आज भी गंवई इलाकों में रहने वाली ज्यादातर महिलाओं की हालत कमोबेश पहले जैसी ही रही है. गांवों में अभी भी महिलाओं की ज्यादातर आबादी चौकाचूल्हा और उपले बनाने में उलझी रहती है, जबकि महिलाओं को कई मामले में समान अधिकार भी प्राप्त हैं.

इन सब के बीच जिन महिलाओं ने आज के समाज में अपनी समान भागीदारी के महत्त्व को समझा है, वे आज के दौर में न केवल अलग पहचान रखती हैं, बल्कि आज वे परिवार और समाज को मजबूत बनाने में भी भागीदारी निभा रही हैं.

बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के ऐसे तमाम गांव हैं, जहां की महिलाएं आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश कर रही हैं. और यह सब संभव हुआ है, आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत व जॉन डियर इंडिया के कारण.

Village Womenमुजफ्फरपुर के तमाम गांवों में आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत द्वारा जॉन डियर इंडिया के सहयोग से छोटे और मझोले किसानों की आय में इजाफा करने, गंवई महिलाओं के हालात में सुधार लाने, ग्रामीण ढांचे को मजबूत बनाने सहित कई ऐसे काम किए जा रहे हैं, जो गांवों से पलायन को रोकने में काफी मददगार साबित हुए हैं.

एकेआरएसपीआई द्वारा गंवई महिलाओं को कई तरीके से मजबूत बनाने का काम किया जा रहा है, जिस में महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों से जोड़ कर बचत की आदत डालना, स्किल आधारित ट्रेनिंग, उन्नत खेती के तरीकों में निपुण बनाने जैसे तमाम काम शामिल हैं.

यही वजह है कि ये महिलाएं आज चौकेचूल्हे से ऊपर उठ कर परिवार की आमदनी को बढ़ाने में घर के मर्दों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं.

महिलाओं की भागीदारी से खेती में आई क्रांति

बिहार के मुजफ्फरपुर के गांव हरपुर उर्फ अजीतपुर की रहने वाली बबली देवी शिव गंगा सिंचाई समूह के सदस्य के रूप में जुड़ कर घर की माली हालत को सुधारने का काम कर रही हैं. वे घर के कामकाज के साथसाथ उन्नत खेती के तरीके सीख कर खेती से तिगुनी आमदनी ले रही हैं.

बबली का कहना है कि उन के गांव में पहले सिंचाई के साधन न होने से कम पानी में होने वाली हलदी और दलहन जैसी फसलों की खेती होती थी, जिस से घर का खर्च मुश्किल से ही चल पाता था.

ऐसे में एकेआरएसपीआई द्वारा गांव की महिलाओं को संगठित कर एक महिला समूह की स्थापना की गई, जिस के जरीए गांव में सोलर पंप की स्थापना के साथ ही मधुमक्खीपालन और सब्जियों की खेती को बढ़ावा दिया गया.

आज हरपुर उर्फ अजीतपुर गांव की लगभग सभी घरों की महिलाएं सब्जियों की अगेती खेती, मधुमक्खीपालन जैसे तमाम काम कर रही हैं, जिस से बाजार में सब्जियों की आवक पहले होने से उन्हें अच्छा रेट मिलता है.

इसी गांव की शिव गंगा सिंचाई समूह से जुड़ी महिलाएं रेखा देवी, सुनैना देवी, शिव दुलारी देवी, धर्मशीला देवी, सरिता देवी जैसी तमाम महिलाएं अगेती गोभी, सेम, नेनुआ, लौकी, चिनिया केला की खेती कर रही हैं, जिस से इन महिलाओं के परिवार की सभी बुनियादी जरूरतें तो पूरी हो ही रही हैं, साथ ही ये महिलाएं समूह और बैंक के जरीए बचत भी कर रही हैं.

वर्मी कंपोस्ट से तैयार होती हैं सब्जियां

Village Womenहरपुर गांव में एकेआरएसपीआई द्वारा जॉन डियर इंडिया के सहयोग से संचालित परियोजना के क्रम में गांव की महिलाओं को वर्मी कंपोस्ट तैयार करने की ट्रेनिंग दे कर गांव में ही इसे तैयार कराया जा रहा है, जिस से यहां के लोग अपनी सब्जियों की खेती में वर्मी कंपोस्ट का ही प्रयोग करते हैं. जैविक तरीके से सब्जियों की खेती करने के चलते सब्जियों की मांग और रेट अधिक होता है.

 

अलगअलग फ्लेवर में शहद को तैयार कर रही हैं महिलाएं

इसी गांव की रहने वाली पूनम देवी को एकेआरएसपीआई रोजगार से जोड़ने के लिए मधुमक्खीपालन की ट्रेनिंग दिलाई गई और उन्हें मधुमक्खीपालन के लिए बक्से मुहैया कराए गए.

Village Womenपूनम देवी के पास आज मधुमक्खीपालन के लिए 125 बक्से हैं, जिन से वे लीची, जामुन और तोरिया के फ्लेवर में शहद तैयार करती हैं.

