आज के दौर में खेती से ज्यादा कमाई लेने के लिए कई उपाय चलन में हैं. मसलन, फसलें उगाने के साथसाथ खास किस्म के पेड़ लगाना भी खेती से आमदनी बढ़ाने का एक कारगर तरीका साबित हुआ है इसलिए खेती को सहायक कामधंधा माना जाता है. सरकार का जंगल महकमा भी इसे तेजी से बढ़ावा दे रहा है.
खेती से ज्यादा कमाई की गरज से बहुत से किसान खेत की मेंड़ों पर इमारती लकड़ी, फलदार यूकेलिप्टस व पोपलर वगैरह के पेड़ लगाते हैं, लेकिन ज्यादातर किसान तैयार पेड़ों को कटवाने के लिए उन्हें काटने वाले ठेकेदार को ही बेच देते हैं.
जिन किसानों के पास पुख्ता जानकारी है, समझदारी व ढुलाई का साधन है, वे अपने पेड़ों की लकड़ी प्लाईवुड बोर्ड बनाने वाले कारखानों को बेचते हैं. इस से उन्हें ज्यादा कीमत मिलती है.
तेजी से पेड़ कटने की वजह से सुप्रीम कोर्ट ने प्लाईवुड के नए कारखानों के लाइसैंस जारी करने पर रोक लगा दी थी, लेकिन 3 साल पहले यमुनानगर के किसानों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिख कर गुजारिश की थी कि पोपलर के पेड़ जंगलों में नहीं, किसान अपने खेतों में उगाते हैं, इसलिए इन से जंगल खत्म होने का कोई खतरा नहीं है.
किसानों की इस बात में दम था इसलिए वन मंत्रालय ने प्लाईवुड की नई इकाई लगाने का लाइसैंस देने का हक राज्य सरकारों को दे दिया था.
इस बारे में एक उच्च कमेटी बनी थी. जंगल से बाहरी लकड़ी की मांग व उपलब्धता के सर्वे का काम तकरीबन पूरा हो चुका है. इच्छुक किसान जरूरी जानकारी व लाइसैंस वगैरह हासिल करने के लिए अपने जिले के उद्योग महकमे से संपर्क कर सकते हैं.
उत्तर प्रदेश से लाखों ट्रौली पोपलर हरियाणा के यमुनानगर में जाता है इसलिए वहां की सरकार ने ट्रौली पर लगने वाला 700 रुपए का महसूल अब खत्म कर दिया है. साथ ही, सहारनपुर को प्लाईवुड का हब बनाने का भी ऐलान किया गया है.
उत्तर प्रदेश में आरा मशीन पर लगी रोक हटने के बाद सहारनपुर में प्लाईवुड इकाई लगाने के लिए 15 जून, 2018 से औनलाइन रजिस्ट्रेशन खोले गए थे.
प्लाईवुड उद्योग
देश के कई हिस्सों में प्लाईवुड बनाने वाली 1,000 से भी ज्यादा छोटीबड़ी इकाइयां व 30,000 से भी ज्यादा आरा मशीनें चल रही हैं. इस काम में असम व हरियाणा राज्य सब से आगे हैं. एशिया का सब से बड़ा प्लाईवुड उद्योग हरियाणा के यमुनानगर इलाके में है. यहां की लकड़ी मंडी बहुत बड़ी है.
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड व हरियाणा वगैरह से भारी मात्रा में लकड़ी आने से देश में बने कुल प्लाईवुड का तकरीबन 60 फीसदी हिस्सा यमुनानगर में बनता है.
यमुनानगर में चल रही प्लाईवुड की 300 से भी ज्यादा इकाइयों में 2 लाख लोग रोजगार में लगे हैं. इन में 50,000 से भी ज्यादा लोग पूर्वोत्तर राज्यों के हैं.
लें ज्यादा फायदा
कृषि वानिकी का भी भरपूर फायदा लेने के लिए खुद उगाई गई लकड़ी की प्रोसैसिंग करना लाजिमी है. अगर किसान अपने मन में ठान ले तो उस के लिए यह काम करना कोई मुश्किल नहीं है.
