केंचुआ खाद (Vermicompost) अन्य विधियों से तैयार की जाने वाली जैविक खादों जैसे गोबर की खाद, नाडेप कंपोस्ट आदि की तुलना में 2-3 गुना अधिक नत्रजन, फास्फोरस व पोटैशियम और दूसरे पोषक तत्त्व प्रदान करती है. यह खाद ठंडी है, बल्कि गोबर की खाद, मींगनी की खाद, बींठ की खाद गरम खाद होती है.
केंचुआ खाद तैयार करने के लिए आवश्यक सामग्री
सामान्यतया सूखे चारे के टुकड़े, पेड़ों की पत्तियां, गोबर, मिट्टी व पानी आदि सामग्री की आवश्यकता होती है. केंचुए की कई प्रजातियों द्वारा ये खाद तैयार की जाती है, परंतु आईसीनिया फोईटिडा प्रजाति अधिक उपयोगी है, क्योंकि इस की गुणन क्षमता अधिक है, जिस से खाद जल्दी (45-50 दिन) में तैयार हो जाती है.
केंचुआ खाद तैयार करने का आसान तरीका
इस खाद को तैयार करने के लिए किसी विशेष वातावरण व स्थान की जरूरत नहीं होती है, बल्कि किसी भी किसान के द्वारा घर के पास या खेत में आसानी से तैयार की जा सकती है. सब से पहले ऐसे छायादार स्थान का चयन करें, जिस में जल भराव न होता हो.
* खाद तैयार करने के लिए छाया के नीचे 3 फुट चौड़ाई, 1.5-2 फुट ऊंचाई व 6-8 फुट लंबाई वाली क्यारी बनाई जाती है. ये क्यारियां पक्की बना सकते हैं और आजकल बाजार में प्लास्टिक की बनी क्यारियां भी उपलब्ध हैं.
* तैयार क्यारी में लगभग 9 इंच मोटाई में फसल अवशेष, पेड़ों की पत्तियां व अन्य अपशिष्ट पदार्थ डालते हैं. इस पर ताजा गोबर की एक परत डाली जाती है. इस के बाद पानी का छिड़काव किया जाता है.
* प्रति क्यारी 5-10 किलोग्राम केंचुए छोड़ दिए जाते हैं.
* केंचुए छोड़ने के बाद क्यारी को टाट की बोरी या पत्तों से अच्छी तरह से ढक दिया जाता है.
* क्यारी में नमी बनाए रखने के लिए पानी का छिड़काव करते रहना चाहिए.
* केंचुए फसल अवशेष व गोबर को खा कर मल ऊपरी सतह पर त्यागते हैं. लगभग एक महीने बाद इस क्यारी में खाद चायपत्ती के समान दिखाई देने लगती है.
* खाद एकत्र करने से 2-3 दिन पहले पानी का छिड़काव बंद कर देना चाहिए. जैसे ही पानी देना बंद कर देते हैं, तो केंचुए नीचे की सतह में चले जाते हैं और ऊपर की खाद को निकाल लिया जाता है.
* अंत में शेष रही 15-20 फीसदी मात्रा को क्यारी को दोबारा भरते समय काम में लिया जाता है. इस तरह यह चक्र लगातार चलता रहता है. हर 45 दिन बाद तैयार खाद निकाल कर क्यारियां दोबारा भर देते हैं.
केंचुआ खाद के लाभ
* पौधों व फसलों को मुख्य पोषक तत्त्वों के साथसाथ गौण पोषक तत्त्व भी उपलब्ध करवाती है.
* भूमि की उर्वरा क्षमता को लंबे समय तक बनाए रखती है और भौतिक दशा सुधारती है.
* सस्ती व आसानी से यह खाद तैयार की जा सकती है.
* विभिन्न फसलों में 25-40 फीसदी उपज में बढ़ोतरी करती है.
सावधानियां
* क्यारी का फर्श पक्का या कठोर होना चाहिए, जिस से केंचुए जमीन में न जा पाएं.
* गोबर 15-20 दिन पुराना काम में लेना चाहिए.
* फसल अवशेष, पेड़ों के पत्ते व अन्य जैविक पदार्थ में प्लास्टिक और कैमिकल नहीं होना चाहिए.
* 30-40 फीसदी नमी और 15-25 डिगरी सैल्सियस तापमान बनाए रखना चाहिए.
* फसलों में 5 टन प्रति हेक्टेयर, सब्जियों में 7-10 टन प्रति हेक्टेयर यह खाद उपयोग करें.