विभिन्न फ्लेवर में शहद तैयार करने के सवाल पर पूनम ने बताया कि वे शहद में सुगंध और स्वाद लाने के लिए मधुमक्खीपालन के डब्बों को जामुन, लीची और तोरिया की फसल में रखती हैं, जहां मधुमक्खियां इन फसलों से पराग इकट्ठा कर के शहद तैयार करती हैं.

उन्होंने बताया कि उन के जैसी तमाम महिलाएं हैं, जो भारी मात्रा में फ्लेवर वाले शहद का उत्पादन कर रही हैं.

एफपीओ द्वारा शहद की मार्केटिंग

पूनम देवी ने बताया कि स्थानीय लैवल पर स्वतंत्र फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड द्वारा गांव की महिलाओं द्वारा तैयार शहद की खरीदारी वाजिब दाम पर की जाती है, जिस से प्रोडक्ट को बेचने के लिए कहीं भटकना नहीं पड़ता है.

उन्होंने बताया कि एक बक्से से 19 लिटर से ले कर 24 लिटर तक शहद तैयार होता है. यह शहद 300 रुपए प्रति लिटर में थोक रेट में आसानी से बिक जाता है. इस तरह से वे 125 बक्से में अच्छीखासी आमदनी हासिल कर लेती हैं.

हलदी की प्रोसैसिंग से तैयार किया जाता है हलदी पाउडर

मुजफ्फरपुर के तमाम गांव ऐसे हैं, जहां किसानों द्वारा सब्जियों की खेती के साथ ही हलदी की खेती प्रमुख रूप से की जाती है. किसानों द्वारा कच्ची हलदी का रेट उतना अच्छा नहीं मिल पाता है.

ऐसे में समूह से जुड़ी महिलाओं ने एकेआरएसपीआई और जॉन डियर के सहयोग से हलदी प्रोसैसिंग प्लांट लगाने का निर्णय लिया, जिस से हलदी का पाउडर तैयार कर उसे मार्केट में अच्छे रेट पर बेचा जा सके.

इसी तरह बंदरा प्रखंड के मेघ रतवारा गांव में एक हलदी प्रोसैसिंग प्लांट लगाया गया है, जहां कच्ची हलदी को सुखाने और उस के छिलके छुड़ाने के लिए मशीनें लगाई गई हैं. इस के अलावा हलदी पाउडर तैयार करने के लिए अलग से मशीन लगाई गई है.

इस प्रोसैसिंग प्लांट का संचालन भी सामूहिक रूप से किया जाता है, जहां समूह से जुड़े लोग हलदी पाउडर तैयार करने के बाद उस के पैकेट बना कर स्थानीय मार्केट में सप्लाई देते हैं. इस से उन्हें अतिरिक्त आमदनी हो रही है.

गांव के ढांचागत विकास पर जोर

आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम (भारत) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अपूर्वा ओझा ने बताया कि एकेआरएसपीआई ने बिहार के कई जिलों से पलायन को रोकने के कई प्रयास किए हैं. इस के लिए छोटे, मझोले  और कम आय वर्ग को खेती, शिक्षा, रहनसहन आदि में सुधार के लिए तैयार कर उन के जीवनस्तर को ऊंचा उठाया जा रहा है.

एकेआरएसपीआई के बिहार प्रदेश के रीजनल मैनेजर सुनील कुमार पांडेय  ने बताया कि मुजफ्फरपुर के जिन गांवों में एकेआरएसपीआई द्वारा जॉन डियर इंडिया के सहयोग से परियोजना चलाई जा रही है, वहां गांव के पूरे ढांचागत विकास पर जोर दिया जाता है.

उन्होंने बताया कि गांव में स्कूल, आंगनबाड़ी, पंचायत भवन, साफसफाई, ऊर्जा के वैकल्पिक साधन आदि के स्थायीकरण पर जोर दिया जा रहा है. इस के लिए सामूहिक भागीदारी के साथ एकेआरएसपीआई द्वारा संसाधनों की उपलब्धता पर जोर दिया जाता है.

खेती को घाटे से उबारने में कामयाब

एकेआरएसपीआई में बिहार प्रदेश के कृषि प्रबंधक डा. बंसत कुमार ने बताया कि किसानों को खेती में घाटे से उबारने के लिए उन को गांव में ही समयसमय पर उन्नत खेती के लिए जरूरी टिप्स दिए जाते हैं. इस के लिए गांव में ही किसान खेत पाठशाला बनाई गई है, जिस में किसान खेतीबारी के गुर सीखते हैं.

गांव में सोलर पंप, पौलीहाउस, सोलर कोल्ड स्टोर आदि की उपलब्धता कराई जा रही है. इस से किसान खेती में जोखिम और लागत को कम करने में कामयाब रहे हैं और उन्हें अधिक उत्पादन भी मिल रहा है. इस से गांव वालों की आमदनी में काफी बढ़ोतरी हुई है.

अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें...