लखनऊ की गुलाब रेवड़ी देश भर में अपने स्वाद और खुशबू के लिए मशहूर है. इस गुलाब रेवड़ी का रंग तो गुलाबी नहीं होता, लेकिन इस की खुशबू में गुलाब महकता है.
कई बार तो खुशबू के लिए रेवड़ी के पैकेट में सूखे गुलाब की पत्तियों या फिर गुलाब के खाने वाले इत्र का इस्तेमाल किया जाता है.
गुलाब रेवड़ी के साथ अब दूसरे स्वाद और खुशबू वाली रेवडि़यां भी आ रही हैं. इन का आकार भी बदल गया है. रेवड़ी बनाने के कारोबार से ले कर बेचने तक का अलगअलग कारोबार कर के लोग कमाई कर रहे हैं.
फेरी में बिकने वाली लखनऊ की गुलाब रेवड़ी अब बड़ीबड़ी मिठाई की दुकानों की शान बन गई हैं. जाड़ों में यह काफी बिकती है. गुड़, शक्कर और तिल से बनने वाली रेवड़ी सेहत के लिए काफी उपयोगी है. यह शरीर में जाड़ों में होने वाली तेल की कमी को पूरा करती है. इस से शरीर को ऊर्जा मिलती है. यही वजह है कि जाड़ों में गुड़ और तिल से बनने वाली रेवड़ी सभी को पसंद आती है. रेवड़ी पहले छोटे कारोबारियों द्वारा बनाई और बेची जाती थी, लेकिन अब यह दुनिया भर के बाजारों में छा गई है.
रेवड़ी अब कारपोरेट स्वीट बन गई है. दीवाली, नया साल और होली के मौके पर इस को उपहार में दिया जाने लगा है. रेवड़ी की खासीयत इस का कुरकुरापन है. लखनऊ के अलावा रेवड़ी का यह कारोबार उत्तर प्रदेश के मेरठ, हरियाणा के रोहतक और राजस्थान के जयपुर और अलवर जैसे शहरों में भी बड़े पैमाने पर होने लगा है. अपने खास स्वाद के कारण जयपुर और मेरठ की रेवडि़यां भी खूब पसंद की जा रही हैं.
बनाएं घर पर रेवड़ी
गजक बनाने वाली सामग्री ही रेवड़ी बनाने में भी लगती है. रेवड़ी में भी तिल, गुड़, चीनी का इस्तेमाल होता है. गुड़ और चीनी को एकसाथ मिलाने से रेवड़ी में दोनों का स्वाद मिलता है. इस का दूसरा लाभ यह होता है कि रेवड़ी का रंग पूरी तरह से साफ हो जाता है. केवल गुड़ से तैयार रेवड़ी का रंग अच्छा नहीं दिखता है. चीनी और गुड़ की चाशनी को मिला कर खूंटी में गरमगरम लटका कर खींचा जाता है. जब इस में से सफेद तार निकलने लगे, तो गरमगरम मनचाहे आकार में इसे काट कर छोटीछोटी रेवड़ी तैयार की जाती हैं. चाशनी ठंडी होने पर यह नहीं बन पाती है. इसे मशीन से दबा कर ऊपर से तिल चिपका दिए जाते हैं. इसे बनाने में सब से ज्यादा सावधानी चाशनी तैयार कने में बरतनी पड़ती है.