बढ़ती जनसंख्या को अनाज उपलब्ध कराने के लिए घटती जोत के साथसाथ संसाधनों की कमी को देखते हुए कृषि वैज्ञानिक किसानों को सघन खेती पद्धति अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं. इस आधुनिक ऊर्जा आधारित कृषि पद्धति ने, जिस में उन्नत किस्मों के साथसाथ रासायनिक उर्वरक व कीटनाशकों का प्रयोग मुख्य है, आज खेती को एक विवादास्पद मोरचे पर ला खड़ा किया है. इस में उत्पादन बनाम प्रदूषण, उत्पादकता बनाम टिकाऊपन, उत्पादन बनाम ऊर्जा आदि पर गहन विचारविमर्श चल रहा है.

असंतुलित कृषि गतिविधियों के परिणामस्वरूप पर्यावरण विघटन का खतरा पैदा हो गया है, जिस ने कृषि वैज्ञानिकों का ध्यान ऐसी कृषि पद्धति की तरफ खींचा है, जो पर्यावरण के अनुकूल हो और टिकाऊ भी.

इस समस्या से नजात पाने में कार्बनिक खेती एक अच्छा विकल्प साबित हो रही है, जो मिट्टी को स्वस्थ बनाए रखती है और पर्यावरण को हानिकारक प्रभावों से बचाती है.

कार्बनिक खेती आमतौर पर ‘प्रकृति की तरफ झुकाव’ आंदोलन के एक हिस्से के रूप में जानी जाती है. यह खेती की एक ऐसी पद्धति है, जिस में रासायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के उपयोग के स्थान पर मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए फार्मवेस्ट, कंपोस्ट, सीवेज, पौधों के बचे भाग आदि का प्रयोग किया जाता है.

आधुनिक कार्बनिक खेती की शुरुआत ब्रिटेन में हुई, जहां एक प्रकार की कृषि पद्धति में मृदा उर्वरता बनाए रखने के लिए कंपोस्ट पर अधिक जोर दिया गया.

सर अलबर्ट होवार्ड (ब्रिटेन) को इस पद्धति का जनक माना जाता है. कार्बनिक किसान वे लोग थे, जो मिट्टी में पोषक तत्त्वों की आपूर्ति खेत अवशिष्ट और हरी खाद से करते थे. रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग बिलकुल भी नहीं करते थे.

जैविक खेती के लाभ

आज जैविक (कार्बनिक) खेती अपनाने के कई फायदे हैं और कार्बनिक उत्पादों का दाम भी अधिक मिल रहे है.

कम ऊर्जा : इस कार्बनिक खेती में ऊर्जा की आवश्यकता कम होती है, अत: लागत भी कम आती है.

अधिक मूल्य : कार्बनिक उत्पादों का दाम भी अधिक मिलता है. ये उत्पाद स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छे माने जाते हैं, अत: लोग इन्हें अधिक खरीदने लगे हैं.

कम मशीनीकरण : इस पद्धति में कृषि कियाएं अधिक नहीं की जाती हैं, अत: कम मशीनों के उपयोग से खेती संभव है और छोटे किसान भी इस को आसानी से अपना सकते हैं.

अच्छी गुणवत्ता : कार्बनिक उत्पाद में अधिक रसायनों का उपयोग नहीं किया जाता, अत: इस में ‘हैल्थ हेजार्ड’ की समस्या नहीं होती है.

कम अवशेष की समस्या : खेत से प्राप्त अवशेष को कंपोस्ट बना कर वापस काम में ले लिया जाता है.

कम प्रदूषण : चूंकि इस कृषि पद्धति में रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होता, अत: मृदा प्रदूषण एवं जल प्रदूषण कम होता है. अवशेष की समस्या भी कम होती है.

अवरोधक

अकार्बनिक खेती से कार्बनिक खेती अपनाने में शुरुआत में निम्न रुकावटें आ सकती हैं, जो किसानों को हतोत्साहित कर सकती हैं:

* आधुनिक अकार्बनिक खेती ने मिट्टी में उपस्थित सूक्ष्म जीवाणुओं को नष्ट कर दिया है. अत: उन के पुनर्निर्माण में 3-4 वर्ष लग सकते हैं.

* शुरुआती समय में फार्म उत्पाद में कुछ गिरावट आ सकती है, जो किसान सह नहीं सकते. अत: उन्हें कार्बनिक खेती अपनाने के लिए अलग से प्रोत्साहन देना जरूरी है.

* भूमि संसाधनों को कार्बनिक खेती से अकार्बनिक खेती की तरफ बदलने में अधिक समय नहीं लगता, लेकिन विपरीत दिशा जाने में समय लगता है.

* सरकारी प्रोत्साहन के अभाव में किसान इस नए आयाम और बाजार में प्रवेश से भयभीत हैं.

