पुराने समय से मसालों का हमारे जीवन में खास स्थान रहा है. मसालों का अपने रूप, रस, सुगंध, स्वाद, रंग, आकार वगैरह के कारण अलग ही महत्त्व है. भारत के मसालों की मांग विदेशों में तेजी से बढ़ रही है. मसाले हमारे खाने को जायकेदार बनाने के साथ दवा का भी काम करते हैं.
कटाई के बाद मसालों की सफाई, ग्रेडिंग, पैकिंग वगैरह काम किए जाते हैं. कटाई के समय मसालों में नमी 55-85 फीसदी होती है. इन को महफूज रखने के लिए इन की नमी को घटा कर 8-10 फीसदी तक करना पड़ता है.
मसालों के कारोबार के लिए उन की सही तरीके से कटाई के बाद मड़ाई, सफाई, ग्रेडिंग और पैकिंग पर खास ध्यान दें. यहां हम मसालों की कटाई के बाद के कामों की चर्चा कर रहे हैं.
धुलाई : जिन मसालों को जमीन के पास से या जमीन में से खोद कर निकाला जाता है, उन की धुलाई करना जरूरी होता है, ताकि उन में लगी धूल और संक्रमण पैदा करने वाले पदार्थ साफ हो जाएं. धुलाई बहते पानी से करनी चाहिए. इलायची, हलदी, अदरक वगैरह मसालों की धुलाई की जाती है.
छाल निकालना : कुछ मसाले जैसे अदरक, लहसुन के सूखने में इन की छाल ही रुकावट होती है. इन को सुखाने के लिए इन की छाल निकालना जरूरी होता है. छाल निकालने के लिए खास तरह के चाकुओं का इस्तेमाल किया जाता है. सफेद अदरक लेने के लिए अदरक की छाल निकाल कर उसे नीबू पानी से धो लिया जाता है. इस के लिए 600 मिलीलिटर नीबू के रस को 30 लिटर पानी में मिलाया जाता है.
गोदना : सभी तरह की मिर्च को सुखाने के लिए गोदने की विधि इस्तेमाल की जाती है. मिर्च को लंबाई में दबा कर चपटा कर के सुखाने में कम समय लगता है. इस से क्वालिटी व रंग भी बना रहता है.
रासायनिक उपचार : इस से मसालों को उन के असली रंगरूप में रख कर सुंदर बनाया जाता है, जिस से उन की अच्छी कीमत मिलती है.
छोटी इलायची के बाहर का हरा चमकदार रंग उस की छाल में मौजूद क्लोरोफिल के कारण होता है. इस की चमक को बनाए रखने के लिए इलायची को
2 फीसदी सोडियम कार्बोनेट के घोल में 10 मिनट तक रखा जाता है. मिर्च को सोडियम बाई कार्बोनेट व जैतून के तेल के मिश्रण से उपचारित करने के बाद सुखाने से उस का रंग बना रहता है.
अदरक को धोने के बाद साफ पानी में एक दिन के लिए रखा जाता है. इस के बाद 2 फीसदी बुझे चूने के घोल में 6 घंटे के लिए रखा जाता है.
बुझे चूने के पानी के घोल से उपचारित अदरक को सल्फर डाई औक्साइड के धुएं से (लगभग 3.5 किलोग्राम गंधक धुआं प्रति टन अदरक की दर से) 12 घंटों के लिए उपचारित किया जाता है.
इलायची की फली का रंग हरा चमक लिए हुए होना चाहिए. सभी फलियों का एक जैसा रंग नहीं होने के कारण इलायची की कीमत कम या ज्यादा होती है. एकसमान रंग लाने के लिए इलायची की फलियों को घुलनशील गंधक से उपचारित किया जाता है.
मसालों में हलदी के पीले रंग व इस की खास महक को बनाए रखने के लिए विशेष सावधानी रखनी पड़ती है. खुदाई के 3-4 दिन बाद मुख्य कंद से छोटेछोटे कंदों को अलग कर लिया जाता है. कंदों को धो कर बुझे चूने के पानी, सोडियम कार्बोनेट या सोडियम बाई कार्बोनेट के घोल में उबाला जाता है.
मसालों को सुखाना
मसालों को सुखाने के दौरान इन में नमी की मात्रा को कम कर के 5 से 8 फीसदी तक बनाए रखें. सही ढंग से सूखने पर मसालों का मूल रंग व स्वाद बना रहता है. मसालों को सुखाने के लिए इन तकनीकों को अपनाएं:
धूप में सुखाना : मसालों को धूप में सुखाने के लिए खास सावधानी रखनी पड़ती है, ताकि धूल व बारिश से उन्हें नुकसान न हो. इलायची को 2 फीसदी सोडियम कार्बोनेट से उपचारित कर के और अदरक, हलदी को बुझे चूने के पानी से उपचारित कर के धूप में 8-10 दिन तक सुखाया जाता है.
मसालों में 5 से 8 फीसदी नमी रह जाने तक ही उन्हें धूप में सुखाया जाता है. आईसीएआर ने मिर्च के लिए मिर्च छेदन मशीन तैयार की है. इस मशीन द्वारा 10 किलोग्राम प्रति घंटे की दर से मिर्च छेदन किया जाता है.
