आमतौर पर केपेरिस डेसिडुआ को कैर, करील, कोरीरा, वण वगैरह नामों से जाना जाता है. यह जंगली अवस्था में पाया जाने वाला फल है. कैर के पौधे उत्तरी भारत में अरावली, हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड की पहाडि़यों, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र में बहुतायत से पाया जाता हैं.

लोकल भाषा में कैर के फलों को टेंटी, टींट वगैरह नामों से भी जाना जाता है. कैर के फलों में अल्केलौयड, फेनोल्स और दूसरे रसायन पाए जाते हैं. इस के बीजों से 1 स्टेकईहाइड्रिन निकाला जाता है जो अस्थमा व ट्यूबरकुलोसिस यानी टीबी जैसी गंभीर बीमारियों से लड़ने की कूवत प्रदान करता है. इस की जड़छाल में कैपरीडीसीन और कैप्रीसिन नामक औषधीय तत्त्व पाए जाते हैं.

भारत में अनेक तरह की जलवायु होने की वजह से यहां अनेक तरह के फलों का उत्पादन किया जाता है, पर समुचित तुड़ाई के बाद प्रबंधन न होने से हर साल तकरीबन 20-25 फीसदी से भी ज्यादा फलों का नुकसान हो जाता है. हमारे यहां अभी भी विकसित देशों की तुलना में फलों व सब्जियों की प्रोसैसिंग बहुत कम है.

यह थार रेगिस्तान में जंगली अवस्था में मिलते हैं, जहां जनजाति बहुल गांव वालों द्वारा इस्तेमाल में लिया जाता है. इस का पौधा झाड़ीनुमा, पर्णरहित और हलके कांटे लिए होता है. इस के फूल हलके गुलाबी रंग के और कच्चे फल गोल व हलके हरे रंग के मटर के दाने के आकार के होते हैं जो पकने के बाद गुलाबी रंग के हो जाते हैं.

शुरुआती शोध नतीजों में यह पाया गया है कि यह कैंसर उपचार में लाभदायक है. इस के पके हुए फलों में बीटा कैरोटीन, आयरन व थैलिक अम्ल की प्रचुरता होती है.

इन का इस्तेमाल अस्थमा, मधुमेह, कफ, दमा वगैरह रोगोपचार के लिए किया जाता है. इस के पके हुए फलों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन व क्रूड फाइबर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है.

कैर के फलों में कड़वापन होने के चलते इसे सीधा उपयोग में नहीं लिया जाता. हालांकि पके हुए फलों में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है और कड़वापन भी कम हो जाता है जिस से उन को खाने के काम में ले सकते हैं. इस के कच्चे फलों से अचार बनाया जाता है जो कि हमारे भोजन में औषधीय तत्त्वों का समावेश करता है.

पश्चिमी राजस्थान में कैर सांगरी की सब्जी बनाई जाती है. रैस्टोरैंट में इस सब्जी की काफी कीमत होती है.

कैर, काचरी, खेजरी व लसोड़ा को मिला कर भी एक स्वादिष्ठ सब्जी बनाई जाती है. इस की अपनी एक अलग ही पहचान है.

कैर फलों का प्रसंस्करण व मूल्य संवर्धन कर खाद्य व पोषण सुरक्षा जैसी चुनौतियों से आसानी से  निबटा जा सकता है. इन के उत्पादों को बेच कर छोटे किसानों की आमदनी का अलग से जरीया भी बन जाता है.

अचार बनाने की विधि

सामान : 1 किलोग्राम कैर फल, 120-130 ग्राम नमक, 5 ग्राम हलदी, 10 ग्राम कलौंजी, 10 ग्राम मिर्च पाउडर, 10-15 ग्राम मेथी के दाने, 4.5 लौंग और 400 मिलीलिटर सरसों का तेल.

कैर के फलों से अचार बनाने के लिए उन्हें कच्ची अवस्था में ही तोड़ा जाता है. फलों की तुड़ाई के बाद छंटनी करें और डंठल, सड़ेगले फलों को अलग कर उन को पानी से साफ करें. फलों को मिट्टी के बरतन में छाछ व थोड़ा सा नमक (50 ग्राम) में डुबो कर 3-4 दिन तक रखें. इस से फलों का कड़वापन दूर हो जाता है और मुलायम हो जाते हैं.

4 दिन बाद फलों को मिट्टी के बरतन में निकाल कर पानी से साफ कर लें. सरसों के तेल को गरम कर उस को ठंडा होने के लिए रखें. ठंडा होने के बाद थोड़े से तेल में सारे मसाले अच्छी तरह से मिला लें. अब इस मिश्रण में बचा हुआ तेल भी मिला दें. अचार के मिश्रण को कांच के जार में भर कर किसी ठंडी व महफूज जगह पर रख दें.

