परंपरागत तरीके से खेती करना अब मुनाफे की गारंटी नहीं है. खेती में नवाचारों के माध्यम से किसान चाहें तो आमदनी बढ़ा सकते हैं. नोटबंदी की मार से बेरोजगारी बढ़ रही है और युवाओं को नौकरी का भरोसा नहीं रह गया है. ऐसे में पढ़ेलिखे नौजवानों का  रुझान खेती की तरफ ज्यादा हुआ है. खेतीकिसानी के कामों को प्रयोगधर्मी किसान नएनए तरीके से कर के छोटेछोटे रकबों में ही अच्छाखासा मुनाफा कमा रहे हैं.

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के एक गांव सिंहपुर बड़ा के युवा किसान वैभव शर्मा ने परंपरागत खेती की जगह मशरूम की खेती कर के एक मिसाल कायम की है.

वैभव को हार्टीकल्चर से बीएससी की पढ़ाई पूरी करने के बाद ऐजूकेशनल टूर के दौरान हिमाचल प्रदेश के एक मशरूम ट्रेनिंग सैंटर को करीब से देखने का मौका मिला. वहां पर मशरूम की खेती से संबंधित आइडिया ने उन्हें काफी प्रभावित किया.

गांव लौट कर उन्होंने मशरूम की खेती की शुरुआत की और 3 साल की मेहनत ने उन्हें नरसिंहपुर जिले का पहला मशरूम उत्पादक किसान बना दिया.

अपने नवाचारी प्रयोग की बदौलत वैभव आज सीमित जमीन में ही मशरूम का उत्पादन कर लाखों रुपए कमा रहे हैं. पिछले 3 सालों में मशरूम की खेती कर के हर पहलू से वाकिफ होने के बाद उन्होंने व्यावसायिक तौर पर मशरूम की खेती के लिए अपने प्रयासों को बल देना शुरू कर दिया. आने वाले दिनों में वैभव आधुनिक मशीनरी की मदद से मशरूम की खेती के लिए प्लेटफार्म तैयार करने में जुटे हुए हैं.

जिला मुख्यालय से महज 8 किलोमीटर की दूर ग्राम सिंहपुर बड़ा के 28 साला युवा किसान वैभव शर्मा ने बताया कि शुरुआत में तो रायपुर से मशरूम के बीज ला कर खेती शुरू की, लेकिन बाद में खुद भी मशरूम के बीज तैयार करना सीख लिया. इस प्रोजैक्ट पर काम करते हुए उन्हें जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर के कृषि वैज्ञानिकों का काफी मागर्दशन  और  आर्थिक मदद भी मिली.

Mushroom
Mushroom

वैभव के बताए अनुसार उन्होंने पहले ‘आयसर’ किस्म की मशरूम का उत्पादन शुरू किया. इस के बाद इंडिया मार्ट के माध्यम से इस का विक्रय शुरू किया.

वैभव ने बताया कि पहले एक हजार वर्गफुट की जगह में उन्हें अधिकतम 15-20 किलोग्राम मशरूम प्रतिदिन मिलता है, जिस में उन्हें लगभग 40 रुपए प्रति किलोग्राम की लागत आती है. मशरूम को वे ताजा और सूखे दोनों रूपों में बेचते हैं.

उन्होंने बताया कि ताजा मशरूम का दाम 120 रुपए प्रति किलोग्राम और सूखे मशरूम के दाम 500 से 1,200 रुपए प्रति किलोग्राम तक मिल जाते हैं. ताजा मशरूम वे मुंबई भेजते थे, लौकडाउन में ट्रेनों के बंद होने से अब मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के मुलताई में प्रोसैसिंग यूनिट को भेजते हैं.

उन्होंने आगे बताया कि मशरूम की इस खेती से पिछले 3 सालों में उन का टर्नओवर इस साल लगभग 7 से 8 लाख रुपए तक पहुंच गया है. मशरूम उत्पादन के लिए 45 से 60 दिन की अवधि पर्याप्त होती है, इसलिए एक साल में 3 बार मशरूम का उत्पादन उन्हें मिल जाता है.

Mushroom
Mushroom

अपनी कामयाबी से उत्साहित युवा किसान वैभव बताते हैं कि उन्होंने इसे अब व्यावसायिक तौर पर शुरू करने का फैसला लिया है और इस के लिए वे इस साल कुछ मशीनरी भी लगा रहे हैं, जिस से उन्हें मशरूम की खेती के लिए समुचित वातावरण तैयार करने में काफी मदद मिलेगी और गांव के कुछ लोगों को रोजगार भी मिलेगा.

मशरूम के अलावा अचार, पापड़

वैभव ने बताया कि जब ताजा मशरूम बिकने के बाद बच जाता है, तो उसे सुखा लिया जाता है और इस सूखे हुए मशरूम से बड़ी, पापड़, मशरूम, अचार और मशरूम पाउडर भी तैयार कर लिया जाता है. इस के अलावा आने वाले दिनों में वे गांव में ही प्रोसैसिंग यूनिट लगाने की तैयारी भी कर रहे हैं.

वैभव मशरूम को इंडिया मार्ट के माध्यम से भी बेच कर आमदनी हासिल कर रहे हैं. वैभव द्वारा आसपास के गांवों के कुछ किसानों को मशरूम की खेती की ट्रेनिंग भी दी जा

रही है, जिस से कुछ किसान उन से प्रेरणा ले कर मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में काम भी कर रहे हैं. इस से दूसरे किसानों को भी अतिरिक्त आमदनी हो जाती है.

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