गन्ने की खेती काफी बड़े पैमाने पर की जाती है. उत्तरी भारत में ज्यादातर किसान गन्ने की बोआई करते हैं. फसल की उपयोगिता को देखते हुए शुद्ध बीज की मांग लगातार बढ़ रही है.

उल्लेखनीय है कि गन्ने से शुद्ध बीज लेने और नई प्रजातियों के बीज के जल्दी फैलाव की एकमात्र नई तकनीक टिशु कल्चर है.

टिशु कल्चर तरीके से बीज को अगर पौलीबैग में रोपा जाए तो परंपरागत उत्पादन तकनीक की अपेक्षा डेढ़ से दोगुनी उपज ली जा सकती है.

पौलीबैग प्लांटिंग द्वारा सामान्य फसल के रोपने में भी बहुत अच्छी फसल मिल जाती है. यह तकनीक धीरेधीरे लोकप्रिय हो रही है. यह एक ऐसी तकनीक है जिस में पोषक घोल को पौधों के किसी भी अंग के टिशु से एकसमान पौधों को विकसित किया जाता है. पादप हार्मोनों को पोषक घोल में सही मात्रा डाल कर और उक्त घोल को जीवाणुरहित कर टिशु का कल्चर तैयार किया जाता है.

इस तरह से विकसित सूक्ष्म पौधों को पौलीहाउस में लगाने के बाद खेतों और बगीचों में रोप दिया जाता है. अब टिशु कल्चर तकनीक की उपयोगिता की प्रचुर संभावनाएं नजर आने लगी हैं.

टिशु कल्चर है क्या

टिशु कल्चर तकनीक को अपना कर तैयार किए गए पौधों को टिशु कल्चर कहा जाता है. यह शुद्ध गन्ने के बीज हासिल करने की नई व बढि़या तकनीक है. इस तरह के पौधे उच्चस्तरीय प्रयोगशाला में ही तैयार हो सकते हैं.

उत्तर प्रदेश में गन्ने की खेती में अच्छी

बढ़वार होने की वजह से उन्नतशील नई विकसित प्रजातियों के बीज की कमी लगातार महसूस की जाती रही है.

पहले से प्रचलित विधियों द्वारा ब्रीडर व फाउंडेशन सीड सफलतापूर्वक बढ़ाए जाने के बाद भी सही मत्रा में किसानों को गन्ने का बीज नहीं मिल पा रहा है.

नई प्रजातियों के लिए वैज्ञानिकों द्वारा समयसमय पर विभिन्न विधियों जैसे एसटीपी, हाइड्रोपोनिक नर्सरी में एक आंख के टुकड़ों से बोआई बड़ चिप वगैरह विकसित की गई, पर कुछ वजहों से इन्हें इस्तेमाल में नहीं लाया जा सका. लेकिन अब टिशु कल्चर की तकनीक लोगों को लुभा रही है.

टिशु कल्चर की माइक्रोप्रोपेगेशन तकनीक में तमाम तरह के पौधों का कल्चर तैयार किया जा रहा है. अब तक विभिन्न प्रयोगशालाओं में गन्ने पर किए गए कामों से यह संकेत मिलता है कि गन्ने में टिशु कल्चर तकनीक द्वारा क्वालिटी वाले गन्ने के बीज को तैयार किया जा रहा है.

पौध उत्पादन की विधियां

* कक्षीय पौधों के विकास द्वारा.

* अपस्थनिक पौधों के विकास द्वारा.

* सोमैटिक इंब्रायोजैनेसिस द्वारा.

बीज गन्ना कल्चर के लिए कक्षीय पौधों के विकास की विधि को सब से अच्छा माना जाता है, क्योंकि इस विधि में उत्पादित पौधों के गुणों में विभिन्नता की कम ही संभावना रहती है.

