मक्का एक प्रमुख खाद्य फसल है, जो मोटे अनाजों की श्रेणी में आता है. यह मक्का या भुट्टा का ही एक रूप है. भारत में मक्का की खेती जिन राज्यों में बड़े पैमाने पर की जाती है, वे हैं, आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, राजस्थान, उत्तर प्रदेश वगैरह. इन में से राजस्थान में मक्के का सर्वाधिक क्षेत्रफल है वहीं आंध्र प्रदेश में इस का सर्वाधिक उत्पादन होता है. लेकिन इस का महत्त्व जम्मूकश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पूर्वोत्तर राज्यों, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात व झारखंड में भी काफी अधिक है.
कुल मक्का उत्पादन का 80 फीसदी से अधिक आंध्र प्रदेश (20.9 फीसदी), कर्नाटक (16.5 फीसदी), राजस्थान (9.9 फीसदी), महाराष्ट्र (9.1 फीसदी), बिहार (8.9 फीसदी), उत्तर प्रदेश (6.1 फीसदी), मध्य प्रदेश (5.7 फीसदी), हिमाचल प्रदेश (4.4 फीसदी) आदि राज्यों में होता है.
अब मक्का को कौर्न, पौपकौर्न, स्वीटकौर्न, बेबीकौर्न आदि अनेकों रूप में पहचान मिल चुकी है. किसी दूसरी फसल में इतनी विविधता कहां देखने को मिलती है.
दुनिया के अनेक देशों में मक्के की खेती प्रचलित है, जिन में क्षेत्रफल एवं उत्पादन के हिसाब से संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, चीन और ब्राजील का क्रमश: पहला, दूसरा और तीसरा स्थान है.
बीजोपचार है जरूरी
फफूंदीनाशक बीजोपचार : बोने से पहले बीजों को थायरम या कार्बंडाजिम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें. इन्हें पानी में मिला कर गीला पेस्ट बना कर बीज पर लगाएं.
कीटनाशक बीजोपचार : बीज और नए पौधों को रस चूसक व मिट्टी में रहने वाले कीटों से बचाने के लिए कीटनाशक से बीजोपचार जरूरी है. बीज को थायोमेथोक्जाम या इमिडाक्लोप्रिड 1 से 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें.
जैविक टीके से बीजोपचार : फफूंदीनाशक और कीटनाशक से उपचार के बाद बीज को एजोटोबैक्टर 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचारित कर के तुरंत बोआई करें.
हानिकारक कीट और उन की रोकथाम
तना छेदक : इस कीट की रोकथाम करने के लिए कार्बोफ्यूरान 3जी 20 किलोग्राम अथवा फोरेट 10 फीसदी सीजी 20 किलोग्राम अथवा डाईमेथोएट 30 फीसदी ईसी 1.0 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से अथवा क्विनालफास 25 फीसदी ईसी 1.50 लिटर को छिड़कें.
गुलाबी छेदक : इस कीट को रोकने के लिए कार्बोफ्यूरान 5 फीसदी डब्ल्यू/डब्ल्यू 2.5 ग्राम से प्रति किलोग्राम बीज का उपचार करें.
इस के अलावा अंकुरण से 10 दिन बाद 4 किलोग्राम ट्राईकोकार्ड प्रति एकड़ डालने से भी नुकसान से बचा जा सकता है. रोशनी और फैरोमौन कार्ड भी पतंगे को पकड़ने के लिए प्रयोग किए जाते हैं.
कौर्न वार्म : रासायनिक नियंत्रण के लिए बोआई से एक हफ्ते पूर्व खेत में 10 किलोग्राम फोरेट 10जी फैला कर मिला दें.
शाख का कीट : इसे रोकने के लिए डाईमेथोएट 2 मिलीलिटर को प्रति लिटर पानी में मिला कर स्प्रे करें.
दीमक : खड़ी फसल में प्रकोप होने पर सिंचाई के समय क्लोरोपाइरीफास 20 फीसदी ईसी 2.5 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें.
शाख की मक्खी : बिजाई के समय मिट्टी में फोरेट 10जी 5 किलोग्राम प्रति एकड़ डालें. इस के इलावा डाईमेथोएट 30 फीसदी ईसी 300 मिलीलिटर या मिथाइल डेमेटान 25 फीसदी ईसी 450 मिलीलिटर को प्रति एकड़ में स्प्रे करें.
हानिकारक रोग और उन की रोकथाम
तने का गलना : इसे रोकने के लिए खेत में पानी खड़ा न होने दें. साथ ही, जल निकास की तरफ ध्यान दें. रोग दिखाई देने पर 15 ग्राम स्ट्रैप्टोसाइक्लीन अथवा 60 ग्राम एग्रीमाइसीन और 500 ग्राम कौपरऔक्सीक्लोराइड प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने से अधिक लाभ होता है अथवा 150 ग्राम केप्टान को 100 लिटर पानी में घोल कर जड़ों पर डालना चाहिए.
पत्ती झुलसा रोग : इस की रोकथाम के लिए डाइथेन एम-45 या जिनेब 2.0-2.5 ग्राम प्रति लिटर पानी में मिला कर 7-10 दिन के फासले पर 2-4 स्प्रे करने से इस रोग को शुरुआती समय में ही रोका जा सकता है.
पत्तों के नीचे भूरे रंग के धब्बे : इस की रोकथाम के लिए प्रभावित पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें और मैटालैक्सिल 1 ग्राम या मैटालैक्सिल+मैंकोजेब 2.5 ग्राम को प्रति लिटर पानी में मिला कर स्प्रे करें.
तुलासिता रोग : रोकथाम के लिए जिंक मैगनीज कार्बमेट या जीरम 80 फीसदी, 2 किलोग्राम अथवा 27 फीसदी के 3 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव आवश्यक पानी की मात्रा में घोल कर करना चाहिए.