दरअसल, कड़ी मेहनत से फसलें उगा कर बेच देना सदियों पुराना तरीका है. अब जमाना वैल्यू एडिशन यानी कच्चे माल की कीमत बढ़ाने का है. इस के लिए प्रोसैसिंग से तैयार माल बना कर बाजार में बेचना होता है.
मसलन, महाराष्ट्र व उत्तर प्रदेश के गन्ना किसान 230 सहकारी चीनी मिलें, कर्नाटक के कोको उत्पादक, सहकारी चौकलेट फैक्टरी कैंपको व गुजरात के पशुपालक अमूल कौआपरेटिव डेरी चला रहे हैं.
प्लाईवुड इकाई लगाने से किसान पोपलर या सफेदा की लकड़ी व खेती से निकले कचरे का भी बेहतर इस्तेमाल कर सकेंगे. जाहिर है कि इस से उन्हें ज्यादा कमाई हो सकेगी.
किसान खुद भी प्रोसैसिंग से जुड़े काम अपना सकते हैं. इस के लिए जरूरी है कि वे लगाई जा रही इकाई के बारे में सटीक जानकारी लें. माल बनाने व बेचने की तकनीक सीखें, ट्रेनिंग लें, तभी अपना कदम आगे बढ़ाएं.
प्रोसैसिंग इकाई लगा कर प्लाईबोर्ड, माचिस व लकड़ी की चम्मच, बरतन व मुलायम लकड़ी से दूसरी सजावटी चीजें बना सकते हैं. चंडीगढ़, अंबाला, सहारनपुर, मुरादाबाद, रामपुर वगैरह इलाकों में बहुत सी प्लाईवुड इकाइयां कामयाबी से चल रही हैं. उन्हें देखें, उन में रह कर काम के गुर सीखें या ट्रेनिंग लें.
इकाई लगाना है आसान
इस उद्योग को बढ़ावा देने के मकसद से भारत सरकार ने सलाहमशवरा देने का पुख्ता इंतजाम कर रखा है. किसान इस का फायदा उठा सकते हैं.
वन एवं पर्यावरण महकमे ने साल 1962 से बेंगलुरु के पास यशवंतपुर के तुमकुर रोड पर भारतीय प्लाईवुड उद्योग अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान यानी इर्पिटी के नाम से चला रखा है. वहां का फोन नंबर है 080-28396361 और 30534001.
तकनीकी जानकारी देने के मकसद से यह संस्थान समयसमय पर वर्कशौप, सैमिनार, मेले व नुमाइश वगैरह भी आयोजित करता है.
इस संस्थान ने फायर प्रूफ यानी आग में न जलने वाले दरवाजे, धान की भूसी, कसावा के तने, लिंटाना के इस्तेमाल व बांस की पट्टियों से फर्श की टाइल्स बनाने की जुगत निकाली है. इस के अलावा बांस के रेशे व चूरे को मिला कर अंतर्राष्ट्रीय लैवल पर नए, हलके, किफायती व मजबूत प्लाईबोर्ड बनाने पर खासा जोर दिया है.
इस संस्थान के 2 केंद्र और भी हैं. पहला, 2/2, बीरेन राय रोड, सार्सुना, कोलकाता-700061 में, जिस का फोन नंबर है 033-24983120. दूसरा केंद्र बी-65 फेज 7, मोहाली, पंजाब में है और इस का फोन नंबर है 0172-5095875.
प्लाईवुड उद्योग में काम करने की ट्रेनिंग लेने के इच्छुक किसान व उद्यमी संस्थान के फोन नंबर 080-30534000 पर संपर्क कर सकते हैं.
प्लाईवुड बनाने का तरीका
लकड़ी की छील से उतरी हुई पतली परतों को एक खास किस्म के गोंद रेजिन सरेस जलरोधी फिनोल फार्मल्डीहाइड से आपस में चिपका कर बनाई गई बनावटी लकड़ी के बोर्ड को प्लाईवुड कहा जाता है.
आमतौर पर सामान्य लकड़ी के मुकाबले प्लाईवुड के चटकने, मुड़ने या सिकुड़ने का अंदेशा नहीं होता है इसीलिए लकड़ी के कारीगरों व उपभोक्ताओं द्वारा प्लाईवुड को ही ज्यादा पसंद किया जाता है.