शूट टिप और मेरिस्टेम द्वारा पौध उत्पादन

बीज गन्ना कल्चर के लिए शूट टिप और मेरिस्टेम सही होते हैं. प्रक्षेत्र से 6 से 8 माह के स्वस्थ पौधों के अगोलों से आसपास 8-10 सैंटीमीटर लंबे टुकड़े काट कर किसी हलके डिटर्जैंट में 8-10 मिनट तक धो लेते हैं. फिर इन टुकड़ों को लैमिनार फ्लो के अंदर 8-10 मिनट तक 0.1 फीसदी मरक्यूरिक क्लोराइड के घोल से सतही विसंक्रमण कर लेते हैं. इस के बाद साफ पानी से 3-4 बार धोने के बाद चिमटी या चाकू की मदद से 1.0-1.5 सैंटीमीटर लंबे टुकड़े काट कर ठोस या द्रव एमएस मीडियम पर कल्चर कर दिया जाता है. इस मीडियम में साइटोकाइनिन, औक्सिन व जिब्रैलिन की मौजूदगी जरूरी है.

शुरू में टिशु की बहुत ही धीमी बढ़वार होती है. फिनालिक्स स्राव के चलते मीडियम का रंग भूरा हो जाता है, जिस से ऊतक मर जाते हैं इसलिए ऊतकों को शुरू के 5-7 दिनों तक हर रोज या एक दिन के अंतराल पर जरूरत के मुताबिक फ्रेश मीडियम पर स्थानांतरित करना चाहिए.

पौध कल्चर : टिशु की बढ़वार के मुताबिक तकरीबन 30 से 45 दिन बाद इन्हें शूट मल्टीप्लीकेशन द्रव मीडियम पर स्थानांतरित कर दिया जाता है. तकरीबन 6 हफ्ते में नए शूट विकसित हो कर पौधों का गुच्छा बना लेते हैं. इन गुच्छों से पौधों को 2-3 के समूह में काट कर अलगअलग कर लेते हैं और अलगअलग जैम बोतल में इसी मीडियम पर स्थानांतरित कर लिया जाता है. यह क्रिया प्रत्येक 10 से 15 दिन पर दोहराई जाती है. इस तरह एक एक्स प्लांट से हजारों पौधे विकसित कर लिए जाते हैं.

पौधों में जड़ पैदा करना : जड़विहीन पौधों में जड़ पैदा करने के लिए 8-10 पौधों के समूह में उन्हें रूटिंग मीडियम पर स्थानांतरित किया जाता है. प्रजाति के मुताबिक जड़ विकसित होने में 10 से 20 दिन लग सकते हैं. आमतौर पर 15 दिनों में सही तरह से जड़ विकसित हो जाती है.

हार्डेनिंग : सही जड़ विकसित होने के बाद पौधों को जैम बोतल से निकाल कर धो लिया जाता है. इस के बाद इन पौधों को आधुनिक पौलीहाउस में छोटीछोटी पौलीथिन में मिट्टी का मिश्रण यानी मिट्टी, कंपोस्ट, रेत बराबरबराबर मात्रा में भर कर लगा देते हैं. तकरीबन 1 माह में पौधे खेत में लगाने के लिए तैयार हो जाते हैं.

प्रक्षेत्र प्रत्यारोपण : एक माह के बाद पौधों को प्रक्षेत्र पर 90×45 सैंटीमीटर की दूरी पर प्रत्यारोपित कर तत्काल पानी निकाल देना चाहिए. इस तरह से 1 एकड़ के लिए तकरीबन 9500 पौधों की जरूरत होगी.

कर्षण क्रियाएं : प्रत्यारोपण के 6 से 8 दिन बाद जरूरत पड़ने पर फिर हलकी सिंचाई करनी चाहिए. समयसमय पर खरपतवारों के नियंत्रण के लिए निराईगुड़ाई करते रहना चाहिए. आमतौर पर 5 से 6 निराईगुड़ाई करना जरूरी है. गुड़ाई सदैव उथली करनी चाहिए ताकि पौधों को नुकसान न हो.

दूसरी सिंचाई के बाद 2-3 ग्राम प्रति पौधा यूरिया देना चाहिए. खेत में अगर कोई गैप दिखाई दे तो उस जगह पर नए पौधे लगा देने चाहिए. सही बढ़ोतरी होने के बाद पौधों पर मिट्टी चढ़ाने का काम किया जाता है. पौधे जब तकरीबन 150 से 180 सैंटीमीटर के हो जाएं तो बधाई कर देनी चाहिए.

