भारत में आयुर्वेद का काफी पुराना इतिहास है. हमारे इर्दगिर्द न जाने कितनी जंगलीऔषधियां खेतखलिहानों, बागबगीचों व घर के गलियारे में लगी मिल जाएंगी. लेकिन जानकारी न होने के कारण हम उन्हें कभी तवज्जुह नहीं देते. यदि हमें इन दवाओं की जानकारी होती तो हमारी माली हालत में काफी सुधार होता.

हम एक ऐसी महिला किसान के बारे में बता रहे हैं, जिस ने औषधीय खेती के दम पर अपने साथसाथ इलाके के तमाम किसानों की जीवनशैली भी बदल दी है. मालती देवी औषधीय खेती मकोइया को अपना कर अपनी माली हालत में इजाफा कर आज मालामाल हो गई हैं. भारतीय वनस्पति मकोइया औषधीय गुणों से भरपूर है. खुद उगने और औषधीय होने की वजह से देश में इस की खेती की जाने लगी है.

उत्तर प्रदेश के हरदोई जनपद के कमलापुर गांव की मालती देवी के मन में शुरू से ही कुछ करने की इच्छा थी. मालती देवी बताती हैं कि अपने मायके में किसी को मकोइया की खेती करते देख मैं ने भी इस के बारे में सोचा और ठान लिया कि मैं भी मकोइया की खेती करूंगी. इस के लिए सब  पहले जमीन के बारे में सोचा.

बाजार की स्थिति, पूंजी, मसलन, तैयार माल कहां ले जाया जाए और किस दर से बिकेगा, पूरी जानकारी लेने के बाद इस की खेती पर विचार किया. मुझे लगा कि अन्य फसलों के मुकाबले मकोइया कम समय की सब से अच्छी नकदी फसल हो सकती है. मजबूत फैसले और अटूट विश्वास के साथ 500 ग्राम बीज मैं ने वहीं से लिए, फसल बोई और अच्छा लाभ कमाया.

मकोइया के गुणों के बारे में लखीमपुर जिला मुख्यालय पर हर्बल चिकित्सा पद्धति के जानेमाने चिकित्सक वीबी धुरिया बताते हैं कि जंगली औषधि मकोइया आयुर्वेद, यूनानी, होम्योपैथ, एलोपैथ भारत में अलगअलग चिकित्सा विधियों में इस्तेमाल होती है. मकोइया का पौधा औषधीय गुणों से परिपूर्ण होता है, जिस में किडनी रोग, गुर्दों का सिकुड़ जाना, लिवर का छोटा होना, पीलिया, खून की कमी, गुर्दों के काम न करने की स्थिति में चमत्कारी प्रभाव देखे गए हैं.

खेत की तैयारी और बोजाई : खेत की जुताई कर, खरपतवार हटा कर, भुरभुरी मिट्टी में सड़ी गोबर की खाद संतुलित मात्रा में मिलाते  हैं. 1 बीघे खेत के लिए 100 ग्राम बीज की जरूरत होती है. सही नमी होने पर पौध तैयार करने के लिए बिजाई करते हैं.

रोपण विधि : बोआई के करीब 30 दिन के भीतर पौध रोपण के लिए तैयार हो जाती है. रोपण लाइन से लाइन की दूरी डेढ़ फुट सही रहती  है.

सही समय : अक्तूबर व नवंबर पौधरोपण के लिए सही है.

पैदावार : मकोइया किसान जसवंत बताते हैं कि 1 एकड़ खेत में 5 से 7 क्विंटल दाने निकलते हैं. जितने दाने निकलते हैं उतने ही डंठल निकलते हैं, जो समान दर से बाजार में बिकते हैं.

रखरखाव : रोपण के बाद समयसमय पर निराईगुड़ाई करनी पड़ती है, जिस से खरपतवार फसल को प्रभावित न कर सके. साथ ही मकोइया की खेती में जैविक खादों का इस्तेमाल काफी लाभकारी होता है.

5 से 6 महीने में फसल पक कर तैयार हो जाती है. फसल कटाई के बाद सुखाई जाती है. इसे तार से बुनी चारपाई पर डाल कर पतली छड़ी से पीटते हैं, जिस से उस का दाना नीचे गिर जाता है. इस प्रक्रिया से डंठल अलग हो जाते हैं. फिर दाने और डंठल अलग से सुखाए जाते हैं और फसल बाजार में बेचने के लिए तैयार हो जाती है.

हालांकि बाजार भाव में काफी

उतारचढ़ाव रहता है फिर भी कम समय में यह नकदी फसलों में सब से लाभकारी फसल साबित हो रही?है.

लखनऊ की शहादतगंज की औषधीय मंडी में ले जा कर किसान इसे बेच सकते?हैं. आज इलाके में तकरीबन 90 एकड़ में खेती होती है. कम समय की फसल होने के कारण आसपास के गांव के किसान भी इसे अपना रहे?हैं. वहीं मालती देवी मकोइया के बल पर मालामाल हो गई हैं.

अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें...