जमीन की खरीदफरोख्त से ले कर मेंड़बंदी, आपसी बंटवारा, किसान क्रैडिट कार्ड, खेती के औजार खरीदने तक के लिए किसानों को पटवारी, राजस्व निरीक्षक और तहसीलदार व कृषि विभाग के दफ्तर के चक्कर काटने पड़ते हैं. चाहे किसान की अपनी पुश्तैनी जमीन का परिवार के लोगों के बीच बंटवारे का मामला हो या किसान के खेतों की जमीन का कुछ हिस्सा दूसरे किसान ने दबा लिया हो, ऐसे हालात में पटवारी और राजस्व विभाग के अधिकारी इन मामलों में महीनों का समय लगा देते हैं.
अगर किसान को अपनी जमीन की काश्तकारी के अलावा किसी दूसरे उपयोग जैसे मकानदुकान बनाना, वेयरहाउस, आवासीय कालोनी जैसे कामों में इस्तेमाल करना हो तो जमीन का डायवर्जन कराना अनिवार्य हो जाता है तभी बैंक से लोन की सुविधा मिल पाती है.
मध्य प्रदेश में वर्तमान समय में डायवर्जन के नियम इतने सख्त हैं कि जमीन के मालिक के लिए रिश्वत देने के बावजूद भी सालों का समय लग जाता है.
किसानों की इसी तरह की दिक्कतों को देखते हुए मध्य प्रदेश सरकार ने जमीन सुधार आयोग बना कर नियमकानूनों को आसान बनाने की पहल की है.
राजस्व विभाग में भ्रष्टाचार की बढ़ती शिकायतों को देखते हुए मध्य प्रदेश सरकार ने भू राजस्व संहिता विधेयक में अनेक नियमों में बदलाव कर जमीन के नामांतरण और सीमांकन की प्रक्रिया को आसान बनाया है.
नए नियमों के मुताबिक, जमीन के नामांतरण के लिए अब किसी जमीन के मालिक को अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) की अदालत से इजाजत लेने की जरूरत नहीं होगी. अब भू स्वामी अपनी जमीन का विधिसम्मत जैसा इस्तेमाल करना चाहे करेगा, उसे केवल डायवर्जन के मुताबिक जमीन इस्तेमाल के लिए देय राशि भू राजस्व और प्रीमियम की राशि की खुद ही गणना कर चालान के जरीए बैंक में जमा करानी होगी और इस की सूचना अनुविभागीय अधिकारी को देनी होगी.
जमा किए गए चालान की यह रसीद ही डायवर्जन का प्रमाण मानी जाएगी. लाइसैंस या अनुज्ञा लेने का प्रावधान अब सरकार द्वारा खत्म किया जा रहा है.
भू अभिलेख संधारण के मामलों में ऐसी जमीनें, जिन का इस्तेमाल खेती की जमीन से अलग दूसरे किसी काम के लिए कर लिया जाता है, उन्हें राजस्व विभाग के नक्शों में ब्लैक के रूप में दिखाया जाएगा. अगर अनेक भूखंडधारक हैं तो उन के अलगअलग नाम से भूखंड दिखाए जाएंगे.
मध्य प्रदेश सरकार ने किसानों के हित में विधानसभा में प्रस्ताव पास कर भू राजस्व संहिता (संशोधन) विधेयक 2018 पारित किया है.
मध्य प्रदेश भू राजस्व संहिता 1959 में अब तक 58 संशोधन यानी सुधार किए जा चुके हैं. इस के बाद भी लोगों की इच्छाओं की पूर्ति के लिए जरूरी संशोधनों के सुझाव के लिए जमीन सुधार आयोग बनाया गया है.
आयोग के सुझावों के आधार पर ही भू राजस्व संहिता में संशोधन किए गए हैं. नए नियम बनने से किसानों की जमीनजायदाद से संबंधित अनेक समस्याओं का समाधान हो जाएगा.
निजी एजेंसी करेगी सीमांकन
किसानों के लिए जमीन का सीमांकन बहुत ही कठिन प्रक्रिया होती है. कई बार खेत की मेंड़ और हदबंदी को ले कर किसानों के बीच खूनी झगड़े तक हो जाते हैं. मध्य प्रदेश में वर्तमान समय में सीमांकन के बहुत ज्यादा मामले राजस्व अदालतों में धूल खा रहे हैं.
राजस्व विभाग में पटवारी से ले कर तहसीलदारों तक की कमी है. इस के चलते किसानों के सीमांकन के मामले सालोंसाल से लंबित पड़े रहते हैं.
जमीन सुधार आयोग की सिफारिश पर बनने वाले नए नियमों के मुताबिक अब सीमांकन की प्रक्रिया जल्दी निबटाने के लिए निजी सीमांकन एजेंसी की मदद ली जा सकेगी. हर जिले के लिए एजेंसी का चयन सरकार द्वारा किया जाएगा.
किसानों द्वारा अपनी जमीन के सीमांकन के आवेदन और शुल्क तहसीलदार की अदालत में जमा होने के बाद तहसीलदार द्वारा ऐसी निजी सीमांकन एजेंसी से किसानों के खेतों का सीमांकन कराया जाएगा.
इस बारे में अनुविभागीय अधिकारी मोहम्मद इकबाल का कहना है कि अगर तहसीलदार द्वारा सीमांकन आदेश के बाद पक्षकार खुश नहीं है तो वह फिर से अनुविभागीय अधिकारी को आवेदन कर सकेगा. अनुविभागीय अधिकारी द्वारा विशेषज्ञ कर्मचारियों की टीम से सीमांकन कराया जाएगा.
अपील के ऐसे मामले पहले राजस्व मंडल, ग्वालियर में पेश होते थे जिस में काफी समय लगता था और सीमांकन की अपील करना हर किसान के बूते की बात नहीं थी. भू राजस्व संहिता में हुए इन संशोधनों के चलते अब सीमांकन की प्रक्रिया आसान भी होगी और इस में लगने वाले समय की बचत भी होगी.
नामांतरण की मुफ्त प्रति
एक किसान की पुश्तैनी जमीन का बंटवारा जब सगे भाईबहनों में आपसी रजामंदी से होता है तब भी राजस्व विभाग के मुलाजिम लंबी प्रक्रिया का हवाला दे कर पैसों की मांग करते हैं और किसान महीनों पटवारीतहसीलदार के आगेपीछे घूमते रहते हैं.
किसानों की इन्हीं परेशानियों को कम करने के लिए नए नियम बना कर इस प्रक्रिया को आसान बनाया गया है.
तहसीलदार गीतांजलि शर्मा बताती हैं कि नए नियमों के आने से किसानों की मुश्किलें कम जरूर होंगी. भू राजस्व संहिता में किए गए संशोधनों के तहत आपसी बंटवारे और नामांतरण के प्रकरणों में नामांतरण का आदेश होने के बाद अब सभी संबंधित पक्षों को आदेश और सभी भू अभिलेखों में दर्ज हो जाने के बाद उस की मुफ्त प्रति दी जाएगी. साथ ही यह प्रावधान भी किया गया है कि भू स्वामी जितनी चाहे, उतनी जमीन खुद के लिए रख कर बाकी बची जमीन अपने बेटेबेटियों या सगेसंबंधियों को बांट सकेगा.
और भी सुविधाएं मिलेंगी
भू राजस्व संहिता में किए गए संशोधनों से गांव व शहरी इलाकों में राजस्व सर्वे और बंदोबस्त से संबंधित रहे भू राजस्व संहिता के अध्याय 7 और 8 को हटा कर एक अध्याय 7 भू सर्वेक्षण के रूप में रखा जा रहा है.
राजस्व सर्वेक्षण के स्थान पर अब भू सर्वेक्षण की कार्यवाही कलक्टर के नियंत्रण में कराई जाएगी. अब पूरे जिले को भू सर्वेक्षण के लिए अधिसूचित करने की जरूरत नहीं रहेगी.
अब तहसील या तहसील से भी छोटे इलाके को भी अधिसूचित किया जा सकेगा. खसरे में छोटेछोटे मकानों व प्लाट का ब्योरा भी दर्ज हो सकेगा.
मध्य प्रदेश में पटवारियों की कमी के चलते आज भी 2 से 4 हलकों का प्रभार एक पटवारी के पास है. यही वजह है कि पटवारी किसानों के जायज कामों को समय पर पूरा नहीं कर पाते. भू अभिलेखों के संधारण और शहरी भूमि प्रबंधन को ज्यादा व्यवस्थित बनाने के लिए प्रत्येक ग्राम पंचायत लैवल पर एक सैक्टर बनाया जाएगा. इसी तरह शहरी इलाकों में भी अब पटवारी हलके के स्थान पर सैक्टर का नाम दिया जाएगा. आयुक्त भू अभिलेख को सैक्टर पुनर्गठन के हक दे दिए गए हैं.