राष्ट्रीय राजमार्ग 28 से अगर कभी आप लखनऊ से बस्ती जिले की तरफ जा रहे हों तो जैसे ही अयोध्या को पार कर के बस्ती जिले की सीमा में दाखिल होंगे, तो आप को मुख्य राजमार्ग पर ही लोहे के बड़ेबड़े बोर्ड दिखाई पड़ेंगे. इन बोर्डों पर बड़ेबड़े अक्षरों में लिखा दिखाई पड़ेगा ‘शुक्लाजी का मशहूर गन्ने का सिरका’ वैसे तो इस गांव का असली नाम माचा है, लेकिन इसे अब केवल शुक्लाजी के सिरके वाले गांव के नाम से ही जाना जाता है.
बस्ती जिला मुख्यालय से करीब 55 किलोमीटर की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग 28 से सटे इस गांव में बनने वाला सिरका देश के कई राज्यों में जाना जाता है. शुक्लाजी का सिरका यों ही मशहूर नहीं है, बल्कि यहां के सिरके को अगर आप ने एक बार चख लिया तो आप इस के स्वाद और गुणवत्ता के मुरीद हुए बिना नहीं रहेंगे.
माचा गांव को शुक्लाजी के मशहूर गन्ने के सिरके के रूप में पहचान दिलाने का जिम्मा भी यहीं के एक निवासी सभापति शुक्ला को जाता है. सभापति शुक्ला ने खेती को घाटे से उबारने के लिए न केवल अपनी सोच बदली, बल्कि इसी बदली सोच ने उन्हें तरक्की का रास्ता दिखाया. आसपास के गांव वालों के लिए भी उन्होंने तरक्की के रास्ते खोल दिए. उन के इसी कदम से आज इस गांव में करोड़ों रुपए के गन्ने के सिरके का कारोबार होता है.
बदली सोच ने बदल दीं कई जिंदगियां : माचा गांव भी पहले दूसरे गांवों की तरह पारंपारिक खेती के लिए ही जाना जाता था. गांव के लोग खेती में लगातार घाटे के चलते रोजगार की तलाश में शहरों की तरफ तेजी से भाग रहे थे. इसी बीच साल 2001 में सभापति शुक्ला को पारिवारिक कलह के चलते भाइयों से अलग होना पड़ा.
इस दौरान उन्होंने माचा गांव में ही सड़क के किनारे फूस का छप्पर डाल कर रहना शुरू किया. लेकिन भाइयों से अलग होने के चलते खेती से परिवार का खर्चा चलाना मुश्किल हो चला था.
ऐसे में उन्होंने खेती में बोए गए गन्ने से गुड़ बना कर ज्यादा लाभ लेने की सोची. उन्होंने स्थानीय ग्रामीण बैंक से गन्ना पेराई के लिए मशीन की खरीदारी के लिए लोन की अर्जी दी. बैंक ने जरूरी कार्यवाही पूरी कर के उन के लोन की अर्जी को स्वीकार कर के क्रेशर खरीदने के लिए धनराशि मुहैया करा दी.
इस के बाद उन्होंने क्रेशर मशीन खरीद कर गन्ने से गुड़ बनाने का काम शुरू कर दिया. सभापति शुक्ला का गन्ने से गुड़ बनाने का काम 2 सालों तक तेजी से चला, लेकिन साल 2003 में अचानक गुड़ के दामों में गिरावट होने के चलते उन्हें बहुत नुकसान उठाना पड़ा. उस साल उन्हें इतना नुकसान हुआ कि उन्होंने अपने खेत में गन्ने की फसल को जलाने का फैसला कर लिया.
पत्नी की सलाह से बदल गई दुनिया : गन्ने से गुड़ बनाने से हुए घाटे के चलते सभापति शुक्ला अपने खेत में खड़ी गन्ने की फसल को आग लगाने जा रहे थे कि तभी उन की पत्नी ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया और सलाह दी कि गन्ने की फसल को जलाने की बजाय अच्छा होगा कि गन्ने की पेराई कर के उस के रस से सिरका तैयार कर के लोगों में बांट दिया जाए.
सभापति शुक्ला को पत्नी की यह सलाह जंच गई और उन्होंने खेत में खड़े गन्ने की फसल को काट कर उस के रस से सिरका तैयार किया. तैयार सिरके को उन्होंने अपने यहां आने वाले हर व्यक्ति को मुफ्त में बांटना शुरू कर दिया. सभापति शुक्ला के बनाए सिरके का स्वाद लोगों को इतना पसंद आया कि लोग दोबारा उन के पास पैसे से सिरका खरीदने आने लगे. उस समय तक उन के पास बहुत कम सिरका बचा था. यहीं से उन के मन में ऐसे विचार ने जन्म लिया, जिस ने न केवल सभापति शुक्ला की, बल्कि पूरे गांव के लोगों की ही किस्मत पलट दी.
1 लीटर सिरके ने कारोबार को दी ऊंचाई : सभापति शुक्ला जान गए थे कि उन के सिरके में कुछ तो बात है, जो लोगों को वह इतना पसंद आ गया था. अपने सिरके को आजमाने के लिए वे 1 लीटर सिरका ले कर फैजाबाद की एक जड़ीबूटियों की दुकान पर गए और दुकानदार को सिरका दे कर बोले कि अगर आप को सिरके की क्वालिटी पसंद आए तो और आर्डर दे सकते हैं. उस दुकानदार ने उस 1 लीटर सिरके को जिस ग्राहक को बेचा उसे वह बेहद पसंद आया. लिहाजा उस ने और सिरके की मांग की.
इस के बाद सभापति शुक्ला ने जिस भी दुकानदार को अपना सिरका बेचा, वह और ज्यादा की मांग करने लगा. इस के बाद वे पूरी तरह से गन्ने के रस से सिरका बनाने के कारोबार में जो उतरे, तो पीछे मुड़ कर नहीं देखा.
1 लीटर सिरके से शुरू हुआ सभापति का कारोबार आज करोड़ों रुपए का कारोबार बन चुका है. सभापति शुक्ला द्वारा तैयार किया जाने वाला सिरका आज शुक्लाजी का मशहूर सिरका बाबा ब्रांड के नाम से जाना जाने लगा है. उन के यहां बनने वाले सिरके की सप्लाई अब उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, बिहार, दिल्ली, मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र सहित देश के कई राज्यों में की जाती है.
ऐसे तैयार होता है सिरका : गन्ने से सिरका तैयार करना बेहद आसान है. वे गन्ने की फसल की कटाई के बाद गन्ने को साफसुथरा करवाते हैं.
उस के बाद गन्ने को क्रेशर मशीन में पेरा जाता है. फिर गन्ने के तैयार रस को छान कर 200 लीटर के प्लास्टिक के ड्रमों में रख कर करीब 3 महीने तक धूप में रखा जाता है. इस दौरान तैयार हो रहे सिरके की खास देखभाल की जाती है. जब सिरके में मोटी परत जमने लगती है, तो उस की छनाई कर के उसे दोबारा कुछ दिनों के लिए धूप में रखते हैं.
उन्होंने बताया कि अगर गन्ने के रस से तैयार होने वाले सिरके की देखभाल न की जाए तो वह पूरी तरह से खराब हो जाता है.
गांव के लिए तरक्की का खुला दरवाजा : सालों पहले माचा गांव के जो लोग रोजगार की खोज में दूसरे शहरों की तरफ भाग रहे थे, वे लोग अब गांव में ही लाखों रुपए कमा रहे हैं.