आज युवा खेतीकिसानी से दूर भाग रहे हैं. कुछ तो शहरों की चमकदमक ने उन्हें अपनी तरफ खींचा है और दूसरा वे कड़ी मेहनत नहीं करना चाहते. यही नहीं हकीकत यह भी है कि खेतीकिसानी में किसान जितना पैसा लगाता है, कई बार प्राकृतिक आपदाओं के कारण उपज खराब होने से उस की लागत तक नहीं निकल पाती या फिर बंपर पैदावार होने से दाम इतने कम मिलते हैं कि उस का परता ही नहीं खाता.

सरकार की योजनाएं भी किसानों तक नहीं पहुंच पातीं. न तो वह उपज को समय पर सही समर्थन मूल्य दे कर किसानों से खरीदती है और न ही किसानों को अनाज के सही भंडारण की सुविधा मुहैया कराती है. ऐसे में बिचौलिए औनेपौने दाम में उपज खरीद कर उसे मनमाने दामों पर मंडी में बेचते हैं. यह किसान के साथ छलावा है. इन्हीं सब कारणों से युवावर्ग खेती की तरफ रुख नहीं कर रहा है. ऐसे में हमें समस्याओं का हल ढूंढ़ना होगा.

 युवावर्ग का खेती से दूर भागना

हल : युवावर्ग में खेती के प्रति दिलचस्पी पैदा करने के लिए सरकार को सही लाभ की व्यवस्था करनी होगी, साथ ही सरकार को अनाज का समर्थन मूल्य पैदावार की लागत के हिसाब से तय करना चाहिए और उपज बिक्री का सही इंतजाम करना होगा. साथ ही क्षेत्र विशेष की स्थानीय जरूरतों के मुताबिक बिक्री की व्यवस्था करनी होगी और आधुनिक छोटेछोटे कृषि यंत्र स्थानीय स्तर पर उन्हें मुहैया कराने होंगे.

उपज का सही मूल्य न मिलना

हल : देश की आबादी की जरूरत के मुताबिक यह जानना जरूरी है कि देश को किसकिस अनाज की कितनी जरूरत है. देश में जरूरी अनाज कितनी मात्रा में मौजूद हैं और जरूरत के मुताबिक हमें कितनी और पैदावार चाहिए. साथ ही पैदा किए गए अनाज को क्षेत्रीय जरूरत के हिसाब से स्थानीय मंडियों में मुहैया कराने की जरूरत है, जमाखोरों पर सख्ती से लगाम लगाई जाए, तभी ग्राहकों और कारोबारियों के हितों की सुरक्षा की जा सकती है, क्योंकि कारोबारी और ग्राहक हमेशा मुश्किलों का सामना करते हैं और दलाल लाभ कमाते हैं. कारोबारियों को लागत के अनुसार सही कीमत न मिलने की शिकायत हमेशा रहती है.

इस के लिए सरकार को उपज का समर्थन मूल्य लागत को ध्यान में रखते हुए फसल बोआई से पहले तय करना चाहिए. साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि उपज बाजार में आने के बाद समर्थन मूल्य से ज्यादा कीमत पर न बिके. ऐसा करने से किसानों को यह फैसला लेने में आसानी होगी कि उन्हें कौन सी फसल बोनी है और उस से उन्हें कितना लाभ मिल सकता है.

आज देश की गंभीर समस्या यह है कि किसान फसलों की पैदावार तो करते हैं, लेकिन उस का उन्हें सही मूल्य न मिलने से काफी दिक्कत होती है.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बिजनौर जनपद में किसान अच्छे तरीके अपना कर 1,500 से 2,000 क्विंटल प्रति हेक्टेयर गन्ना सफलतापूर्वक उगा रहे हैं और लाभहानि का भी पहले ही अनुमान लगा लेते हैं.

आज के दौर में प्रति किसान कृषि भूमि घटने से हर किसान को खेती के लिए साधन जैसे ट्रैक्टर, ट्राली, हैरो, रोटावेटर, स्प्रेयर वगैरह की जरूरत पड़ती है, जिन से पहले उन का परिवार बड़ी जोत पर खेती करता था. लेकिन इस का बुरा नतीजा यह निकला कि अब हर किसान की अपनी आमदनी का एक बड़ा हिस्सा ताउम्र इन साधनों को जुटाने में लग जाता है, साथ ही इन साधनों का सही इस्तेमाल भी नहीं होता और किसानों की हालत जस की तस बनी रहती है.

हल : लगातार छोटी होती जोत के हल के लिए कांट्रेक्ट फार्मिंग को बढ़ावा दिया जा सकता है या सस्ते दामों पर किराए पर खेती के यंत्रों को मुहैया कराने के लिए कस्टम हायरिंग सेंटर किसानों की संख्या के हिसाब से बनाए जाएं.

मिट्टी में जीवाश्म और पोषक तत्त्वों का स्तर लगातार गिरना और हानिकारक कीड़े व बीमारियों का हमला बढ़ना.

हल : मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए कार्बनिक खादों जैसे गोबर की खाद, कंपोस्ट खाद, वर्मी कंपोस्ट व हरी खाद वगैरह के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाए. खेत में हल चला कर कुछ दिनों के लिए खाली छोड़ दें, ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई और सही फसलचक्र को बढ़ावा देना चाहिए.

खेती में रसायनों के अंधाधुंध इस्तेमाल से किसान की सेहत पर असर पड़ता है.

हल : रसायनों का इस्तेमाल कम करने के लिए जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाए. किसानों को अपने फार्म पर ही जैविक खेती के लिए अच्छी ट्रेनिंग दी जाए.

पैदावार लागत बढ़ना और शुद्ध मुनाफा घटना.

हल : खेती में पैदावार लागत कम करने और मुनाफा बढ़ाने के लिए बाजार पर निर्भरता कम की जाए, खेती निवेशों का सही इस्तेमाल किया जाए और जैविक उपज फार्म पर ही तैयार करने का सही इंतजाम किया जाए.

सभी फसलों में बीज की बेकार व्यवस्था.

हल : किसानों को अपनी जरूरत के मुताबिक बीजों का सही इंजजाम करना चाहिए, क्योंकि सही इंतजाम के अभाव में पैदावार लागत बढ़ती है.

बीमारियों, कीटों और खरपतवारों की रोकथाम की जानकारी की कमी.

हल : रसायनों के इस्तेमाल का तरीका, इस्तेमाल का समय, रसायन की मात्रा और जरूरत के मुताबिक सही रसायन के चयन के बारे में किसानों को ट्रेनिंग देने की जरूरत है, क्योंकि इन के ज्यादा अैर गलत इस्तेमाल से पैदावार लागत में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, आमतौर पर किसानों की निर्भरता विक्रेताओं पर रहती है.

लगातार जमीनी जल का स्तर  गिरना.

हल : ड्रिप, बौछारी और रेनगन सिंचाई पद्धतियों को बढ़ावा दिया जाए.

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