धान की खेती में नर्सरी उगाना व हाथों से पौध की रोपाई करना किसानों के लिए हमेशा से समस्या व लागत वृद्धि का कारण रही है. इन समस्याओं से नजात पाने, समय की बचत और फसल की लागत में कमी करने के लिए पैडी ड्रम सीडर से धान उत्पादन एक सही विकल्प के रुप में सामने आया है. इस में लेवयुक्त खेत में सीधी बोआई की जाती है, जिस से नर्सरी उगाने व रोपाई के खर्च में बचत होती है.

पैडी ड्रम सीडर एक मानव चालित कृषि यंत्र है, जिस के माध्यम से अंकुरित धान के बीजों की सीधी बोआई की जाती है. यह एक सरल, सस्ती व समय की बचत करने की बेहतरीन तकनीक है. इस का प्रयोग कर के किसान लाभ उठा सकता है, लेकिन इस के लिए खेत का बराबर होना व सिंचाई की सुविधा बहुत जरूरी है.

ड्रम सीडर से बोआई के फायदे

* कम लागत और ज्यादा उपज व प्रति हेक्टेयर कम मानव श्रम की जरूरत.

* धान की नर्सरी तैयार करने की जरूरत नहीं.

* हाथों द्वारा रोपाई न होने से मेहनत, समय व पैसों की बचत.

* पंक्ति में बोआई होने से निराई वगैरह में आसानी.

* कम सिंचाई की जरूरत.

* छिटकवां विधि की तुलना में 15-30 फीसदी अधिक उपज की प्राप्ति.

* फसल की रोपाई किए धान से 10-15 दिन पहले परिपक्वन.

* फसल को सूखे से प्रभावित होने से बचाव.

* बीज व लागत में बचत.

* मशीन का इस्तेमाल, रखरखाव व एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाना आसान.

मशीन की संरचना

* पैडी ड्रम सीडर 6 प्लास्टिक ड्रमों का बना हुआ यंत्र है. इन ड्रमों पर पास वाले छिद्र की संख्या 28 व दूर वाले छिद्र की संख्या 14 होती है.

* ड्रमों की लंबाई 25 सैंटीमीटर और व्यास 18 सैंटीमीटर होती है. जमीन से ड्रमों की ऊंचाई 18 सैंटीमीटर व एक ड्रम में बीज रखने की क्षमता 1.5-2.0 किलोग्राम तक होती है.

* बीज गिराव सिस्टम गुरुत्वीय बल प्रणाली पर आधारित है.

* पहिए का व्यास 60 सैंटीमीटर व चौड़ाई लगभग 6.0 सैंटीमीटर है.

* बिना बीज के यंत्र का कुल भार 6.0 किलोग्राम होता है.

* इस यंत्र से एक बार में 12 (2.4 मीटर) कतार में बीज की बोआई होती है. हर 12 कतार के बाद एक कतार छूट जाती है, जिस को स्किप कतार कहते हैं.

नोट : बाजार में 6 ड्रमों के अलावा 2 व 4 ड्रमों वाले भी पैडी ड्रम सीडर उपलब्ध हैं.

मशीन की कार्यक्षमता

2 आदमी इस यंत्र से एक दिन (8 घंटे) में 1.5 हेक्टेयर (2 घंटे प्रति एकड़) की बोआई कर सकते हैं. इस मशीन को खेत में चलाने के लिए 3 मानव श्रमिक की जरूरत होती है. एक श्रमिक मशीन को खेत में चलाता है, दूसरा खेत में मुड़ते समय मशीन को उठाने में मदद करता है व तीसरा श्रमिक ड्रमों में बीज भरने का काम करता है.

ड्रम सीडर का प्रयोग

* मशीन जोड़ते समय शाफ्ट पर सभी 6 ड्रम इस प्रकार रखें कि इन के ढक्कन पर तीर का निशान एक ही दिशा में हो.

* सभी नट, बोल्ट, हैंडल व पहिए को लगा कर नटबोल्ट की ग्रीसिंग करें.

* हर ड्रम पंक्ति को रबड़ पट्टी या कपड़े के फीते से बंद कर दें.

* ड्रमों में 1.5-2.0 किलोग्राम अंकुरित धान के बीजों को 2/3 भाग में भर कर बंद कर दें.

* यदि खेत में पानी भरा हुआ है, तो उसे जल निकासी द्वारा निकाल दें.

* मशीन को खेत की लंबाई के अनुसार चलाएं.

* मशीन को खेत में इस प्रकार चलाएं कि तीर का निशान चलने की दिशा में रहे.

* काम खत्म होने पर मशीन को औयलिंग कर के छायादार स्थान पर रख दें.

* ड्रमों में किसी भी अवस्था में दोतिहाई से ज्यादा बीज न भरें. ज्यादा भरने पर बीज मशीन के छिद्र से ठीक से नहीं निकल पाता है.

* मशीन को डब्बों के अंदर बने हुए त्रिकोण के सिरे की ओर ही खींचें. विपरीत दिशा में खींचने से बीज का सुचारु रूप से निकास नहीं हो पाता है. इस से मशीन की कार्यक्षमता पर प्रभाव पड़ता है. इस बात का खासकर मोड़ पर जरूर ध्यान दें.

भूमि की तैयारी

पैडी ड्रम सीडर से धान की बोआई करने के लिए मध्यम या नीची भूमि उपयुक्त है. बोआई के लगभग एक महीना पहले ही खेत में गोबर की सड़ी खाद 5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से डालें. बोआई के 15 दिन पूर्व खेत की जुताई करें, ताकि खरपतवार नष्ट हो जाएं. ड्रम सीडिंग के लिए खेत समतल होना चाहिए.

