हमारे देश में जैविक खाद आधारित कृषि पुराने समय से की जा रही है. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हरित क्रांति के दौर में रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों का शीघ्रता से प्रयोग हुआ जिस के परिणामस्वरूप खाद्य उत्पादन में वृद्धि हुईं परंतु अधिक मात्रा में रासायनिक खादों के प्रयोग से वातावरण दूषित हुआ जिस से मानव जीवन प्रभावित हुआ.

जैविक खेती के लिए किसान निम्नलिखित तकनीकी को प्रयोग में ला सकते हैं.

* मृदा संरक्षण के लिए पलवार प्रयोग.

* मिट्टी में पोषक तत्त्व संतुलन हेतु दलहनी फसलों की एकल, मिश्रित तथा अंतर्शस्ययन.

* मृदा में कृषि अवशेष, वर्मी कंपोस्ट, कंपोस्ट, जीवाणुखाद तथा बायोडायनामिक कंपोस्ट का प्रयोग.

* जैविक उवरकों के प्रयोग का महत्त्व है जिस में राइजोबियम, एजोटोबैकटर, पीएसबी एवं बीजीए प्रमुख हैं. जैविक उवरकों के प्रयोग का मुख्य आकर्षण है उन के उत्पादन और उपयोग की सफलता एवं न्यून लागत.

* पौध सुरक्षा हेतु खरपतवार की सफाई तथा जैविक कीटनाशियों का प्रयोग.

* फसल चक्र, हरित खाद, भूपरिष्करण तथा खाद प्रबंधन द्वारा फसलों में खरपतवार प्रबंधन.

* उपरोक्त तकनीकी द्वारा जैविक किसान अपने फसलों में पोषक तत्त्व तथा कीट एवं व्याधि प्रबंधन करते हैं.

* पोषक तत्त्व प्रबंधन हेतु देश के विभिन्न भागों में समाहित देशी तकनीक.

* देश के विभिन्न भागों में मृदा में पोषक तत्त्व प्रबंधन हेतु किसानों द्वारा अपनाई जा रही तकनीकियों का अवलोकन करें तो पता चलता है कि देश के अधिकतर हिस्से में किसान स्थानीय रूप से उपलब्ध पोषक तत्त्वों के जैविक श्रोतों का ही प्रयोग करते हैं.

* ऐसे स्थानीय खाद, जीवांश अथवा जैविक अवशिष्ट का प्रयोग किसानों के एक लंबे प्रयोग का परिणाम है.

* ये कृषि क्रियाएं क्षेत्र विशेष के किसानों के सामाजिक परंपराओं तथा मान्यताओं को भी अहमियत देते हैं.

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