Machine : हरियाणा के पानीपत जिले के सींख गांव के किसान जितेंद्र मलिक की पढ़ाई के वक्त खेती के कामों में दिलचस्पी कम ही रही, लेकिन पढ़ाई में भी उन का मन ज्यादा नहीं लगा.

उन्होंने दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी. उन्होंने साल 1995 में गांव में सफेद बटन मशरूम की खेती शुरू की. साल 2005 तक तो जैसेतैसे मशरूम की उपज ली, मगर काम में उत्साह महसूस नहीं हो रहा था. रोजरोज मजदूरों की समस्या रहती थी.

उसी बीच उन्होंने ‘खुंबी कंपोस्ट मिक्सचर मशीन’ बना डाली. मशीन को ट्रैक्टर के पीछे जोड़ कर ट्रायल किया तो मनचाही सफलता हाथ नहीं लगी. फिर से वे अनमने मन से खेती में जुट गए, मगर कसक थी कामयाब होने की.

कुछ अरसे बाद रोजरोज की परेशानियों से पीछा छुड़ाने के लिए जितेंद्र ने फिर से मशरूम की मशीन बनाने की सोची. इस बार भाई ने हिम्मत बंधाई.

15 दिनों में मशीन बनाने से जुड़े सभी उपकरणों को जुटाया. मशीन तैयार की और ट्रायल किया. सब कुछ सही हुआ. अगले साल मशीन में कुछ मामूली से बदलाव किए, जो अब तक कायम हैं. तब मशीन बनाने में 2 लाख रुपए खर्च हुए थे.

कैसे काम करती है यह मशीन

जितेंद्र ने मशीन को ‘कंपोस्ट टर्निंग मशीन’ नाम दिया है. यह मशीन खाद डालने पर पड़ी हुई सभी गांठों को खोल देती है. इन गांठों को तोड़ने के लिए छत में एक जाली भी लगाई है, जिस के संपर्क में आने से कंपोस्ट की गांठें टूट जाती हैं. यह अंदरूनी परत को बाहर और बाहरी परत को अंदर की तरफ फेंकने का काम भी करती है, जिस से अमोनिया की निकासी में बहुत सहायता मिलती है.

इस मशीन से क्वालिटी कंपोस्ट तैयार होता है. मजदूरों की तादाद कम हुई है और उत्पादन बढ़ गया है. यह अकेली मशीन 50 मजदूरों के बराबर का काम 1 दिन में करती है. इस मशीन द्वारा मात्र 60 मिनट में 300 क्विंटल के करीब कंपोस्ट टर्न होता है.

शुरू में कंपोस्ट पूरी तरह भीगता नहीं था, अब पाइप चलाने पर फुहारे से पानी मिल जाता है. मशीन को चलाना भी काफी आसान है. यह बिजली और डीजल दोनों से चल सकती है.

उन्होंने हाल ही में एक नई मशीन भी बनाई है, जिस की लागत करीब सवा 3 लाख रुपए है. पहले वाली मशीन तैयार कंपोस्ट को सीधे एक ही लाइन में रखती जाती थी, अब यह नई मशीन कंपोस्ट को मनचाही जगह दाएंबाएं रखती है. यह कंपोस्ट को ट्राली में भी लोड कर सकती है, ताकि उसे दूसरी जगह ले जाया जा सके.

यह नई मशीन जेसीबी का काम भी कर लेती है. इस मशीन से न सिर्फ पैदावार बढ़ेगी, बल्कि खर्च भी कम होगा. जो काम पहले 40-50 मजदूरों से होता था, अब महज 10 मजदूरों से ही हो जाता है.

मानसम्मान

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अपने नवाचारों के लिए जितेंद्र को कई मानसम्मान भी मिले हैं. उन्हें ‘राष्ट्रीय फार्म इन्नोवेटर मीट’ 2010 में आईसीएआर ने मैसूर के केवीके में सम्मान प्रदान किया.

हरियाणा के चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय ने उन्हें 3 बार सम्मानित किया. सोलन के मशरूम निदेशालय ने भी उन्हें सम्मान दिया. जितेंद्र को नेशनल इन्नोवेशन फाउंडेशन का 3 लाख रुपए का द्वितीय राष्ट्रीय पुरस्कार महामहिम राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा राष्ट्रपति भवन में 7 मार्च, 2015 को ‘कंपोस्ट टर्निंग मशीन’ बनाने के लिए दिया गया.

बीकानेर के राजस्थान पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय में 9-10 मार्च को देशभर के कृषक वैज्ञानिकों, प्रगतिशील किसानों व विशेषज्ञों के राष्ट्रीय मंथन कार्यक्रम में उन्हें ‘खेतों के वैज्ञानिक’ सम्मान से नवाजा गया.

मशीन की ज्यादा जानकारी के लिए किसान निम्न पते पर संपर्क कर सकते हैं: गांवपोस्ट : सींख, तहसील : इसराना, जिला : पानीपत (हरियाणा). मोबाइल नंबर 09813718528.

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