बोआई से 12-15 घंटे पहले खेत में पानी भर कर अच्छी तरह से जुताई कर लें व पाटा चला कर समतल कर लें. जरूरत से ज्यादा पानी हो तो निकला दें. बोआई के समय लेवयुक्त खेत में पानी जमा नहीं रहना चाहिए.

बीज व बोआई प्रबंधन

जून के आखिरी हफ्ते तक इस यंत्र से धान की बोआई के लिए उपयुक्त होता है. किसान जब धान की नर्सरी तैयार करते हैं, उसी समय इस मशीन से सीधी बोआई कर सकते है. जैसा कि पहले ही बताया गया है कि 10-15 दिन पहले ही फसल पक कर तैयार हो जाती है. किसान इस तकनीक का प्रयोग फौरी योजना के तौर पर भी कर सकते हैं.

कम दूरी पर छिद्र से 70 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीज की बोआई करें. मईजून महीने में बोआई के लिए बीज को पानी में 12 घंटे ढक कर अंकुरित कर लें.

इस बात का ध्यान रखें कि बीज का अंकुरण ज्यादा न होने पाए. बीज का अंकुरण 7-8 मिलीमीटर हो जाए, तब बोआई करें. अंकुरण ज्यादा होने पर (10-15 मिलीमीटर) मशीन की कार्यक्षमता को प्रभावित करता है.

सावधानियां

बीज की बोआई के बाद 3-4 दिन तक चिडि़यों का प्रकोप अधिक होता है. इस से बचाने के लिए खेत पर 3-4 दिन तक एक मानव श्रमिक की चौकसी सुनिश्चित होना बहुत जरूरी है.

किस्मों का चुनाव

धान की अधिक उत्पादकता वाली किस्मों का प्रक्षेत्रों की पारिस्थितिकी के अनुसार चुनाव करें. उपरिहार प्रक्षेत्रों पर शीघ्र पकने वाली किस्में जैसे-नरेंद्र धान 97, नरेंद्र धान 118, साकेत 4, बारानी दीप, गोबिंद, सीओ 51 आदि, जो कि 90 से 110 दिन में पक कर तैयार हो जाती हैं, का चुनाव करें.

सामान्य प्रक्षेत्रों पर सरजू 52, नरेंद्र 359, नरेंद्र धान 8002, पंत धान 4, लालमती, नरेंद्र धान 2064, नरेंद्र धान 2065, नरेंद्र धान 3112 आदि, जो कि 120 से 140 दिन में पक कर तैयार हो जाती है, का चुनाव करें.

निचले प्रक्षेत्रों में सांभा महसूरी (बीपीटी 5204), स्वर्णा (एमटीयू 7029), स्वर्णा सब-1, सांभा सब-1 और जललहरी आदि प्रजातियों का चुनाव करें.

संकर धान की किस्मों की बोआई ड्रम सीडरों से न करें. इस तकनीक से प्रति हेक्टेयर लगभग 70-75 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है, संकर धान चूकि महंगा होता है, इसलिए लागत अधिक आती है. अत: इस पद्धति के लिए सही नहीं है.

उर्वरक प्रबंधन

ड्रम सीडर से लगाए गए धान में नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश 120-150:60:60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से किस्मों व पारिस्थितिकी के अनुसार डाले. यानी लंबी अवधि की प्रजातियों और सिंचित प्रक्षेत्रों में 120-150:60:60 और कम अवधि व असिंचित प्रक्षेत्रों में 60:30:30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें. जिंक, लौह एवं गंधक की कमी प्रदेश के अनेक जनपदों में देखी जा रही है, अत: मृदा परीक्षण के आधार पर उचित प्रबंधन करें.

खरपतवार नियंत्रण

सीधी बोआई वाली धान की फसल में यदि खरपतवार नियंत्रण समय पर नहीं किया जाए, तो इस में उपज में बहुत कमी हो जाती है. खरपतवार का नियंत्रण निराई द्वारा या पैडी वीडर से किया जा सकता है. धान की सीधी बोआई के साथ ढैंचा के बीज की 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई कर के फसल सघनता को बढ़ाते हुए खरपतवारों की संख्या में कमी की जा सकती है.

एक महीने के बाद ढैंचा को खरपतवारनाशी रसायनों जैसे 2,4 डी या अन्य रसायनों के प्रयोग कर के ढैंचा को खत्म (ब्राउन मैन्योरिंग) कर दिया जाता है. इस से खरपतवारों की संख्या में कमी के साथसाथ 35 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर और जीवांश कार्बन की वृद्धि होती है.

इस के अतिरिक्त अन्य रसायनों में बोआई के तुरंत बाद पेंडीमेथिलीन, प्रेटिलाक्लोर, औक्जैडायजिरिल, एनीलोफास, औक्साडायोजोन आदि और बोआई के 20-30 दिन बाद साइहेलोफाप ब्यूटाइल, बिसपाइरीबैक सोडियम, पिनाक्सुलम, आलमिक्स, इथाक्सी-सल्फयूरान, अजिम-सल्फयूरान, पाइरैजो-सल्फयूरान, फिनाक्साप्राप इथाइल आदि रसायनों का प्रयोग करें. रसायनों की मात्रा के बारे में विश्वविद्यालय या कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क किया जा सकता है.

खाली जगह के भराव के लिए

खेत में एक कोने पर 2-3 किलोग्राम अंकुरित बीज की बोआई कर दें. 10 दिन के बाद खेत में जहांजहां कतार में खाली जगह दिखे, उस जगह का भराव करें. पैडी ड्रम सीडर द्वारा बोआई कर के किसान लागत में कमी कर सकते हैं व अधिक मुनाफा कमा सकते हैं.

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