हमारे देश में आलू की अच्छीखासी पैदावार होती है. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार व गुजरात जैसे राज्य आलू की खेती करने में आगे हैं. उत्तर प्रदेश राज्य में सब से ज्यादा आलू की खेती की जाती है. कई बार आलू की खेती से किसान अच्छाखासा मुनाफा कमाते हैं, लेकिन कभीकभी यही ज्यादा पैदावार किसानों के लिए घाटे का सौदा भी बन जाती है. किसानों को चाहिए कि वे आलू की खेती करने के लिए अपने इलाके के हिसाब से बेहतर बीज का चुनाव करें और फसल समय पर बोएं. आलू की अधिकता होने पर प्रोसेसिंग की जानकारी ले कर आलू के उत्पाद बनाने की कोशिश करें. अगेती फसल बोने पर भी किसानों को मंडी से अच्छे दाम मिल जाते हैं.

उत्तर प्रदेश की जलवायु के हिसाब से आलू की तकरीबन 35 किस्में हैं, जिन में कुछ खास किस्मों के बीजों की जानकारी और फसल तैयार होने की जानकारी बाक्स में दी गई है.

खेत की तैयारी : फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिए जमीन समतल और पानी के अच्छे निकास वाली होनी चाहिए. आलू की खेती के लिए अधिक उर्वरायुक्त बलुई दोमट व दोमट मिट्टी ठीक रहती है. खेत की 2-3 बार जुताई करें और पाटा चला कर खेत को समतल करें.

बोआई का समय : आलू की अगेती बोआई के लिए 15 सितंबर से मध्य अक्तूबर तक का समय ठीक होता है. बोने के 70-80 दिनों बाद आलू खोदने लायक हो जाते हैं. सामान्य फसल की बोआई के लिए मध्य अक्तूबर से 15 नवंबर तक का समय सही रहता है.

बोआई करने से पहले बीजोपचार जरूर करें. इस से जड़ वाली बीमारियों से छुटकारा मिलता है. इस के लिए बोरिक एसिड 3 फीसदी का घोल यानी 30 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाएं.

उर्वरकों का इस्तेमाल : आलू की फसल के लिए 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 100 किलोग्राम फास्फोरस और 80 किलोग्राम पोटाश की जरूरत प्रति हेक्टेयर होती है. अच्छी पैदावार के लिए गोबर की खाद भी डालें. यदि आप ने फसल बोने से पहले मिट्टी की जांच कराई हो और उस में जस्ता व लोहा जैसे सूक्ष्म तत्त्वों की कमी हो, तो 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट और 50 किलोग्राम फेरस सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से उर्वरकों के साथ बोआई से पहले खेत में डालें.

बोआई मशीन (Planting Machine)

बीजों की मात्रा : बोआई के लिए आलू के रोगरहित बीज भरोसे की जगह से खरीदें. वैसे सरकारी संस्थानों, राज्य बीज निगमों या बीज उत्पादन एजेंसियों से ही बीज खरीदना चाहिए. आमतौर पर 1 हेक्टेयर फसल बोने के लिए 30 से 35 क्विंटल बीजों की जरूरत होती है.

बोआई : आलू की बोआई करने के लिए मेंड़ से मेंड़ की दूरी 50-60 सेंटीमीटर रखें और पौधे से पौधे की दूरी 15 से 20 सेंटीमीटर रखें. कई बार आलू के आकार के हिसाब से यह दूरी कम या ज्यादा भी की जाती है. आमतौर पर आलू को 8 से 10 सेंटीमीटर की गहराई पर खुरपी की सहायता से बोया जाता है, ताकि अंकुरण के लिए मिट्टी में सही नमी बनी रहे. इस के अलावा आलू बोने की मशीन पोटैटो प्लांटर से भी आलू को बोया जाता है.

पोटैटो प्लांटर से आलू की बोआई : मोगा पौटेटो प्लांटर के बारे में अमनदीप सिंह ने बताया कि मोगा इंजीनियरिंग वर्क्स के पोटैटो प्लांटर मैन्यूअल और आटोमैटिक दोनों तरह के बाजार में मौजूद हैं. पोटैटो प्लांटर 2, 3 व 4 लाइनों में आलू की बोआई करता है, लेकिन सामान्यतया 85 फीसदी लोग 2 लाइनों में बोआई करने वाले पोटैटो प्लांटर को अधिक पसंद करते हैं.

बोआई मशीन (Planting Machine)

2 लाइनों में बोआई करने वाले मैन्यूअल पोटैटो प्लांटर की कीमत तकरीबन 38000 3 लाइनों में बोआई करने वाले प्लांटर की कीमत तकरीबन 48000 और 4 लाइनों में बोआई करने वाले प्लांटर की कीमत तकरीबन 58000 रुपए होती है.

आटोमैटिक पोटैटो प्लांटर की कीमत तकरीबन 1 लाख, 20 हजार रुपए है, जिस की रोजाना आलू बोआई करने की कूवत 35 बीघे से 50 बीघे तक है. इस के अलावा 2 से 4 लाइनों तक में बोआई करने वाले आटौमेटिक प्लांटर भी मौजूद हैं.