पौलीबैग तकनीक से गन्ने की पौध का विकास : पौलीबैग तकनीक में गन्ने की एक आंख का टुकड़ा पौलीथिन बैग में लगा कर तैयार किया जाता है और इस तरह तैयार पौधा पौलीबैग पौधा कहलाता है.

पौलीबैग में आमतौर पर बोआई के मुकाबले बीज की मात्रा 1/3 से 1/4 (20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) ही लगती है. इस तकनीक में डेढ़ से 2 माह की अगेती बोआई का फायदा मिलता है. साथ ही, पौधे की बोआई से डेढ़ माह की अवधि तक जमाव की अवस्था तक खेत में दी जाने वाली 3 से 4 सिंचाई और निराई की बचत होती है.

पौधशाला में पौलीथिन की थैलियों में गन्ने के आंखों को झारे की मदद से सिंचाई करने में बहुत ही कम पानी लगता है और अंकुरण जल्दी फूटता है. इस तरह से तैयार पौधे खाली जगह की भराई के लिए भी बहुत कामयाब रहते हैं.

टिशु कल्चर (Tissue Culture)

पौलीबैग में पौध तैयार करना : दोमट या मटियार मिट्टी, सड़ी हुई गोबर की खाद और बालू को बराबरबराबर मात्रा में या अनुपात में ले कर अच्छी तरह मिला देते हैं. 6×5 इंच (15 से 22 सैंटीमीटर) की थैली लें. इस में नीचे की तरफ मोटी कील से 4-5 छेद करें. 2 भाग मिट्टी, 1 भाग वर्मी कंपोस्ट या गोबर की खाद और 1 भाग रेत आपस में अच्छी तरह मिला कर महीन कर थैली का 3/4 भाग इस मिश्रण से भर दें, बाकी 1/4 भाग टुकड़े लगाने के बाद भरें.

पौलीथिन बैग में भरी मिट्टी में 10 फीसदी बीएचसी धूल (20 से 25 किलोग्राम एक हेक्टेयर में पौध रोपाई के लिए) को मिट्टीखाद के मिश्रण में अच्छी तरह मिलाएं. एक पौलीथिन थैली में तकरीबन 1 किलोग्राम मिट्टी, खाद और रेत का मिश्रण भरना चाहिए. एक हेक्टेयर खेत की रोपाई के लिए 74,000 थैलियों की जरूरत होती है.

गन्ने के सेहतमंद पौधे से एक आंख के टुकड़े तैयार करें. गांठ के पास के  ऊपर 1 इंच और नीचे 2 से ढाई इंच छोड़ कर तेज धार कत्ते से टुकड़े काटें. पारायुक्त रसायन बेगाला 6 या एमीसानान 5 के घोल (1 किलोग्राम दवा 200 लिटर पानी में घोल कर) से गन्ने के टुकड़ों को उपचारित करें यानी काटे गए एक आंख वाले गन्ने के टुकड़ों को 10 मिनट तक घोल में डुबो देना चाहिए.

उपचारित टुकड़ों को थैली के बीचोंबीच सीधा खड़ा लगाएं. टुकड़े के लंबे भाग को नीचे रखें, जिस से आंख सीधे ऊपर की तरफ रहे. इस से अंकुरण जल्दी होगा. अगर आंखें खड़ी लगाने में कठिनाई हो तो आंखों को 1 इंच ऊपर और नीचे से काट कर आड़ा लगाएं.

पौलीबैग में पौधा 30 दिन में खेत में रोपने के लिए तैयार हो जाता है. पौलीबैग में लगाने के लिए बड चिपर यानी गन्ने से आंख निकालने का यंत्र द्वारा आंख निकाल कर बीजोपचार के बाद पौलीबैग में लगा सकते हैं. इस से बीज की मात्रा केवल 35 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर ही रह जाएगी.

पौलीबैग में इस्तेमाल किए जाने वाले गन्ने को उपचारण संयंत्र में जरूर उपचारित किया जाना चाहिए. इस से रोग रहित आधार बीज उत्पादित किया जा सकता है.

प्रक्षेत्र रोपण : पौलीथिन की थैलियों को अलग कर पौधों को पिंड सहित गड्ढे में उतार दें और मिट्टी को हलका दबाने के बाद सिंचाई कर दें. इस तरह से 1 हेक्टेयर में 15,000 से 18,000 पौधे लगते हैं. खेत में अच्छी बढ़त और ज्यादा कल्ले के लिए अतिरिक्त उर्वरक की मात्रा डालें.

अगर संभव हो तो प्रक्षेत्र रोपण से पहले मिट्टी जांच कराने के बाद भरपूर मात्रा में खेत में कार्बनिक खाद कंपोस्ट को डाल दें.

लाभ : गन्ना बीज उत्पादन के लिए टिशु कल्चर विधि काफी फायदेमंद साबित हो रही है. इस विधि के निम्नलिखित फायदे हैं:

* नवीन विकसित गन्ना प्रजाति का जल्दी कल्चर किया जा सकता है.

* इस तरह से विकसित पौधे से एकसमान आकार के गन्ने पैदा होते हैं और शुरू से ही अंकुरण और बढ़त अच्छी होती है.

* किसी नई प्रजाति के तीव्र प्रसार होने के कारण इस से प्रक्षेत्र पर अपेक्षाकृत ज्यादा सालों तक फायदा लिया जा सकता है.

* इस विधि से उत्पादित पौधों में रोग व कीट लगने की संभावना काफी कम रहती है.

* नई विकसित प्रजातियों का बीज सीमित मात्रा में होता है इसलिए इस विधि से उसे ज्यादा मात्रा में बना कर ज्यादा इलाकों में फैलाया जा सकता है.

* इस पद्धति से कल्चर पौधों में आनुवांशिक बदलने की संभावना ज्यादा रहती है और उत्पादन लागत की समस्या भी आती है.

* इस विधि द्वारा विकसित पौधों को शुरू में ब्रीडर सीड नर्सरी के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए. पौधों को चिन्हित कर के अलग कर लेना चाहिए. उत्तम बीज का चयन कर के प्रचलित पद्धति या पौलीबैग विधि द्वारा फाउंडेशन व सर्टिफाइड सीड पैदा किया जा सकता है. इस से पौधों के उत्पादन में बेहतर गुणों वाले क्लोन को चुन कर जांच के बाद उसे नई प्रजाति के रूप में भी विकसित किया जा सकता है.

टिशु कल्चर और पौलीबैग : सावधानियां

* वसंतकालीन गन्ने के पौध रोपण में अर्ली शूट बोरर यानी अग्र तनाछेदक का प्रकोप होने की ज्यादा संभावना रहती है. इस वजह से रोपाई के बाद थिमेट 10जी को 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पौधों के आसपास डाल कर गुड़ाई करें और पानी देते रहें.

* खेतों में पूरी तरह जमने के बाद नाइट्रोजन की थोड़ीथोड़ी मात्रा में पौधे से 5-7.5 सैंटीमीटर की दूरी पर चारों तरफ बिखेर देनी चाहिए. जब गन्ने के पौधे में पूरी तरह कल्ले फूट जाएं तभी मिट्टी चढ़ानी चाहिए.

* टिशु से पौधे खेत में लग जाएं और कल्ले फूटने वाले हों तब मातृ पौधे को नीचे से काट देना चाहिए. इस से कल्ले ज्यादा और एक से ज्यादा निकलते हैं. प्रति पौधा 10-15 पौधों से ज्यादा प्रोत्साहित न करें. हलकी मिट्टी चढ़ा कर कल्ले का फुटाव रोकें.

* टिशु कल्चर और पौलीबैग दोनों की पौध 30 से 45 दिन की अवस्था तक खेत में लगा दें नहीं तो गन्ने के पौधे में कल्ले कम निकलेंगे.

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