भारत में ज्यादातर जगहों पर एक ही तरह की परंपरागत खेती की जाती है. जमीन में रासायनिक खाद का इस्तेमाल जरूरत से ज्यादा होता है, बेहद ज्यादा जुताई होती है और फसलों का सही चक्र नहीं अपनाया जाता है.

इस वजह से जमीन के उपजाऊपन में कमी आ रही है और इस की उर्वराशक्ति भी कमजोर होती जा रही है जो भारतीय किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती है. ऐसे में जैविक उर्वरक के इस्तेमाल से जमीन की उर्वराशक्ति बरकरार रहती है जिस से किसानों को बेहतर उपज पाने में मदद मिलती है.

कृषि माहिरों के मुताबिक, भारत की तकरीबन 147 मिलियन हेक्टेयर खेती पर बुरा असर पड़ रहा है. ऐसे में खेतों की उत्पादन कूवत घटती जा रही है. ऐसी और भी कई वजहें हैं जो देश की खेती की जमीन को खराब करने में मदद कर रही हैं.

देश के कुछ हिस्सों की जमीन में जहां एक ओर पीएच मान बेहद कम हो गया है वहीं दूसरी ओर कुछ इलाकों में जमीन का पीएच मान बहुत ज्यादा बढ़ गया है. इन दोनों ही हालात में रासायनिक खाद का अंधाधुंध इस्तेमाल जिम्मेदार है.

इसी तरह से जमीन का आर्गेनिक कार्बन भी जरूरी लैवल से बेहद कम हो गया है. इन्हीं वजहों को देखते हुए उपज बढ़ाने के लिए किसान अपने खेतों में ज्यादा से ज्यादा रासायनिक खादों और दूसरे रासायनिक सामान का इस्तेमाल कर रहे हैं.

यह चलन आगे चल कर परेशानी को और भी बढ़ाने का काम करता है जिस से किसानों को अपनी लागत और उम्मीद की तुलना में पैदावार नहीं मिलती है.

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