांव स्वच्छ हो, पानी का संरक्षण हो, बेटियां न केवल बचें बल्कि पढ़ें और आगे भी बढ़ें. गांव में पशुधन बढ़े, गोचर भूमि संरक्षित हो, वन्य जीव भी बढ़ें और हरेक हाथ को रोजगार भी मिले.

हमारी पंचायत समिति ने इन्हीं मुद्दों पर ध्यान दिया और आज हमारे गांव में स्वच्छता के प्रति इतनी अधिक जागरूकता है कि कोई भी व्यक्ति खुले में शौच नहीं जाता.

हम चाहते हैं कि गांव की मैनपावर गांव में ही रहे, इसलिए हम यहां नर्सरी में विभिन्न तरह के पौधे तैयार कर के किसानों को उपलब्ध करवाते हैं, ताकि वे उन्नत किस्म की फसल का लाभ ले सकें और अपने गांव, अपने खेत से उन का जुड़ाव रहे.

क्या आप को सरकार से किसी तरह की कोई मदद मिलती है?

हम जो भी योजनाएं चला रहे हैं, वे सभी सरकार द्वारा जारी नीतियों पर ही आधारित हैं. हम ने बहुत से काम तो सरकार की नरेगा योजना में ही करवाए हैं.

दरअसल, बहुत सी सरकारी योजनाओं की जानकारी तो आम जनता विशेषकर किसानों को नहीं होती. हमारा प्रयास रहता है कि इन योजनाओं का लाभ अधिक से अधिक लोगों को मिले और सरकार अपनी योजनाओं में सफल हो.

हम ने प्रण लिया है कि ना तो अपने घर से कुछ लगाएंगे और न ही अपने घर कुछ ले कर जाएंगे. सरकारी अधिकारियों से भी काम करवाएंगे और हम सब भी अपनाअपना काम पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ करेंगे. कुलमिला कर तेरा तुझ को अर्पण की तर्ज पर हम काम कर रहे हैं.

ये तो हुई सरकार की नीतियों की बात, इन योजनाओं में आप की पंचायत का व्यक्तिगत सहयोग क्या रहता है?

हम सहयोग के आधार पर कुछ अंशदान इकट्ठा करते हैं और हर पैदा होने वाली बेटी के नाम पर 31,000 रुपए फिक्स डिपोजिट करवाते हैं. हर बेटी के जन्म पर उस के नाम 111 पौधे लगाए जाते हैं, जिन की देखभाल की जिम्मेदारी उस के घर वालों को सौंपी जाती है.

व्यक्तिगत रूप से सहयोग की बात करें, तो हम ने लोगों में समानता का भाव जगाने की कोशिश की है, उन की आदतों को बदलने का प्रयास किया है, ताकि वे स्वच्छता का महत्त्व अपने जीवन में उतारें और स्वेच्छा से बेटी, जल, वृक्ष, पशुधन और वन्य जीवों के संरक्षण को अपना पहला कर्तव्य समझे. आदत बदलना बहुत ही चुनौती भरा काम होता है. हमें खुशी है कि हम ने यह कर दिखाया.

श्याम सुंदर पालीवाल के प्रयासों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर बहुत सराहना और प्रोत्साहन मिला है. आप की कहानी हर घर तक पहुंचे, इस के लिए आप को ‘कौन बनेगा करोड़पति’ टीम की तरफ से ‘कर्मवीर’ के रूप में इस टीवी शो के एक विशेष एपिसोड में आमंत्रित किया गया था.

गांव के आदर्श मौडल की कहानी को राजस्थान के सरकारी स्कूलों की 7वीं व 8वीं क्लास में भी पढ़ाया जाता है. डेनमार्क के प्राइमरी स्कूल में भी इस गांव का उदाहरण दिया जाता है.

देश के प्रधानमंत्री ने आप को 2 बार बुला कर आप की पीठ थपथपाई है और कई दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी आप के प्रयासों को सम्मानित किया है.

सब से अधिक खुशी की बात है कि आप को अपने अभिनव प्रयासों के लिए हाल ही में भारत सरकार ने ‘पद्मश्री’ की घोषणा की है.

देशविदेश से लोग यहां प्रशिक्षण लेने आते हैं. इस काम के लिए जलदाय विभाग ने यहां विशेष रूप से अपने अधिकारियों को तैनात किया है.

Villageगांव को अब पर्यटन के रूप में विकसित किया जा रहा है. यहां पर्यटकों के ठहरने की उत्तम आधुनिक सुविधा है. यहां गांव की महिलाओं द्वारा एक आर्गेनिक रसोई का संचालन भी किया जा रहा है. इन सब से होने वाली आमदनी को गांव के विकास में ही खर्च किया जाता है. यहां से शुरू हुए कई नवाचार पूरे देश में अपनाए गए हैं, जिन में ‘रात्रि चौपाल’ प्रमुख है.

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