खेती से ज्यादा कमाई के लिए अनाज, फलों व सब्जियों वगैरह की वाजिब कीमत मिलना व उन्हें महफूज रखना जरूरी है. कुल पैदावार का तकरीबन 16 फीसदी से 25 फीसदी हिस्सा खराब हो जाता है. इस से अरबों रुपए का नुकसान होता है. बंपर पैदावार से कहीं टमाटरों की लागत नहीं निकलती तो कहीं कोल्ड स्टोरेज में आलू रखने की जगह नहीं मिलती.
परेशान किसानों को अकसर अपनी उपज सड़कों पर फेंकने को मजबूर होना पड़ता है या फिर खुदकुशी करने को मजबूर होना पड़ता है. इस के लिए किसानों को अपनी प्रोसैसिंग इकाइयां लगाने के लिए बढ़ावा देना लाजिमी है. अगर सरकार व किसान चाहें तो ये काम करना मुश्किल नहीं हैं.
चूहे, नमी, फफूंद व कीड़ों वगैरह के चलते गोदामों की कमी से खुले में पड़े रहने, बारिश में भीगने, लापरवाही, बदइंतजामी व प्रोसैसिंग न होने से हर साल काफी अनाज खराब होता है.
वहीं दूसरी ओर खाद्यान्न की खरीद से गोदामों में रखने तक खूब हेराफेरी होती है. अनाज कम भुगतान ज्यादा. इसे छिपाने के लिए भ्रष्ट मुलाजिम अनाज सड़ाते हैं, फिर उसे ठिकाने लगाने के लिए करोड़ों रुपए लगाते हैं. मेरठ के वेयरहाउस में एक मुलाजिम चावलों पर पानी डालते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया था.
हापुड़ में हजारों बोरे गेहूं स्टेशन पर ही पड़ापड़ा सड़ गया था. इसलिए सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा था कि अनाज बचा नहीं सकते तो गरीबों में बांट दो.
कागजी घोड़े
बहुत से इलाकों में आंधीतूफान व पानी के कटाव जैसी कुदरती आपदाओं से भी उपजाऊ जमीन का काफी नुकसान होता है. इस के लिए राज्यों में भूमि संरक्षण विभाग व भूमि सुधार निगम वगैरह सरकारी एजेंसियां चल रही हैं, लेकिन कुछ अपवाद छोड़ दें तो ज्यादातर किसानों को पता ही नहीं चलता.
भारत में जमीन की कमी नहीं है. अनाज की प्रति हेक्टेयर उपज बहुत कम है. मसलन, भले ही हम खेती में खुद को अगड़ा समझें, नेता व अफसर अपनी तारीफों के पुल बांध कर कितने ही गाल बजाएं, लेकिन सचाई इस के ठीक उलट दिखाई देती है.
बचने के उपाय
खेती के लिए जमीन सब से पहली जरूरत है, लेकिन अपने देश का अजब हाल है. जमीन का महकमा मंत्रालय के बजाय ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत आता है.
जाहिर है, जमीन को प्लास्टिक की तरह बढ़ा नहीं सकते, लेकिन खराब होने से बचा तो सकते हैं. मौजूदा जमीन का बेहतर इस्तेमाल तो कर सकते हैं. मसलन, पहाड़ी इलाकों में बहुत से ढलान सपाट हैं. वहां सीढ़ीनुमा खेत बनाए जा सकते हैं. ऊसर जमीन को सुधार सकते हैं. जागरूकता, प्रचारप्रसार व ट्रेनिंग की कमी में बहुत से किसान नहीं जानते खेत में पानी भर जाने, पानी की निकासी न होने, जमीन को खाली छोड़ने, हरी व गोबर की सड़ी खाद न देने और खारा पानी से सिंचाई करने से जमीन ऊसर हो जाती है.
मेड़बंदी, जुताई, नमक की परत खुरच कर निकाल देने, खेत को एकसार करने, प्रेसमड शीरा, जलकुंभी, धान की पुआल व भूसी, पायराइट व जिप्सम से भी ऊसर जमीन सुधारी जा सकती है.
हमारे यहां जमीन कम नहीं है. जरूरत है असल समस्या का समाधान करने की. ज्यादातर किसान छोटे, गरीब व कम पढ़ेलिखे हैं. वे जमीन की सेहत के लिए जरूरी सभी 16 पोषक तत्त्वों की अहमियत नहीं समझते, इसलिए वे न तो अपने खेत की मिट्टी की जांच कराते हैं और न ही रिपोर्ट के मुताबिक खुराक दे कर उन की कमी को पूरा करते हैं इसलिए पैदावार कम होती है.
बरसों पहले संगरिया, राजस्थान में रेतीले टीबे थे. अब वहां फलदार पेड़ हैं. रुद्रपुर, उधमसिंह नगर की दलदली जमीन व मवाना, मेरठ के पास गंगा के खादर को पंजाब के किसानों ने सुधार कर उम्दा खेती लायक बना दिया. इसी तरह सरकार अगर चंबल के बीहड़ों की जमीन भी पंजाब के किसानों को सौंप दे तो वहां की तसवीर बदल सकती है.