अवयव

कार्बनिक खेती मुख्यत: फसलचक्र, उर्वरकों का उपयोग, कीट एवं बीमारियों के नियंत्रक विधियों के संदर्भ में अकार्बनिक खेती से भिन्न है. इस पद्धति के मुख्य अवयव निम्न प्रकार से हैं :

जैविक खाद (आर्गेनिक मैन्योर) : कार्बनिक पदार्थ जैसे फार्म यार्ड मैन्योर (गोबर की खाद), स्लरी, कंपोस्ट, भूसा एवं फसल अवशेष, अन्य फसल उत्पाद, जीवाणु खाद, हरी खाद, फसल अवशेष आदि के माध्यम से भूमि में पोषक तत्त्वों की पूर्ति की जाती है और रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग न के बराबर किया जाता है, जो पर्यावरण की गुणवत्ता बनाए रखने में सहायक होती है.

इन के अलावा कार्बनिक किसान समुद्री खरपतवार, जलीय खरपतवार, खली एवं मछली खादों का उपयोग करते हैं. जैविक खादों के उपयोग से भूमि में कार्बनिक तत्त्वों की मात्रा में वृद्धि होगी, जो इस की जलधारण क्षमता में भी वृद्धि करेगी.

मृदा क्षरण एवं वाष्पोत्सर्जन दर भी कार्बनिक तत्त्वों द्वारा नियंत्रित की जा सकती है. फसलचक्र में दालों वाली फसलों को शामिल करने से मृदा उर्वरता बनाए रखने में सहायता होती है.

जैविक कीट प्रबंधन : कृषि में कीट व बीमारियों का नियंत्रण किसानों व कृषि वैज्ञानिकों दोनों के लिए एक विकट समस्या है. यहां अरासायनिक जैविक कीट नियंत्रण को प्रोत्साहित किया जाता है.

कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं का संरक्षण रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. वानस्पतिक कीटनाशक (बायोपेस्टिसाइड्स) जैसे नीम आधारित उत्पादों के प्रयोग को बढ़ावा देना चाहिए. कुछ चुने हुए जीवाणु कीटनाशक (बीटी आधारित स्ट्र्रेन) भी उपयोगी सिद्ध हुए हैं.

अरासायनिक खरपतवार नियंत्रण : अकार्बनिक खेती के बजाय कार्बनिक किसान खरपतवार नियंत्रण के लिए अधिक यांत्रिक विधियों का प्रयोग करते हैं. खरपतवारनाशियों का उपयोग कम से कम किया जाता है, क्योंकि ये पर्यावरण प्रदूषण का मुख्य कारण है.

शुरुआत कैसे करें

जैविक खेती अपनाने के लिए समुचित व्यवस्था और प्रबंधन के लिए रुके रहने की आवश्यकता नहीं है. इसे सभी किसान आसानी से अपना सकते हैं. इस के लिए जैविक खेती की विधियों का अपनी सुविधानुसार कहीं से भी अनुसरण शुरू करें. छोटे स्तर पर किए गए उपाय ही इस विधा को अपनाने में सहायक होते हैं.

अपनी जोत का कुछ हिस्सा जैविक विधियों द्वारा आधारित खेती के लिए निर्धारित करें और उस के लिए अलग से कार्य योजना अपनाएं. फसलों का चुनाव, कार्बनिक खादों की उपलब्धता और कीट एवं बीमारियों के जैविक नियंत्रण के बारे में जानकारी हासिल करें. उपलब्ध आदानों का समुचित प्रबंधन करें. शुरू में इस विधि को अकार्बनिक खेती के संदर्भ में जांच के लिए अपनाएं और अपने अनुभवों के आधार पर आगे बढ़ें.

कार्य योजना

जैव स्रोतों से पौध पोषण

मिट्टी परीक्षण/भूमि का स्वास्थ्य

  • भूमि की सजीवता बनाए रखें.
  • फसलचक्र दलहन अनाज/तिलहन/नकदी फसलचक्र, भूमि की उर्वरता बनाए रखती है.
  • जीवाणु कल्चरों का प्रयोग लाभदायक है. द्य अंतर्वर्तीय, मिश्रित, बहुफसल, बहुस्तरीय फसल, प्रकृति के पूरक सिद्धांतों/सहअस्तित्व के सिद्धांत को प्रोत्साहित करती है.

जीवांश खाद/कंपोस्ट

उपलब्ध जीवांश को संवर्धित करें : (अ) जीवांश को कदापि न जलाएं. (ब) आवश्यक रूप से कंपोस्ट बनाने की कोई भी विधि अपनाएं. (स) नाडेप कंपोस्ट विधि एक वरदान है. इस विधि से उपलब्ध कंपोस्ट की मात्रा जीवांश में मिट्टी के सम्मिश्रण से दोगुनी करना संभव है. (द) बायोगैस अपनाएं. जीवांश बनाएं खेत के लिए. (ध) कंपोस्ट की गुणवत्ता की वृद्धि के लिए खनिज रौक फास्फेट व नाइट्रोजन स्थिर करने वाले व स्फुट घोलक जीवाणु का उपयोग करें.

वर्मी कंपोस्ट : केंचुए शीघ्रता से जैव पदार्थों को कंपोस्ट में बदल देते हैं.

रासायनिक पौध पोषण : (यदि बहुत ज्यादा जरूरी हो तो) : द्य जैव पौध पोषण की कमी की पूर्ति रासायनिक उर्वरकों से की जाए.