आलू बोने की इस मशीन के बारे में आप अमनदीप सिंह से उन के मोबाइल नंबर 08285325047 पर बात कर के अधिक जानकारी ले सकते हैं.

खरपतवार नियंत्रण और मिट्टी

चढ़ाना : आलू बिजाई के 20 से 25 दिनों बाद जब पौधे 8 से 10 सेंटीमीटर ऊंचाई के हो जाएं, तो लाइनों के बीच स्प्रिंग टाइन कल्टीवेटर या खुरपी से खरपतवार निकालने का काम करें.

इसी दौरान नाइट्रोजन की शेष मात्रा डाल कर खुरपी या ट्रैक्टर चालित रिजर से मिट्टी चढ़ा दें.

मैदानी इलाकों में आलू की फसल में खरपतवार का प्रकोप बिजाई के 4 से 6 हफ्ते बाद ज्यादा होता है यानी इस विधि से फसल को खरपतवार से मुक्त रखा जा सकता है. खरपतवारों के रासायनिक नियंत्रण के लिए फ्यूक्लोरेलिन, मैट्रीव्यूजीन, पैराक्लोट और प्रोपिनल खरपतवारनाशी रसायनों को 1000 लीटर पानी में घोल कर आवश्यकतानुसार दी गई विधियों को अपना कर छिड़काव करें.

उपज : जल्दी तैयार होने वाली किस्मों की पैदावार कुछ कम होती है, जबकि लंबी अवधि वाली किस्में ज्यादा उपज देती है. सामान्य किस्मों के मुकाबले संकर किस्मों से ज्यादा पैदावार (600 से 800 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) मिलती है.

सिंचाई : फसल की पहली सिंचाई बोआई के 15-20 दिनों के अंदर कर लेनी चाहिए. सिंचाई करते समय ध्यान रखें कि मेंड़ें पानी में आधे से अधिक नहीं डूबनी चाहिए.

इस के बाद तकरीबन 15 दिनों के अंतराल पर दोबारा सिंचाई करें. आलू की फसल में तकरीबन 8 से 10 बार सिंचाई की जरूरत होती है. आलू तैयार होने पर जब उस की खुदाई करनी हो तो तकरीबन 10 दिन पहले ही उस की सिंचाई बंद कर दें.

फसल सुरक्षा : आलू की फसल को अनेक रोग व कीटों से बचाने के लिए बीमारी के हिसाब से दवाओं का इस्तेमाल करें. आलू में अनेक तरह की बीमारयिं जैसे अगेती झुलसा और पछेती झुलसा होने पर पौधे की पत्तियों पर गोल आकार के भूरे धब्बे बनने शुरू हो जाते हैं.

इन की रोकथाम के लिए 2 से ढाई किलोग्राम डाइथेन जेड 78 या डाइथेन एम 45 का 1000 लीटर पानी में घोल बना कर फसल पर छिड़काव करें. जरूरत पड़े तो 15 दिनों बाद फिर यह क्रिया अपनाएं.

आलू की दूसरी बीमारी है आलू का कोढ़ (कौमन स्कैब) इस रोग से फसल की पैदावार में तो कमी नहीं आती, लेकिन आलू भद्दे हो जाते हैं, जिस से बाजार में उन का सही दाम नहीं मिल पाता. आलू के कंदों के छिलकों पर लाल या भूरे रंग के छोटेछोटे धब्बे बन जाते हैं. इस बीमारी से बचाव के लिए बीजोपचार सब से अच्छा तरीका है.

बोआई मशीन (Planting Machine)

कीट नियंत्रण

एपीलेक्ना विटिल : इस कीट की सूंड़ी व वयस्क दोनों ही पत्तियां खाते हैं, जिस से पत्तियों में केवल नसें बचती हैं. यह कीट पीले रंग के होते हैं. इन की रोकथाम के लिए इंडोसल्फान 35 ईसी 1.25 लीटर या कार्बरिल 5 फीसदी घुलनशील चूर्ण की 2 किलोग्राम मात्रा 800 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें.

कटवर्म  : यह जमीन के अंदर रहने वाला कीट है, इस की सूंड़ी रात के समय छोटेछोटे पौधों के तनों को काट देती है. इस की रोकथाम के लिए एल्ड्रिन 5 फीसदी चूर्ण अंतिम जुताई के समय मिट्टी में मिला दें.

आलू का माहूं : यह हरे रंग का कीट होता है, जो विषाणु फैलाता है. बचाव के लिए डाइमेथेएट 30 ईसी की 1 लीटर मात्रा 600 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.

सफेद लट या गुबरेला : यह कीट जमीन के अंदर फसल को नष्ट कर देता है. फोरेट 10 जी या काबोफ्यूराल 3 जी 15 किलोग्राम बोआई से पहले इस्तेमाल करें.

खुदाई : अगेती फसल से ज्यादा कीमत हासिल करने के लिए बिजाई के 60-70 दिनों के बाद खुदाई की जा सकती है. मुख्य फसल की खुदाई तापमान 20-30 डिगरी सेंटीग्रेड तक पहुंचने से पहले कर लें, ताकि फसल ज्यादा तापमान पर मृदुगलन और काला गलन जैसे रोगों से ग्रसित न होने पाए.

अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें...