मुजफ्फरपुर जिले के बंदरा प्रखंड के कई ऐसे गांव हैं, जहां किसान परिवारों के युवक कुछ साल पहले रोजगार के चलते दूसरे शहरों को पलायन कर चुके थे. ऐसे में इन परिवारों में औरतें और बुजुर्ग ही गांवों में रह कर खेती का काम करते थे.
स्थानीय लेवल पर खेती के मसले पर काम कर रही संस्था आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत ने जब इन गांवों में खेती से जुड़ी जानकारियां इकट्ठा कीं, तो पता चला कि किसान परिवारों के युवक पारंपरिक तरीके से खेती में लाभ न होने के चलते शहरों में पलायन कर चुके हैं. ऐसे में इस संस्था ने इन किसान परिवारों के बड़े बुजुर्गों से गांव के युवकों को वापस बुला कर उन्नत तरीके से खेती करने की सलाह दी.
पहले तो गांव वालों ने यह कह कर मना कर दिया कि खेती से लाभ हो ही नहीं सकता है, इसलिए वे सिर्फ अपने खाने भर का ही अनाज उपजाएंगे, लेकिन जब संस्था के लोगों ने किसान परिवारों को यह विश्वास दिलाया कि अगर उन के बताए तरीके से खेती की जाए तो लाखों रुपए की आमदनी की जा सकती है.
संस्था की यह बात किसानों को कुछ हद तक ठीक लगी और वे संस्था के बताए तरीके से खेती करने को तैयार हो गए.
मेघ रतवारा, प्यारे टोला, सुंदरपुर रतवारा सहित दर्जनों गांवों के इन किसान परिवारों ने अपने घर के युवकों को घर वापस बुला लिया और आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत व जौन डियर इंडिया की देखरेख में सब्जियों की खेती शुरू की.
संस्था द्वारा इन किसानों को खेती में काम आने वाले बीज, हरित व पौलीहाउस, बांसबल्ली आदि चीजों के साथसाथ ट्रेनिंग भी मुफ्त में मुहैया कराई गई.
गांव के इन युवाओं ने सब से पहले गोभी, टमाटर, मटर जैसी फसलों की व्यावसायिक लैवल पर खेती शुरू की. चूंकि ये युवक संस्था के बताए अनुसार उन्नत बीज और आधुनिक तकनीक का उपयोग कर रहे थे, ऐसे में उन्हें पहली बार ही बंपर उत्पादन प्राप्त हुआ, जिस से इन युवाओं को लागत की तुलना में 3 से 4 गुना ज्यादा लाभ मिला. इस के बाद इन युवाओं का हौसला बढ़ गया और वे दोगुने उत्साह के साथ खेती में जुट गए.
गाजर व चुकंदर की खेती से मिली पहचान
मुजफ्फरपुर के बंदरा और सकरा ब्लौक के भरथीपुर, मेघ रतवारा, प्यारे टोला, सुंदरपुर जैसे ऐसे दर्जनों गांव हैं, जहां के युवक उन्नत तरीके से खेती कर रहे थे. जब ये लोग मंडियों में खुद के द्वारा उत्पादित की गई सब्जियां ले कर गए, तो वहां पता चला कि इन मंडियों में गाजर और चुकंदर की मांग की अपेक्षा आवक कम है. ऐसे में इन युवकों को लगा कि अगर अन्य सब्जियों के साथसाथ चुकंदर और गाजर की खेती की जाए तो ज्यादा मुनाफा लिया जा सकता है.
फिर क्या था, इन युवकों ने यह बात संस्था को बताई तो संस्था ने युवकों को उन्नत किस्म के बीज और उर्वरक मुफ्त में ही मुहैया करा दिए.
इन युवकों ने जब पहली बार गाजर और चुकंदर की खेती की तो उन्हें अच्छाखासा लाभ हुआ. दूसरी बार इन युवकों ने और दोगुने उत्साह से गाजर और चुकंदर की फसल ली.
चूंकि संस्था लगातार अपनी देखरेख में खेती करवा रही थी, इसलिए चुकंदर का साइज बाजार में आने वाले आम चुकंदर की तुलना में 3 गुना ज्यादा बड़ा हुआ था और एक चुकंदर का औसत वजन एक किलोग्राम तक मिला.
इस बार मिले लाभ के चलते गांव वालों ने दूसरी फसलों की खेती छोड़ कर केवल गाजर और चुकंदर की खेती शुरू कर दी. इस गांव में किए जा रहे खेती से प्रभावित हो कर सैकड़ों गांव के किसान आज चुकंदर और गाजर की खेती के जरीए अपने जीवन में बदलाव लाने में कामयाब रहे हैं.
सिंचाई लागत में आई कमी
मुजफ्फरपुर के गांवों में खेती सुधार और आजीविका से जुड़ी इस परियोजना का संचालन कर रही संस्था एकेआरएसपी इंडिया के बिहार प्रदेश के रीजनल मैनेजर सुनील कुमार पांडेय ने बताया, ‘‘हम लोग गांवों में युवकों को खेती के जरीए रोजगार से जोड़ने का काम कर रहे हैं. संस्था के इस काम में ट्रैक्टर निर्माण से जुड़ी कंपनी जौन डियर इंडिया द्वारा वित्तीय सहयोग किया जा रहा है, जिस के तहत हम किसानों को खेती से जुड़ी तकनीकी, संसाधन और ट्रेनिंग मुफ्त में ही मुहैया कराते हैं.
‘‘बिहार में गाजर और चुकंदर की खेती के जरीए जिस गांव के युवक अपनी जिंदगी संवारने में कामयाब रहे हैं, उन की कामयाबी के पीछे का कारण सिंचाई की लागत में बेहद कमी भी रही है.
‘‘संस्था द्वारा किसानों को कम लागत पर सिंचाई सुविधा मुहैया कराए जाने के लिए गांव में ही सोलर पंप लगाए गए हैं. एक गांव में लगे सोलर पंपों की संख्या एक से ले कर 5 तक भी है, जो उस गांव के खेती के रकबे पर भी निर्भर करता है.
‘‘इन सोलर आधारित पंप की क्षमता 5 एचपी तक की है. इसे 270 फुट से 400 गहरे बोरवैल पर लगाया गया है. इस को लगाने की लागत तकरीबन 8 लाख, 88 हजार रुपए आती है और आकस्मिक स्थिति से निबटने के लिए डीजल से चलने वाला जनरेटर सैट भी लगाया गया है. इस में कुछ हिस्सा सामुदायिक अंशदान के रूप में समुदाय द्वारा लगाया गया है.’’
लाखों में है टर्नओवर
मेघ रतवारा गांव के रहने वाले संजीव कुमार ने बताया, ‘‘पहले गांव से बाहर रह कर वे नौकरी करते थे, लेकिन जब परिवार और संस्था के कहने पर उन्होंने शहर से वापस आ कर गांव में खेती करना शुरू किया तो उन्हें शहर की नौकरी की तुलना में कई गुना ज्यादा कमाई हुई.’’
उन्होंने आगे बताया कि वे 5 एकड़ में चुकंदर की खेती करते हैं, जिस से उन्हें 5 लाख रुपए तक की आमदनी आसानी से हासिल हो जाती है. इस के अलावा वे दूसरे मौसम में टमाटर, गोभी, मटर जैसी सब्जियों की खेती कर के अतिरिक्त आमदनी प्राप्त करते हैं. उन्होंने बताया कि गांव के 90 प्रतिशत युवक खेती से जुड़े हुए हैं.
इसी गांव के गौतम प्रसाद भी गाजर, चुकंदर, टमाटर और मक्के की खेती से लाखों रुपए की आमदनी ले रहे हैं. इस गांव में सैकड़ों युवक आज की तारीख में खेती के जरीए अपनी माली हालत को सुधारने में कामयाब रहे हैं.
सुंदरपुर रतवारा गांव के शंभू और अरुण भी चुकंदर और गाजर की फसल उजपा कर उस से 2 से 3 लाख रुपए तक की सालाना आमदनी प्राप्त करते हैं.
बड़ी मंडियों में सीधे सप्लाई
एकेआरएसपी इंडिया के इस कार्यक्रम के कृषि प्रबंधक डा. वसंत कुमार ने बताया कि खेती को रोजगार का जरीया बनाने वाले युवक और किसान अपने कृषि उत्पादों का बड़ी मंडियों में सीधे सप्लाई करते हैं, जिस से उन्हें बिचौलियों के चंगुल से छुटकारा मिल गया है. चूंकि ये किसान अपने उत्पादों को सीधे मंडियों में पहुंचाते हैं, इसलिए लाभ भी ज्यादा मिलता है और मार्केटिंग की समस्या से भी नहीं जूझना पड़ता है.
सब्जियों के भंडारण के लिए स्थापित है कोल्डस्टोरेज
जिन गांवों में किसानों द्वारा सब्जियों की खेती की जा रही है, वहां के किसानों को उन के कृषि उत्पाद का उचित लाभ मिले, इस को ध्यान में रख कर एकेआरएसपी इंडिया के वित्तीय सहयोग से कोल्डस्टोरेज की स्थापना भी की गई है. इस की देखभाल के लिए संस्था ने किसानों की अगुआई में ही समिति बना रखी है, जिस में 10 महिला किसान और 5 पुरुष किसानों को शामिल किया गया है.
सुंदरपुर रतवारा गांव में स्थापित हरियाली शीतभंडार के संचालन के लिए गठित समूह के अध्यक्ष अरुण ने बताया, ‘‘हम लोग अपने कृषि उत्पादों को कोल्डस्टोरेज में लंबे समय तक संरक्षित कर के रखते हैं और जब बाजार में सब्जियों की आवक कम होती है, तो भाव चढ़ने पर अपने उत्पाद मंडियों में पहुंचाते हैं. ऐसे में हम लोगों को लागत की अपेक्षा कई गुना अधिक लाभ मिल जाता है.’’
इस समूह की कोषाध्यक्ष बेबी देवी और सदस्य सरिता और नसीमा ने बताया कि गांव में इस कोल्डस्टोरेज की स्थापना पर लगभग 15-20 लाख रुपए की लागत आई है, जिस में एकेआरएसपी द्वारा सहयोग किया गया है.
जिन गांवों में युवकों की खेती के जरीए जिंदगी बदली जा रही है, वहां वर्मी कंपोस्ट के जरीए जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिस से आने वाले दिनों में इन्हें और ज्यादा लाभ मिल पाए. इस के लिए संस्था द्वारा किसानों को वर्मी कंपोस्ट पिट निर्माण और केंचुए का सहयोग भी दिया जाता है.
इस के अलावा गांव में पेयजल, शौचालय आदि की सुविधाएं भी मुहैया कराई गई हैं, जिस से गांव वालों का जीवन स्तर ऊंचा उठ पाए.