मशीन द्वारा सुखाना : मसालों को धूप में सुखाने पर मौसमी बाधाओं के अलावा उन में सूक्ष्म जीवों, धूल, चिडि़यों की गंदगी वगैरह मिलने का डर रहता है, जिस से मसाले की क्वालिटी पर बुरा असर पड़ता है. इस से बचने के लिए मशीन से मसालों को 60 से 70 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान पर 6 से 8 घंटों के लिए सुखाया जाता है.
बिजली की मशीन से सुखाना : गरम हवा के लिए बिजली से चलने वाली शोषक मशीन का इस्तेमाल किया जाता है. इस में तापमान, समय वगैरह का नियंत्रण रहता है, जिस से आसानी से हर तरह के मसालों को सुखाया जा सकता है.
भारतीय मसालों की राष्ट्रीय कानून के तहत हर अवस्था में ग्रेडिंग की जाती है. मसालों के लिए ग्रेडिंग करना कृषि उपज अधिनियम (1987) श्रेणीकरण विपणन के अधीन होता है. इन श्रेणियों को एगमार्क कहा जाता है. इस में भौतिक गुण जैसे रंग, आकार, घनत्व वगैरह का खासतौर पर ध्यान रखा जाता है.
किसानों को अपने उत्पादों की अच्छी कीमत पाने के लिए ग्रेडिंग की जानकारी होना जरूरी है.
कारोबार की कुशलता बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक ग्रेडिंग एक अहम अंग है.
मसालों की गुणवत्ता मान
साबुत बड़ी इलायची : साबुत बड़ी इलायची के सूखे व लगभग पके हुए फल संपुटों के रूप में होते हैं. दलपुंजों के टुकड़ों, डंठलों व अन्य चीजों का भार अनुपात में 5 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए. कीटों द्वारा नुकसान किए पदार्थ की मात्रा भार में 5 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.
बड़ी इलायची का चूर्ण : बीजों के चूर्ण में बीज अच्छी तरह पिसे होने चाहिए. नमी भार में 14 फीसदी से कम व कुल खनिज भार में 8 फीसदी से कम और वाष्पीय तेल एक फीसदी से कम होना चाहिए.
साबुत लाल मिर्च : कैप्सिकम फ्रुटेसैंस के सूखे पके फल या फलियां शामिल होती हैं. इस में अन्य पदार्थ बाहरी दलपुंज के टुकड़े, धूल, मिट्टी के ढेले, पत्थर वगैरह शामिल हैं.
ये चीजें भार में 5 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. कीटों द्वारा खराब पदार्थों की मात्रा भार में 5 फीसदी से कम हो.
लाल मिर्च चूर्ण : सूखी साफ फलियों का चूर्ण होना चाहिए. मिर्च के चूर्ण में धूल, कवक, कीट द्वारा नुकसान व सुगंधित पदार्थ नहीं होने चाहिए. मिर्च के चूर्ण की नमी 12 फीसदी से कम, कुल खनिज भार 8 फीसदी से कम होना चाहिए.
साबुत धनिया : कोरिएंडम सेटाइवम के सूखे बीज, जिस में धूल, कचरा, कंकड़, मिट्टी के ढेले, भूसी, डंठल के अलावा अन्य खाद्य पदार्थ के बीज व कीटों द्वारा खाए बीज शामिल न हों, का अनुपात 0.8 फीसदी से ज्यादा न हो.
धनिया चूर्ण : इस में नमी भार में 12 फीसदी से ज्यादा नहीं व कुल खनिज भार 7 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए.
मेथी : सूखे पके बीज में फालतू पदार्थ, धूल, कचरा, कंकड़, मिट्टी के ढेले वगैरह का अनुपात भार में 5 फीसदी से कम होना चाहिए. कीटों द्वारा खाए पदार्थ की मात्रा भार में 5 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.
मेथी चूर्ण : इस में मेथी के सूखे पके फलों का पिसा चूर्ण, जिस में नमी भार में 10 फीसदी से कम व कुल खनिज भार में 7 फीसदी से कम होनी चाहिए.
साबुत हलदी : पौधे से सूखे कंद या कंदीय जड़ में लैड क्रोमेट व अन्य रंजक पदार्थों की मिलावट नहीं होनी चाहिए. कीटों द्वारा नुकसान किए पदार्थों की मात्रा भार में 5 फीसदी से कम होनी चाहिए.
हलदी चूर्ण : चूर्ण में बाहरी रंग की मिलावट नहीं होनी चाहिए. चूर्ण में नमी भार में 13 फीसदी से कम व कुल खनिज भार में 9 फीसदी से कम होनी चाहिए. लैड क्रोमेट जांच नेगेटिव होनी चाहिए.
स्टोरेज : मसाले व इन के उत्पाद नमी के मामले में ज्यादा संवेदनशील होते हैं, क्योंकि इन में नमी लेने की कूवत ज्यादा होती है. इस वजह से नमी से बचाने के लिए इन का भंडारण व पैकिंग अच्छी होनी चाहिए. नमी के आने पर इन में दरार पड़ने, रंग फीका पड़ने के अलावा कीट व बीमारियों का हमला हो जाता है.