आज के समय में सब्जी उत्पादक किसानों के सामने खरपतवार का उगना ही काफी लागत में वृद्धि कर देता है और उत्पादकता भी कम हो जाती है. इस से बचने के लिए किसानों को निराईगुड़ाई करते रहना चाहिए, लेकिन अगर प्लास्टिक पलवार का उपयोग करते हैं, तो उत्पादकता में वृद्धि के साथ ही उत्पादन की गुणवत्ता में भी वृद्धि होती है.

पहले के समय में किसान पलवार के रूप में कार्बनिक पदार्थ जैसे पुआल, पौधों की पत्तियां, फसलों के अवशेष, परंतु वर्तमान समय में इस की उपलब्धता न होने और लागत ज्यादा होने की वजह से प्लास्टिक पलवार का उपयोग एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता है. यह आसानी से हर जगह पर उपलब्ध होने और एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने व लगाने में आसान होता है. इन सभी विशेषताओं के कारण आज कृषि में प्लास्टिक पलवार का उपयोग बढ़ रहा है.

मल्च (पलवार) लगाने की आवश्यकता 

परीक्षणों से पता चलता है कि फसलों में पलवार लगाने से सिंचाइयों की संख्या घट जाती है, खरपतवार कम होते हैं, पैदावार बढ़ती है व अन्य गुणों में भी बढ़ोतरी होती है. गृह वाटिका में भी पलवार का प्रयोग कर के उपरोक्त लाभ उठाए जा सकते हैं. विशेषकर उन गृह वाटिकाओं में, जहां ग्रीष्म काल में सिंचाई के साधन उपलब्ध न हों.

पलवार लगाने के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं :

* जमीन में उपलब्ध नमी को बचाने के लिए यदि क्यारियों में पलवार नहीं डाली गई, तो सूरज की तेज किरणें जमीन के सीधे संपर्क में आएंगी और नमी को तेजी से घटा देंगी.

* खरपतवारों की बढ़वार को रोकने के लिए पलवार समुचित मात्रा में डाली गई है, तो प्राय: खरपतवार में अंकुरण रुक जाता है.

* यदि कोई खरपतवार उगता भी है तो वह काफी कमजोर होता है. इस तरह पलवार के उपयोग में खरपतवार की समस्या से बहुत हद तक छुटकारा मिल सकता है.

* फलों को सड़ने से बचाने के लिए भी इस का प्रयोग किया जाता है. यदि फल जमीन के संपर्क में आते हैं, तो वे सड़ना शुरू कर देते हैं.

* यदि भूमि में पलवार बिछा दी जाए, तो फल जमीन के सीधे संपर्क में नहीं आ पाते और सड़ने से बच जाते हैं.

* अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए कुछ सब्जियों में पलवार के प्रयोग किए गए हैं और यह देखा गया है कि उपज और गुणवत्ता दोनों में बढ़ोतरी हुई हैं.

प्लास्टिक के प्रकार

पलवार अलगअलग रंगों जैसे काले, पारदर्शी, पीला, सिल्वर, लाल आदि उपलब्ध हैं. अधिकतर काली अथवा सिल्वर रंगों की प्लास्टिक पलवार मुख्य रूप से उपयोग में लाई जाती है.

प्लास्टिक पलवार का चयन

इस का चयन सब्जी फसलों की जरूरत के हिसाब से किया जाता है. सामान्य तौर पर 120 सैंटीमीटर चौड़ी प्लास्टिक पलवार का उपयोग अधिकतर किया जाता है, जिस से पलवार के उपरांत अन्य कृषि के काम सुगमतापूर्वक किए जा सकें.

पलवार की मोटाई

अलगअलग फसलों की जरूरत के मुताबिक दी गई मोटाई के पलवार का उपयोग करते हैं :

मोटाई (माइक्रोन में)       फसल अवधि

20-25                          वार्षिक/लघु अवधि

40-45                          द्विवार्षिक/मध्यम अवधि

50-100                        बहुवार्षिक/अधिक अवधि

पलवार को लगाना

पलवार को बोआई/रोपाई के पहले ही लगाना लाभदायक और आसान होता है. खेत के तैयार होने के उपरांत क्यारी बना कर पलवार लगा कर किनारेकिनारे से दबा दिया जाता है. इस के लिए श्रमिक के अपने ट्रैक्टर द्वारा पलवार लगाने वाली मशीन का भी उपयोग किया जाता है.

Farmingपलवार लगाते समय कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए :

* पलवार लगाने से पहले आवश्यक सभी खाद एवं उर्वरकों को भलीभांति खेत की तैयारी के समय मिलाने के उपरांत बैड बना कर ही पलवार बिछाना चाहिए.

* बीजों की बोआई अथवा पौधों की रोपाई पलवार में बने छिद्रों में सीधे करनी चाहिए.

* पलवार लगाने के उपरांत जरूरत के मुताबिक (पौधे के प्रकार के आधार पर) की दूरी पर ग्लास की सहायता से भी छिद्र बनाया जा सकता है.

* टपक (ड्रिप) सिंचाई पद्धति है, तो लेटरल को पलवार बिछाने के पहले बनी हुई क्यारियों पर रखा जाता है, जिस से सिंचाई एवं पोषक तत्त्वों का समुचित व्यवहार किया जा सके.

पलवार को हटाना/निस्तारण करना

फसलों से उत्पादन लेने के उपरांत खेत से निकाल कर सुरक्षित रखा जा सकता है पुन: उपयोग के लिए, परंतु एक फसल लेने के उपरांत दूसरी फसल भी ली जा सकती है.

फसलों की कटाई के बाद अगर पलवार फट गई है, तो उसे खेत से निकाल लेना चाहिए, क्योंकि प्लास्टिक पलवार खेत में अपघटित नहीं होती है, जिस से प्रदूषण की समस्या बनी रहती है.

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