देश में 400 से अधिक जिलों के भूजल में घातक रसायन मिलने से पीने के स्वच्छ व शुद्ध जल का गंभीर संकट धीरेधीरे पैदा होने लगा है. इस बात को ध्यान में रखते हुए सभी लोगों खासकर किसानों को जो अंधाधुंध फर्टिलाइजर का अपने खेतों में इस्तेमाल कर रहे हैं, उस पर अंकुश लगाना होगा.
वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध में पाया गया है कि कई जिलों के भूजल में जहां पहले से ही फ्लोराइड और सैनिक आयरन व हैवी मैटल निर्धारित मानक से काफी अधिक था, वहीं ज्यादातर जिलों में नाइट्रेट और आयरन की मात्रा बढ़ रही है.
एक तरह से यह मानवजनित अतिक्रमण है. उन राज्यों के भूजल में नाइट्रेट ज्यादा बढ़ रहा है, जहां सघन खेती में फर्टिलाइजर का अंधाधुंध तरीके से इस्तेमाल हो रहा है. हैवी मैटल और अन्य घातक रसायनों के भूजल में होने से पेयजल की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है.
रिपोर्ट में देश के 18 राज्यों के 249 जिलों का भूजल खारा है, वहीं 23 राज्यों के 370 जिलों में सामान्य मानक से अधिक पाया गया है, इसलिए आज जरूरत इस बात की है कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब व हरियाणा के ज्यादातर जिले नाइट्रेट की बढ़ती हुई भूजल में मात्रा से प्रभावित हो रहे हैं, इसलिए सभी को कोशिश करनी चाहिए कि भूजल को सुरक्षित रखने के लिए कम से कम रसायनों का इस्तेमाल करें और जैविक खेती यानी प्राकृतिक खेती को कर के अपने भोजन को प्रदूषित होने से बचाएं, जिस से मानव जीवन आगामी वर्षों में सुरक्षित हो सके.
नाइट्रेट व मत्स्य उत्पादन
जलस्रोतों में बढ़ते हुए नाइट्रेट और फास्फेट स्तर के कारण पोषक तत्त्वों की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाती है. नतीजतन, नीलहरित शैवाल की अत्यधिक वृद्धि हो जाती है, जो सुपोषण का एक प्रमुख कारक बन जाती है.
ये शैवाल वृद्धि जलस्रोतों में अरुचिप्रद स्थिति पैदा कर देती है, क्योंकि कुछ नीलहरित शैवाल विषैली होती है. औक्सीजन की कमी होने के कारण अवायवीय स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिस के कारण मछलियों की मौत हो जाती है.
नाइट्रेट का पशुओं पर प्रभाव
सभी रोमंथी पशुओं जैसे गाय, भैंस, बकरी इत्यादि में नाइट्रेट विषाक्तता देखी गई है. जई, बाजरा, मक्का, गेहूं, जौ, सूडान ग्रास और राई घास ऐसे पौधे हैं, जिन में नाइट्रेट की मात्रा अधिक होती है. ये चारे हमेशा ही जहरीले हों, ऐसा नहीं है. कुछ हालात को छोड़ कर ये पशुओं के लिए उत्तम हैं.
यदि चारे को ऐसी भूमि में उगाया जाए, जिस में कार्बनिक और नाइट्रोजन तत्त्व अधिक हों और नाइट्रोजन उर्वरक अधिक मात्रा में प्रयोग किए गए हों या जल्दी में यूरिया जैसे उर्वरक का चारों ओर छिड़काव किया गया हो, तो ऐसे हालात में इन चारों में नाइट्रेट विषाक्तता अधिक हो जाती है.
अनुसंधानों से पता चला है कि गोबर और पेशाब के गड्ढों पर उगने वाली पारा घास में नाइट्रेट विष की मात्रा 4.73 फीसदी तक हो सकती है. जिस चारे में 1.5 फीसदी से अधिक नाइट्रेट (पोटैशियम नाइट्रेट के रूप में) होता है, उस को खाने पर पशुओं में विषाक्तता हो सकती है.
नाइट्रेट विषाक्तता पशुओं में जठर आंत्र शोध पैदा करता है. चारागाह में चरते हुए पशुओं की इस कारण अचानक मौत भी देखी गई है. तेज दर्द, लार का गिरना, कभीकभी पेट फूलना और बहुमूत्रता जैसे लक्षणों के साथ रोग का एकाएक प्रकोप होता है. इस से शीघ्र ही निराशा, कमजोरी व अवसन्नता के लक्षण प्रकट हो जाते हैं. सांस का तेजी से चलना और सांस लेने में तकलीफ होना, तेज नाड़ी, लड़खड़ाना व तापमान का कम हो जाना भी इस रोग के अन्य लक्षण हैं.
भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर, बरेली के वैज्ञानिकों ने पारा घास खाने से बछड़ों में अति तेज नाइट्रेट विषाक्तता और बकरियों में चिरकारी नाइट्रेट विषाक्तता बताया है.
देश के शुष्क क्षेत्रों में अत्यधिक नाइट्रेटयुक्त जल गरमियों के दिनों में प्यासे पशु जब एकसाथ अधिक पानी पी लेते हैं, तो उन में नाइट्रेट विषाक्तता पैदा हो जाती है, जो कभीकभी उन की मौत की वजह भी बन जाती है. कई दुधारू पशुओं में नाइट्रेटयुक्त पानी पीने से दूध में कमी व गर्भपात भी देखे गए हैं.