सब्जियों की व्यावसायिक खेती को बढ़ावा देने में इन की स्वस्थ पौध तैयार करना एक महत्त्वपूर्ण विषय है. सब्जियों की स्वस्थ पौध तैयार करने में पौलीटनल तकनीक का विशेष महत्त्व है.
इस प्रकार सब्जियों की व्यावसायिक खेती को बढ़ावा देने में पौलीटनल तकनीक से सब्जियों की पौध तैयार करना व्यावहारिक, कारगर, सस्ती एवं किसानोपयोगी है, इसलिए इस तकनीक का प्रयोग कर किसान अपनी सब्जियों की खेती से ज्यादा उत्पादन और आमदनी हासिल कर सकते हैं.
देश में व्यावसायिक सब्जी उत्पादन को अधिक बढ़ावा देने में सब्जियों की स्वस्थ पौध उत्पादन पर आमतौर से किसान कम ध्यान देते हैं.
एक अनुमान के मुताबिक, पौधशाला में सब्जी पौधे का औसत नुकसान 20-25 फीसदी होता है. लेकिन कई बार यह नुकसान 70-80 फीसदी तक हो जाता है.
राष्ट्रीय स्तर पर अभी भी 40-50 फीसदी किसान सब्जियों की पौध खुले वातावरण में उगाते हैं. सब्जियों की पौध खुले वातावरण में उगाने से कई प्रकार की समस्याएं सामने आती हैं. इन समस्याओं में बीज का जमाव कमी होना, जमाव के बाद पौध के समुचित विकास में कमी, कीटों और बीमारियों का ज्यादा से ज्यादा प्रकोप, पौध तैयार होने में अधिक समय का लगना आदि प्रमुख हैं.
पौलीटनल तकनीक
पौलीटनल तकनीक सब्जी पौध उगाने की सस्ती, कारगर व व्यावहारिक तकनीक है. इस तकनीक से पौध उगाने पर बीज का जमाव समुचित ढंग से होता है. जमाव के बाद पौध का विकास बेहतर होता है.
पौध को वातावरण के अनुसार अनुकूलन (हार्डनिंग) में सहायता मिलती है. पौलीटनल तकनीक से पौध उगा कर खेत में रोपाई करने से पौधों की मृत्यु दर नहीं के बराबर होती है. इस तकनीक का सब से बड़ा फायदा यह है कि विपरीत मौसम में (ज्यादा वर्षा, गरमी व ठंड के समय) भी सब्जी पौध कामयाबी से तैयार की जा सकती है, जबकि खुले वातावरण में वर्षा के मौसम में और ज्यादा ठंड के समय पौध उगाना तकरीबन नामुमकिन होता हैं, क्योंकि लगातार वर्षा व ठंड के कारण बीज का जमाव बहुत कम होता है.
पौलीटनल लगाने का सही ढंग
पौलीटनल लगाने के लिए चार सूत का सरिया या बांस लेते हैं, जिस की लंबाई 8 फुट होती है. एक मीटर चौड़ी बैड के दोनों तरफ 6 इंच गहराई में सरिया अथवा बांस को जमीन के अंदर गाड़ देते हैं. एक मीटर चौड़ी बैड के दोनों तरफ सरिया अथवा बांस को गाड़ने से सुरंगनुमा संरचना बन जाती है. बैड के बीच में सरिया या बांस की ऊंचाई तकरीबन 2.50 फुट होती है.
इस तरह हर 2 मीटर की दूरी पर 8 फुट लंबाई का सरिया या बांस को बैड के दोनों तरफ जमीन के अंदर गाड़ देते हैं. एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में बंदगोभी, फूलगोभी, मिर्च, बैगन, शिमला मिर्च, टमाटर की खेती करने के लिए एक मीटर चौड़ी क्यारी, जिस की लंबाई 40 मीटर हो, की जरूरत होती है. अगर 40 मीटर लंबी जगह न हो, तो 20-20 मीटर लंबाई के 2 बैड या 10-10 मीटर लंबाई की 4 क्यारियां बना सकते हैं. एक मीटर चौड़ी और 40 मीटर लंबी क्यारी में लगभग 350-400 ग्राम बीज बताई गई सब्जियों की जरूरत होती है, जो एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए सही होती है.
