बहुत से भारतीय घरों में नीबूघास या लेमनग्रास उगाई जाती है. इसे औषधीय पौधा माना जाता है. इसे लेमनग्रास, चायना ग्रास, भारतीय नीबूघास, मालाबारघास और कोचीनघास भी कहते हैं. इस की पत्तियां चाय में डालने के लिए इस्तेमाल की जाती हैं.

इस की पत्तियों में एक खास महक होती है. इन्हें चाय में उबाल कर पीने से ताजगी आती है और सर्दी आदि से राहत मिलती है.

इस की खेती के लिए डूंगरपुर, बांसवाड़ा व प्रतापगढ़ के कुछ हिस्से खास हैं, जहां यह कुदरती तौर पर पैदा होती है. नीबूघास की एक बार बोआई करने के बाद 5 सालों तक इस से उत्पादन मिलता है. केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आसाम, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश व राजस्थान राज्यों में बड़े पैमाने पर इस की खेती की जाती है.

नीबूघास से लेमनग्रास तेल हासिल किया जा सकता है. यह इस के पत्तों व तने से हासिल किया जा सकता है.

अहमियत

इसे चाय के साथ लेना चाहिए, क्योंकि यह बुखार, कफ और सर्दी में फायदा करती है. इस में विटामिन सी काफी मात्रा में होता है, इसलिए यह शरीर के कुछ तत्त्वों को संतुलित करती है. ताजी या सूखी दोनों तरह की लेमनग्रास का इस्तेमाल किया जा सकता है. इस का तना पत्तेदार प्याज की तरह होता है. जब इसे टुकड़ों में काटा जाता है, तब इस की खट्टी महक फैल जाती है. इस का फ्लेवर नीबू की तरह होता है. इस की छाल का भी इस्तेमाल किया जा सकता है, पर इस की सुगंध उतनी उम्दा नहीं होती.

इसे करी व सूप वगैरह में इस्तेमाल किया जा सकता है. चिकन और समुद्री खाद्य पदार्थों में इस का ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है. इस के नीचे का हिस्सा ही खाने लायक होता है. इसे महीन और पतला काटना चाहिए. फ्लवेर लाने के लिए इस के पूरे तने को जगहजगह से काट कर करी या सूप वगैरह में डाल देना चाहिए और परोसने से पहले इसे निकाल देना चाहिए. पाउडर  के रूप में भी इस का इस्तेमाल हो सकता है. यदि करी या सूप में इस का इस्तेमाल लहसुन, धनिया व मिर्च के साथ किया जाए, तो बहुत अचछा स्वाद आता है.

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