  • उर्वरक की उपयोग क्षमता बढ़ाने के लिए इसे विभाजित एवं उपयुक्त स्थान पर दिया जाए.

एकीकृत भूमि व जल प्रबंघन

भूमि प्रबंधन :

  • भूमि को शोषण, क्षरण, लवणीयता व जल जमाव से बचाएं.
  • खेत की मिट्टी खेत में ही रहे, इस के लिए खेत के चारों तरफ नाली व हलकी मेंड़ बनाएं.
  • अनावश्यक रूप से गहरी जुताई को निरुत्साहित करें.
  • न्यूनतम जुताई पद्धति अपनाएं. ऐसा करने से जमीन में आश्रय पा रहे कार्बनिक जीवांश, सूक्ष्म जीवाणु, केंचुए आदि संरक्षित रहते हैं.
  • भूमि पर किसी भी जीवांश इत्यादि को जलाएं नहीं, अन्यथा भूमि की जैव क्रिया विपरीत रूप से प्रभावित हो जाती है.
  • कटाई के उपरांत बचे हुए पौध अवशेष (गेहूं, धान आदि) को जमीन में रोटावेटर/कृषि कार्य कर मिला दें या उस का कंपोस्ट बनाएं.
  • जैव पदार्थ क्षारीय व लवणीय भूमि सुधार का सशक्त माध्यम है. उन का उपयोग भूमि को स्वस्थ बनाए रखने में करें.

जल प्रबंधन :

  • खेत का पानी खेत में रहे, इस के लिए खेत की हलकी मेंड़बंदी करें व जैव अवरोधक वनस्पति का उपयोग करें.
  • ड्रिप सिंचाई पद्धति अपनाएं.
  • भूमि जल की क्षमता के आधार पर दोहन करें.
  • वर्षा पर निर्भर कृषि में उपलब्ध जल का उपयोग सही बीज अंकुरण एवं जीवनरक्षक सिंचाई के लिए करें.

पारिस्थितिक संतुलन :

  • सूक्ष्म जीवाणुओं का उपयोग कीट व बीमारी नियंत्रण में करें.
  • एंटीफीडेंट, बायोपैस्टीसाइड्स एवं कम जहरीले रसायनों का उपयोग यदि आवश्यक हो, तो उचित समय एवं मात्रा में करें.
  • पक्षी, सर्पवर्ग एवं मेढक को संरक्षण प्रदान करें, क्योंकि ये कीटों को नियंत्रण में रखते हैं.
  • उपयुक्त परजीवियों एवं परभक्षियों का उपयोग कीट नियंत्रण में करें.
  • प्रकाश प्रपंच (फैरोमौन ट्रैप) का उपयोग करें. ये कीट तीव्रता का संकेत देते हैं.

जैविक खेती की नई अवधारणा को अब विश्वस्तर पर मान्यता मिलने लगी है. आज प्रत्येक पर्यावरण संरक्षक इस नई कृषि पद्धति को अपनाने की बात कर रहा है. असंतुलित कृषि प्रक्रियाओं एवं अनियंत्रित कृषि आदानों के उपयोग से आज पर्यावरण को खतरा पैदा हो गया है. इसलिए जैविक खेती दिशा बदलने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी.

जैविक खेती पर्यावरण संरक्षण में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है. इस के माध्यम से प्रदूषण फैलाने वाले कारक जैसे : रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक, खरपतवारनाशी आदि का उपयोग कम हो जाएगा, जो पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में सहायक होगा.

यदि सब्जी उत्पादक पादप पोषण तत्त्वों की आपूर्ति रासायनिक उर्वरकों के बजाय जैव उर्वरकों एवं बायोपैस्टीसाइड्स से करें, तो फसलोत्पादन की कीमत घटने के साथसाथ पर्यावरण भी सुधरेगा. बाजार में रसायनविहीन इन सब्जियों की कीमत भी बहुत अच्छी मिलती है.

आर्थिक एवं पोषण सुरक्षा प्रदान करने वाली फसलों के उत्पादन में सब से बड़ी समस्या है, फसलों की उच्च रासायनिक उर्वरक की मांग. जैव उर्वरक एक ऐसा उर्वरक है, जिस में नाइट्रोजन स्थिरीकरण अथवा फास्फोरस विलायक या फिर सल्फर जैसे अन्य पोषक तत्त्वों के रूपांतरित करने वाले सूक्ष्म जीवों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व, विटामिन और हार्मोन की उपलब्धता बढ़ जाती है. फलस्वरूप, उत्पादन काफी बढ़ जाता है.

आज रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के बढ़ते उपयोग से स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ने लगी हैं. इस के निवारण के लिए कार्बनिक खाद्य पदार्थ पैदा होने लगे हैं, जो बाजार में आर्गेनिक उत्पाद के लेबल के साथ मिलते हैं. एक तो इन की गुणवत्ता अच्छी होती है. दूसरे, ये स्वास्थ्य के लिए अच्छे साबित हो रहे हैं. इसलिए जैविक खेती की आवश्यकता एवं संभावनाएं अधिक प्रभावी होती जा रही हैं.

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