पौलीटनल में इन सब्जियों के बीजों की बोआई के लिए सब से पहले बैड की गुड़ाई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लेते हैं. एक मीटर चौड़ा और 40 मीटर लंबा पौलीटनल में तकरीबन 5 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद या 3 क्विंटल वर्मी कंपोस्ट फैला कर बैड की मिट्टी में मिला देते हैं. इस के बाद बैड की सिंचाई करते हैं.
4-5 दिनों बाद क्यारी की गुड़ाई कर बीज की लाइन में बोआई करते हैं. बीज की बोआई के लिए 2-3 सैंटीमीटर गहरी कतार बनाते हैं और इस लाइन में बीज की बोआई कर मिट्टी से ढक देते हैं.
बीज की बोआई के लिए लाइन बनाते समय एक से दूसरी लाइन की दूरी 2 इंच रखते हैं. बीज की बोआई के समय बैड में सही नमी का होना जरूरी है. अगर पूरी नमी नहीं है, तो बीज की बोआई के बाद फुहारे से हलकी सिंचाई कर देते हैं.
पौलीटनल तकनीक में पौलीथिन का इस्तेमाल
बीज की बोआई के बाद पौलीटनल को सफेद पौलीथिन से ढक देते हैं. इस के लिए तकरीबन 4 मीटर चौड़ी पौलीथिन व लंबाई अपनी जरूरत को देखते हुए खरीद लेते हैं. पौलीथिन 200 माइक्रौन का अच्छा माना जाता है. बीज की बोआई के बाद पौलीटनल को शाम के समय इस को पौलीथिन से ढक देते हैं. रात के समय यह पौलीथिन ढका रहता है. यदि दिन का तापमान 25-26 डिगरी से ज्यादा है, तो दिन के समय पौलीथिन को हटा देते हैं और शाम को ढक देते हैं.
अगर इन सब्जियों की पौध अप्रैल से सितंबर महीने के बीच तैयार करनी हो, तो रात के समय भी बैड के दोनों तरफ की पौलीथिन एक फुट ऊंचाई तक फोल्ड कर देते हैं, क्योंकि इस अवधि में रात के समय भी तापमान ज्यादा होता है. ऐसा करने से हवा का आनाजाना बैड के अंदर समुचित ढंग से होने के चलते तापमान भी ज्यादा नहीं होता है.
अप्रैलसितंबर महीने के मध्य पौध तैयार करते समय दिन में पौलीथिन हटा देते हैं. जब वर्षा होने की संभावना हो, उस समय पौलीटनल को पौलीथिन से ढक देते हैं. क्यारी के दोनों तरफ की पौलीथिन को एक फुट ऊंचाई तक फोल्ड कर देते हैं. इस प्रकार 25-30 दिनों में पौध तैयार हो जाती है.
कद्दूवर्गीय सब्जियों की पौध तैयार करना
कद्दवर्गीय सब्जियों जैसे खीरा, करेला, लौकी, तुरई, छप्पन कद्दू का पौध तैयार करने के लिए 5 इंच लंबी व 3 इंच चौड़ी काली पौलीथिन लेते हैं. काली पौलीथिन में
50 फीसदी मिट्टी व 50 फीसदी गोबर की सड़ी खाद या वर्मी कंपोस्ट का मिश्रण तैयार कर पौलीथिन बैग में भराई करते हैं. उस के बाद पालीथिन बैग को तैयार पौलीटनल में रख कर बीज की बोआई करते हैं.
इस कद्दूवर्गीय सब्जियों की एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में खेती के लिए तकरीबन 8-10 हजार पौध की जरूरत होती है, जिसे एक मीटर चौड़ी और 45 मीटर लंबा पौलीटनल में तैयार किया जा सकता है.
