रेशम प्राकृतिक प्रोटीन से बना रेशा है. रेशम का इस्तेमाल कपड़ा बनाने के लिए किया जाता है. इस की बनावट के कारण यह बाजार में बहुत महंगी कीमतों में बिकता है. इन प्रोटीन रेशों में मुख्यत: फिब्रोइन होता?है. ये रेशे कीड़ों के लार्वा द्वारा बनते हैं.
रेशम की खेती मुख्यत: 3 प्रकार से होती है, मलबेरी रेशम, टसर रेशम व एरी रेशम के रूप में. सब से उत्तम रेशम शहतूत है, जो कि अर्जुन के पत्तों पर पलने वाले कीड़ों के लार्वा द्वारा बनाया जाता है. लेकिन मुनस्यारी में खर्सू जैसे सामान्य पेड़ पर भी इस का उत्पादन हो रहा है. दशकों से जानवरों के चारे और शीतकाल में सेंकने के लिए कोयला देने वाला खर्सू से रेशम भी बन सकता है.
इस पर कृषि विभाग कार्यशाला भी आयोजित करता है, ताकि किसान उत्साह से इस की जानकारी ले कर रेशम उत्पादन में आत्मनिर्भर बन सकें.
अब तक नगण्य समझे जाने वाले कालामुनि, बिटलीधार के खर्सू के पेड़ों से रेशम तैयार होने लगा है. आने वाले सालों में खर्सू स्थानीय ग्रामीणों की आजीविका का प्रमुख माध्यम बनने जा रहा है.
खर्सू चारा प्रजाति का पेड़ है. इस की चौड़ी पत्तियां जानवरों को खूब भाती हैं. जानवरों के लिए इन पत्तियों का चारा सब से पौष्टिक माना जाता है.
पशुपालकों के मुताबिक, खर्सू की पत्तियों का चारा खिलाने से दुधारू जानवरों का दूध बढ़ जाता?है. जंगलों में काफी अधिक संख्या में पाए जाने वाले इस वृक्ष की लकड़ी जलाने के काम आती है. इस के कोयले भी बनाए जाते हैं, जिन का प्रयोग ऊंचाई पर रहने वाले लोग शीतकाल में आग सेंकने में लाते हैं. इस वजह से इन का कटान भी काफी होता है.
इस खर्सू के दिन अब फिर गए हैं. पहाड़ी इलाके में शहतूत और बांज की पत्तियों में रेशम पैदा किया जाता है, पर अब खर्सू से रेशम पैदा करने की कवायद शुरू हो चुकी?है.
सब से पहले तो खर्सू जंगलों में काफी अधिक होता है. इस के लिए अलग से जंगल तैयार करने की आवश्यकता नहीं है. मुनस्यारी के ऊंचाई वाले कालामुनि, बिटलीधार से ले कर मुनस्यारी के आसपास के जंगलों में यह बहुतायत में है.
अब तक जानवरों के लिए पौष्टिक आहार मानी जाने वाली पत्तियों को रेशम के कीट भी अपना आहार बनाने जा रहे हैं. आने वाले दिनों में स्थानीय लोगों के लिए खर्सू आमदनी का प्रमुख जरीया बनने जा रहा है. खर्सू की पत्तियां खा कर कीट टसर बनाएगा. किसान खर्सू के पेड़ की सहज उपलब्धता से काफी उत्साहित है और एक विशेष बात यह है कि रेशम की फसल सब से कम समय में तैयार होती है. इस फसल को तैयार होने में 40 से 50 दिन लगते हैं, जिस को किसान खर्सू के पेड़ों का टसर रेशम का उत्पादन कर अच्छी आमदनी प्राप्त कर रहे हैं.
इस काम को करने से लोगों के रोजगार के रास्ते भी खुल रहे हैं. खरीदार खुद आ कर माल ले जाते हैं. यह काम काफी सुविधाजनक है और कम तामझाम वाला है. खर्सू के एक पेड़ पर कुछ हजार कीट लाखों रुपयों का रेशम दे रहे हैं. इस का लाभ यह दिख रहा है कि पहाड़ों से शहर की तरफ पलायन भी रुक रहा है.
खर्सू का बीज तो नि:शुल्क मिलता है और यहां के लोगों द्वारा खर्सू के पेड़ और उगाए जा रहे हैं. रेशम उद्योग के साथसाथ पर्यावरण संरक्षण भी हो रहा है.