कृषि उत्पादन के निवेशों में उर्वरकों का महत्त्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि रासायनिक उर्वरकों की कीमत में वृद्धि हो रही है, इसलिए किसानों को जरूरत से अधिक रासायनिक उर्वरक नहीं डालना चाहिए, जिस से खेती की लागत भी न बढ़े और साथ ही साथ तत्त्वों का आपसी असंतुलन भी न हो.
वर्तमान समय में उर्वरकों की मांग एवं मूल्य को ध्यान में रखते हुए यह जरूरी हो गया है कि फसल बोने से पहले ही उर्वरकों की दी जाने वाली कुल मात्रा का निर्धारण कर लें. कौनकौन से उर्वरक कितनी मात्रा में डालने चाहिए, इस के लिए जरूरी है कि फसल बोने से पहले मृदा परीक्षण जरूर करा लें.
मृदा परीक्षण कब
मृदा परीक्षण फसल बोने से पहले और फसल की कटाई के बाद खाली खेत की मिट्टी का ही कराना चाहिए. खेत की तैयारी के समय ही खाली खेत से मिट्टी निकाल कर सुखा कर प्रयोगशाला में मृदा नमूना दे कर जांच करवानी चाहिए.
यदि फसल की कटाई होने वाली हो, तो खड़ी फसल से कतारों के बीच से मिट्टी निकालना आसान रहता है और समय की बचत भी होती है. इस से ली जाने वाली फसल के लिए जरूरी पोषक तत्त्वों और मृदा में उपलब्ध तत्त्वों की पूर्ति क्षमता का निर्धारण बोने के समय तक हो जाता है और जरूरी उर्वरकों की सही मात्रा की समयानुसार पूर्ति भी हो जाती है.
मृदा परीक्षण क्यों
मृदा परीक्षण से मृदा में उपलब्ध पोषक तत्त्वों की मात्रा का सहीसही निर्धारण हो जाता है जिस से आगामी फसल में दिए जाने वाले उर्वरकों की संतुलित मात्रा की जानकारी हो जाती है. इस प्रकार विभिन्न फसलों की दृष्टि से पोषक तत्त्वों की कमी की जानकारी होने पर, उपयुक्त उर्वरकों की संस्तुति की जाती है और साथ ही साथ मृदा सुधारक पदार्थों की मदद से मिट्टी की दशा में सुधार किया जाता है. मृदा परीक्षण से मृदा सुधारक पदार्थों की मात्रा की भी जानकारी हो जाती है.
मृदा परीक्षण कैसे
मृदा परीक्षण के लिए किसी भी खेत से लिया गया नमूना उस सारे खेत का प्रतिनिधि नमूना होता है, इसलिए पूरे खेत का एकमात्र मृदा नमूना सूखा और लगभग 400 ग्राम होना चाहिए.
मृदा नमूना खेत से एकत्रित करने का ढंग मृदा परीक्षण में विशेष स्थान रखता है, जिस का परीक्षण कर के उर्वरकों की मात्रा का निर्धारण किया जाता है, इसीलिए सामान्य फसलों के लिए मृदा नमूना निम्न विधि से लेना चाहिए:
* मृदा नमूना, जिस खेत से भी लेना हो, उस खेत को सब से पहले खेत की ढाल, मृदा की रंग संरचना से ली गई फसल और उपज आदि बातों को ध्यान में रख कर अलगअलग खंडों में बांट देना चाहिए. बाद में प्रत्येक खंड से अलगअलग नमूना लेना चाहिए.
* प्रत्येक खंड में ऊपरी सतह से घासफूस, कंकड़पत्थर आदि साफ कर के 1 आकार का 15 सैंटीमीटर की गहराई तक का गड्ढ़ा खोदें और फालतू मिट्टी निकाल कर एक तरफ से खुरपी या फावड़े की सहायता से ऊपर से नीचे तक 2-3 सैंटीमीटर मोटी मिट्टी की परत खुरच कर निकाल लें.
* इस प्रकार एक खेत से एकजैसी मिट्टी वाले 5-6 गड्ढों से मिट्टी ले कर एक कागज, ट्रे, बरतन, प्लास्टिक शीट वगैरह पर ले कर सब नमूनों को बारीक कर के आपस में अच्छी तरह से मिला लें व घासफूस, जड़ें, कंकड़पत्थर आदि निकाल दें.
* इस एकत्रित की गई मिट्टी को छाया में सुखा कर 400 ग्राम तक लें.
* मिट्टी कम करने के लिए किसी कागज पर गोल फैला कर 4 भागों में बाट लें, फिर आमनेसामने के 2 भाग हटा कर शेष मिट्टी को मिला कर फिर गोल फैला कर 4 भागों में बाट लें, फिर आमनेसामने के 2 भाग हटा कर शेष मिट्टी को मिला कर फिर गोल फेर लें और दुबारा उपरोक्त क्रिया को तब तक दोहराएं, जब तक मिट्टी 400 ग्राम न रह जाए. इस नमूने को प्रतिनिधि नमूना कहते हैं.
* उपरोक्त क्रिया द्वारा ली गई 400 ग्राम मिट्टी को किसी पौलीथिन की थैली में भर कर बांध देना चाहिए. पहचान के लिए एक मोटे कागज की परची सहित इस नमूने को दूसरे कपड़े की थैली में रख दें और दूसरा लैवल थैली के ऊपर बांध देना चाहिए, जिस से रिपोर्ट प्राप्त होने पर आप जान सकें कि किस खेत की कौन सी रिपोर्ट है.
सूचना कार्ड या परची पर निम्न विवरण लिखा होना चाहिए :
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- किसान का नाम एवं पिता का नाम
- खेत का नंबर या पहचान
- गांव का नाम
- जिले का नाम
- पिछली फसल का नाम
- ली जाने वाली फसल का नाम
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मृदा नमूना लेते समय सावधानियां
* जहां तक संभव हो, गीली मिट्टी का नमूना न लें. यदि लेना जरूरी हो, तो मिट्टी को छाया में सुखा कर ही प्रयोगशाला भेजें.
* जहां तक संभव हो, खड़ी फसल से भी नमूना न लें. यदि लेना आवश्यक हो, तो कतारों के बीच से लें, जिस से उर्वरक या जैविक खाद 30-40 दिन पहले तक न डाला गया हो.
* अलगअलग खेतों में या मृदा की किस्म अलगअलग होने पर मृदा नमूना भी अलगअलग एकत्र करना चाहिए.
* मृदा नमूना सड़क के किनारे, नाली और पेड़ के आसपास या खाद डाले गए स्थान से नहीं लेनी चाहिए.
* ऊसर भूमि के लिए नमूना अलग ढंग से लें. ऊसर भूमि वाले खेतों की मिट्टी का नमूना 100 सैंटीमीटर गहराई तक लेना चाहिए.
* नमूना लेने के लिए भूमि की सतह पर जीम लवण की पपड़ी को खुरच कर अलग नमूने के तौर पर रख लें, फिर 0-15, 15-30, 30-60 और 60-100 सैंटीमीटर गहराई से अलगअलग 4 नमूने ले लें और अलगअलग थैलियों में डाल कर प्रयोगशाला में भेजें.
* बागबानी के लिए मृदा नमूना 2 मीटर की गहराई तक से लेने चाहिए, क्योंकि पेड़ों की जड़ें भूमि में काफी गहरी जाती हैं. भूमि में कोई सख्त परत या पत्थर आदि की समस्या न हो, इसलिए मृदा नमूने लगभग 400 ग्राम के अलगअलग गहराई जैसे 0-15, 15-45, 45-90, 90-150, 150-200 सैंटीमीटर तक ले कर अलगअलग थैलियों में डाल कर सूचना कार्ड लगा कर प्रयोगशाला में भेजने चाहिए.
* नमूनों को खाद के बोरों, ट्रैक्टर की बैटरी, डीजल या दूसरे किसी रसायन आदि से दूर रखें.
* फसल की बोआई से लगभग एक महीने पहले ही मृदा नमूने परीक्षण के लिए प्रयोगशाला में भेज देने चाहिए.