कद्दूवर्गीय सब्जियों की पौध जनवरी महीने में तैयार करते हैं. उस समय बहुत ठंड होती है, इसलिए कद्दूवर्गीय सब्जियों की पौलीटनल में रखे पौलीथिन में बीज की बोआई के बाद 4-5 दिनों तक लगातार सफेद पौलीथिन से ढक देते हैं. इस के लिए 4 मीटर चौड़ी पौलीथिन व लंबाई अपनी जरूरत के मुताबिक, जो 200 माइक्रौन की हो, का इस्तेमाल करते हैं.
बोआई के समय पौलीथिन बैग में सही नमी का होना जरूरी है. यदि नमी कम हो तो बोआई के बाद फुहारे से पौलीथिन बैग की हलकी सिंचाई कर देते हैं.
बोआई के 4-5 दिनों बाद पौलीथिन को दिन में हटा कर देखते हैं. नमी कम होने पर फुहारे से हलकी सिंचाई करते हैं.
जब 8-10 दिनों बाद पौधों में जमाव हो जाता है, उस समय दिन के समय जब अच्छी धूप रहती है, पौलीथिन को हटा देते हैं. 4-5 घंटे धूप लगने देते हैं. ऐसा करने से पौधों पर धूप आती है. इस से पौधे कठोर होते हैं.
शाम के समय पौलीटनल को ढकने से पहले यदि नमी कम हो, तो हलकी सिंचाई करते हैं. इस तरह कद्दूवर्गीय सब्जियों की पौध तकरीबन 30 दिनों में तैयार हो जाती है. करेला, लौकी, तुरई की बोआई से पहले 12-14 घंटे पानी में बीज को भिगो लेते हैं. उस के बाद बीज की बोआई करते हैं. ऐसा करने से बीज का जमाव जल्दी और समुचित ढंग से होता है.
यदि कद्दूवर्गीय सब्जियों की पौध को जनवरी महीने में तैयार किया जाए और फरवरी महीने के पहले पखवारे में रोपाई की जाए तो 20-25 मार्च तक उत्पादन मिलना शुरू हो जाता है. इस अवधि में उत्पादन होने से इन सब्जियों से किसान को उन के उत्पाद का बाजार में लाभकारी मूल्य प्राप्त होता है, क्योंकि इस अवधि में बाजार में कद्दूवर्गीय सब्जियों की कमी होती है.
पौलीटनल तकनीक के फायदे
* पौलीटनल तकनीक से साल के किसी भी मौसम में चाहे अधिक वर्षा, गरमी और ठंड हो, उस समय भी सब्जियों की पौध कामयाबी से तैयार की जा सकती है.
* इस तकनीक से पौध तैयार करने पर बीज का जमाव तकरीबन सौ फीसदी होता है. जमाव के बाद पौधों का विकास समुचित ढंग से होता है. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि पौलीटनल के अंदर का तापमान बीज के जमाव व पौधों की बढ़वार के लिए आदर्श होता है.
* पौलीटनल में पौध उगाने से बीज जमाव के बाद दिन में धूप के समय पौलीथिन को हटा देते हैं, जिस से पौधों का धूप के संपर्क में आने से उन का वातावरण के अनुसार अनुकूलन (हार्डनिंग) हो जाता है. ऐसे पौधों की खेत में रोपाई करने से उन की मृत्यु दर बहुत कम (न के बराबर) होती है.
* बीज का जमाव जल्दी होने, पौधों की समुचित बढ़वार से पौध तैयार करने में समय कम लगता है.
* विपरीत मौसम में यानी ज्यादा गरमी, वर्षा, ठंड, ओला, बर्फ गिरने से पौधों की क्षति नहीं होती है, क्योंकि पौधे पौलीटनल के अंदर पौलीथिन से ढके रहते हैं.
* पौलीटनल तकनीक से पौध उगाने पर कीटों व रोगों का प्रकोप भी कम होता है.
पौलीटनल तकनीक में सावधानियां
* पौलीटनल तकनीक से पौध तैयार करने के लिए ऐसी जगह का चुनाव करना चाहिए, जहां बारिश के समय पानी का जमाव न होता हो.
* स्थान का चुनाव करते समय यह भी ध्यान देना चाहिए कि वहां पर पूरे दिन सूरज की रोशनी आती हो.
* ऐसी जगह का चयन करना चाहिए, जहां कि मिट्टी हलकी हो, जैसे बलुई दोमट या दोमट मिट्टी, जिस का पीएच मान 7.0 के आसपास हो.
* चुनी गई जगह के पास सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होने के साथसाथ जल निकास की उचित व्यवस्था हो.
पौलीटनल में कीटों व रोगों का प्रबंधन
* पौलीटनल की बैड में बोआई से 10 दिन पहले इस्तेमाल की जाने वाली गोबर की सड़ी खाद या वर्मी कंपोस्ट में ट्राइकोडर्मास्यूडोमोनास का मिश्रण मिला दें, एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में सब्जी की खेती के लिए एक मीटर चौड़ी और 40 मीटर लंबी क्यारी में 5 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद या 3 क्विंटल वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल करते हैं, जिस से इन का फैलाव खाद अथवा वर्मी कंपोस्ट में हो सके.
उपरोक्त जैविक फफूंदनाशकों का मिश्रण मिलाते समय यह ध्यान दें कि खाद के अंदर पर्याप्त नमी हो. उस के बाद बोआई से एक दिन पहले बैड की गुड़ाई के समय इस मिश्रण को बैड में फैला दें. ऐसा करने से पौधों को पोषक तत्त्व मिलने के साथसाथ फफूंदजनित रोगों का प्रकोप भी कम होता है.
* बोआई से पहले बीज उपचारित करने के लिए 5 ग्राम ट्राइकोडर्मास्यूडोमोनास को 100 मिलीलिटर पानी में मिला कर घोल बना दें और इस घोल में सब्जियों की 300-350 ग्राम बीज को 30 मिनट के लिए डाल दें. इस के बाद उपचारित बीज को छाया में सुखा कर बीज की बोआई करें. ऐसा करने से भी बीज जमाव व पौधों के विकास के समय फफूंदजनित रोगों के प्रकोप की संभावना कम रहती है.
* बीज जमाव के बाद पौधों में आर्द्र गलन रोग (डंपिंग औफ डिजीज) के प्रकोप की संभावना अधिक होती है. इस अवधि में बैड की दिन में 2 बार सुबह व शाम के समय निगरानी करें.
रोग के प्रकोप का लक्षण दिखाई देते ही कार्बेंडाजिम मैंकोजेब की एक ग्राम मात्रा एक लिटर पानी में घोल बना कर पौधों पर और पौधों की जड़ों के आसपास छिड़काव करें.
इस रोग का प्रकोप सभी सब्जियों में बीज जमाव के बाद व पौधों के विकास के समय देखा जाता है. वर्षा के मौसम में इस रोग का प्रकोप ज्यादाहोता है.
पोषण प्रबंधन
* पौध तैयार करने के लिए एक मीटर चौड़ी तथा 40 मीटर लंबी बैड में 5 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद या 3 क्विंटल वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल करने पर किसी रासायनिक उर्वरकों की जरूरत नहीं होती है.
* प्याज की पौध तैयार करते समय पत्तियों में पीलापन की समस्या आती है. इस के लिए 2 ग्राम यूरिया प्रति लिटर पानी में घोल बना कर 7 दिनों के अंतराल पर 2-3 छिड़काव करने से समस्या का प्रभावी समाधान हो जाता है. इस से पौधों की मोटाई व बढ़वार में भी मदद मिलती है.
* दूसरी सब्जियों में बोआई के 15 दिनों बाद एनपीके (19:19:19) को 2 ग्राम प्रति लिटर पानी में घोल बना कर एक छिड़काव करने से पौधों की बढ़वार में मदद मिलती है.