एक खास किस्म की मशीन से पोपलर जैसी नरम लकड़ी के तनों की इतनी बारीक व सफाई के साथ छिलाई होती है कि उस की पतलीपतली महीने परतें अलग हो जाती हैं, फिर उन्हें काट कर सुखा लिया जाता है.
इस के बाद उन महीन परतों को आपस में चिपका कर गरम प्रैस से दबा कर जरूरत के मुताबिक मोटाई का प्लाईबोर्ड तैयार किया जाता है.
प्लाईबोर्ड बनाने के लिए छिली हुई लकड़ी की पतली परतों का इस्तेमाल होता है. उन से ठोस बोर्ड बनाने के लिए उन के बीच में लकड़ी की लंबी पट्टियों का जाल भरावन के तौर पर चिपकाया जाता है.
अब क्वालिटी के नजरिए से प्लाईबोर्ड में काफी सुधार व बदलाव हुए हैं इसलिए वाटर प्रूफ, लैमिनेटैड व दीमकरोधी प्लाई भी अब बाजार में आसानी से मिलने लगी है.
माहिरों के मुताबिक, जल्द ही बागबानी लकड़ी, बांस व दूसरे कुदरती रेशों का भी इस्तेमाल प्लाईवुड बनाने में किया जा सकेगा.
लगाएं पूंजी
किसी भी काम को शुरू करने के बाद उसे कामयाबी के साथ चलाते रहने के लिए पूंजी की जरूरत होती है. प्लाईवुड इकाई लगाने के लिए हुनरमंद कामगारों की जरूरत पड़ती है.
जानकारों के मुताबिक, मझोले दर्जे की प्लाईवुड इकाई लगाने का शुरुआती खर्च तकरीबन 20-25 लाख रुपए तक आ जाता है. बाद में काम बढ़ने के बाद कारखाने को बढ़ा कर बड़ा किया जा सकता है.
अपनी जरूरत के मुताबिक किसान खुद अकेले बैंक से कर्ज ले कर या ग्रामोद्योग बोर्ड की मदद से आपस में मिल कर साझेदारी फर्म के जरीए सहकारी संस्था या लघु कृषक विकास अभिकरण की इमदाद से छोटे किसानों की कंपनी बना कर आसानी से लगा सकते हैं.
मशीनों की जानकारी
प्लाईवुड बनाने की इकाई लगाने में लकड़ी को काटने, छीलने, सुखाने, चिपकाने, दबाने व निकालने वगैरह के लिए कई तरह की मशीनों की जरूरत पड़ती है.
मसलन, पीलिंग लेथ, विनीर स्लाइसर, क्लीपर, ड्रायर, ग्विलिटोन ज्वांइटर, स्पेलेसर, कोर कपोजर, ग्लू स्प्रेडर, ग्लू एप्लीकेटर, प्री प्रैस, ट्रिमिंग मशीन व सैंडर.
अब हमारे देश में देशीविदेशी, मैनुअल व आटोमैटिक छोटीबड़ी, सस्ती व महंगी हर तरह की मशीनें आसानी से मिल जाती हैं, लेकिन उन की खरीद में चौकसी बरतना जरूरी है.
प्लाईवुड बनाने की मशीनें खरीदने से पहले मशीन निर्माताओं की साख, तजरबा, मशीनों की गारंटी, बिक्री, बाद की सर्विस वगैरह के बारे में पूरी जानकारी हासिल कर लें.
प्लाईवुड उद्योग के किसी तजरबेकार से पहले इस बारे में सलाह ले सकते हैं. उस के बाद किसी भरोसेमंद कंपनी या विक्रेता से अच्छी क्वालिटी की मशीनें खरीदें. इस बारे में इच्छुक उद्यमी किसान इस पते पर भी संपर्क कर सकते हैं:
मैं. कल्याण इंडस्ट्रीज, जगाधरी रोड, यमुनानगर, हरियाणा, पिन-135001. फोन : 91-1732-260682, 91-9812092416, 08048718972.