एक्वापोनिक्स शब्द ‘एक्वाकल्चर’ (मछलीपालन) व ‘हाइड्रोपोनिक्स’ (मिट्टी के बिना बढ़ते पौधे) दोनों के संयोजन से लिया गया है. यह जलीय कृषि के साथ हाइड्रोपोनिक्स प्लांट/सब्जी उत्पादन के एकीकरण को दर्शाता है.

एक्वापोनिक्स तकनीक कुछ विशेष स्थितियों में खासकर जहां भूमि और पानी सीमित है, में अधिक उत्पादन और आर्थिक रूप से प्रभावी सिद्ध हो सकती है.

बड़ी संख्या में सब्जियां और उद्यानिकी फसलें जैसे चुकंदर, मूली, आलू, गोभी, ब्रोकली, सलाद, लेट्यूस, टमाटर, बैगन, मिर्च, खीरा, फल और मौसमी फूल सफलतापूर्वक उगाए जा सकते हैं.

एक्वापोनिक्स में मिट्टी के बजाय दूसरे स्रोतों का उपयोग किया जाता है जैसे कि बजरी, रेत, कोकोपीट, रौक, ऊनी नमदा, वर्मीक्यूलाइट, नारियल फाइबर, यहां तक कि सिंडर ब्लौक और स्टायरोफोम आदि.

आजकल कई मछली प्रजातियों को सफलतापूर्वक एक्वापोनिक्स सिस्टम में विकसित किया जा रहा है जैसे कि चैनल कैटफिश, ट्राउट, मरे कौड, ब्लू गिल, येलो पर्च और हमारे देश में कौमन कार्प, मांगुर, कवई, पंगास, तिलापिया, संवल इत्यादि.

एक्वापोनिक्स का महत्त्व और आय

एक्वापोनिक्स एक नई और तेजी से लोकप्रिय होती तकनीक है. इस से पौष्टिक मछली और सब्जियां दोनों का उत्पादन इस प्रणाली में जमीन में उगने वाली सब्जियों की तुलना में बहुत कम पानी का उपयोग होता है. सब्जियों के फसल चक्र का समय भी लगभग आधा हो जाता है. खास बात तो यह कि इस सिस्टम में किसी भी प्रकार के कीटनाशक का उपयोग नहीं किया जाता है. ताजा फल, सब्जियां और मछली बाजार में भी अधिक मूल्य मिलता है.

बहुत से लोग अब अपने भोजन का उत्पादन करने के लिए इसे चुन रहे हैं और अतिरिक्त आय हासिल करने के लिए बिक्री भी करते हैं. इस से प्राप्त उत्पादन को स्थानीय कैफे और रैस्टोरैंट, दोस्तों और परिचितों या स्थानीय बाजारों में बेचा जा सकता है.

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