धान की फसल में चावल मिलने तक बहुत मात्रा में फसल अवशेष रह जाते हैं. चाहे वह पुआल हो या धान के डंठल या फिर चावल निकलने के बाद बची हुई धान की भूसी.

इन अवशेषों को किसान अपनी जरूरत के हिसाब से इस्तेमाल भी करता रहा है जिस में पशुओं को चारे के रूप में खिलाना, बचेखुचे अवशेष को गोबर में मिला कर उपले, छप्पर आदि बनाने में इस्तेमाल करना, ब्रिक्स बना कर मिलों और भट्ठों आदि में जलाने के काम आना और खेत में जोत कर खाद आदि बनाना शामिल है.

फसल तैयार होने के बाद जब मशीन द्वारा चावल निकाला जाता है तो 25 से 30 फीसदी तक धान से उस की भूसी निकलती है. ग्रामीण संबंधित विभागों में धान की भूसी का इस्तेमाल कंपोस्ट खाद बनाने या ईंधन के रूप में किया जाता है.

अभी पिछले दिनों इस भूसी को मकान बनाने में इस्तेमाल होने वाली ईंटों को बनाने का प्रयोग भी किया गया था.

हम यहां बात कर रहे हैं धान की भूसी की राख का जिस का धान की खेती के क्षेत्र में खास रोल है. यह एक बेहतर खाद का काम करती है जो धान की फसल के लिए तो बहुत फायदेमंद है.

चावल की भूसी की राख मिलने का स्थान : इस भूसी को खासकर चावल मिलों में ऊर्जा उत्पादन के लिए जलाते हैं, जिस से राख बन जाती है. इन चावल मिलों से आप धान की भूसी की राख ले सकते हैं.

भूसी की राख के खास गुण : इस में सिलिका की मात्रा काफी ज्यादा होती है. यह बहुत हलकी होती है. इस में पानी सोखने की कूवत ज्यादा होती है. बहुत बारीक और हलकी होने के कारण यह बहुत उड़ती है.

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