कैर फल (kair fruit)

कैर फलों से पंचकुटा

पंचकुटा राजस्थानी सब्जी है. पंचकुटा की सब्जी 5 तरह के फलों (कैर, सांगरी, लसोड़ा, कुम्मट और अमचूर) से मिल कर बनती है जो बाजरे की रोटी (आमतौर पर टुक्कड़) के साथ खाई जाती है.

मरू महोत्सव, ऊंट महोत्सव, शीतला अष्टमी जैसे त्योहारों पर इस का चलन बहुत ज्यादा रहता है और पांचसितारा होटलों में भी लोग इसे बड़े ही चाव से खाते हैं.

पंचकुटा का सामान

एक कटोरा केर, सांगरी, लसोड़ा और कुम्मट के फल, एक बड़ा चम्मच सरसों का तेल, एक चुटकी हींग, आधा छोटा चम्मच राई के दाने, आधा चम्मच जीरा, एक चम्मच लाल मिर्च पाउडर, आधा चम्मच हलदी, 2 चम्मच पिसा धनिया पाउडर, एक चम्मच अमचूर, एक आखी लाल मिर्च, एकचौथाई गरम मसाला व नमक स्वादानुसार.

बनाने की विधि

पंचकुटा बनाने के लिए सब से पहले सभी फलों व बीजों को रातभर पानी में भिगो कर रखें ताकि वे साफ व मुलायम हो जाएं. फिर भी अगर वे थोड़ा ठोस हैं तो प्रैशर कुकर में 3 सीटी आने तक उबाल लें. फिर इस को ठंडा होने के लिए रख दें.

दूसरी तरफ कड़ाही में तेल गरम होने के लिए रख दें. गरम होने पर दूसरी सब्जियों की तरह इस में राई के दाने, जीरा व एक चुटकी हींग को डालें. धीमी आंच पर इन को तल लें. इस के बाद इस में कैर, सांगरी, लसोड़ा व कुम्मट वाला उबला हुआ मिश्रण डालें व थोड़ा तल लें. कुछ मिनट बाद इस में सभी मसाले अच्छी तरह मिला लें और कुछ समय तक पकने दें.

पकाते समय बीचबीच में हिलाते रहें ताकि सतह पर जले नहीं. सब्जी तैयार होने पर बाजरे के टुक्कड़ के साथ परोसें.

उपज की प्रोसैसिंग कर बेहतर मुनाफा लें

ज्यादातर किसान कड़ी मेहनत से तैयार कर अपनी फसल को सीधे बाजार में बेच देते हैं जबकि कुछ फसलें ऐसी होती हैं जिस की वे प्रोसैसिंग कर अधिक मुनाफा ले सकते हैं.

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली के फूड साइंस ऐंड पोस्ट हार्वैस्ट टैक्नोलौजी के अनुसार, आज के दौर में किसान अपने उत्पादों में मूल्य संवर्धन बड़ी आसानी से कर सकते हैं. इस के लिए किसान को समय के साथ चलने और जागरूक होने की जरूरत है.

आमतौर पर 1 लिटर दूध 50-55 रुपए में बिकता है, अगर इसी दूध को आप प्रोसैसिंग कर इस से मक्खन और छाछ अलग कर दें, फिर इन्हें बेचें तो इस की कीमत दोगुनी से ज्यादा हो जाएगी. इस के अलावा दूध से आप दही, छाछ, पनीर वगैरह भी बना कर अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं.

आज के समय में बहुत से किसान सोयाबीन उगाते हैं और बाद में परेशान होते हैं कि हमें फसल से खासा मुनाफा नहीं हुआ. इसी सोयाबीन से आप दूध और पनीर बना सकते हैं.

आजकल सोयाबीन से बने दूध और पनीर की बाजार में खासी मांग है. अनेक कसरत करने वाले नौजवान भी सोयाबीन के दूध को काफी तवज्जुह देते हैं.

इसी तरह से बाजरे से पास्ता, बिसकुट, केक जैसी अनेक चीजें बनाई जाती हैं. आलू से बने चिप्स भी कई गुना ज्यादा मुनाफा देते हैं.

अनेक प्रकार के अचार, जैम, सौस वगैरह भी बनाए जा सकते हैं. ये बातें तभी मुमकिन होंगी, जब किसान जागरूक होंगे. किसानों को बाजार की मांग और आज के दौर के हिसाब से खुद को बदलना होगा.

आज के समय में अनेक संस्थानों, कृषि संस्थाओं वगैरह में इस तरह की ट्रेनिंग दी जाती हैं जहां से सीख कर और प्रोसैसिंग मशीनों की जानकारी ले कर किसान खुद का काम कर अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की ओर से ऐसी कई तकनीकें विकसित की गई हैं, जिन का इस्तेमाल कर किसान अपने उत्पादों की आसानी से ज्यादा कीमत ले सकते हैं.

आज अनेक लोग इस तरह की ट्रेनिंग ले कर अपने उत्पादों की प्रोसैसिंग कर खासी कमाई कर रहे हैं.

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