फसल की कटाई का ज्यादातर काम हंसिए से किया जाता है. एक हेक्टेयर फसल की एक दिन में कटाई के लिए 20-25 मजदूरों की जरूरत पड़ती है. फसल पकने के बाद के कामों में लगने वाले कुल मजदूरों का 65-75 फीसदी, फसलों की कटाई और बाकी उन्हें इकट्ठा करने, बंडल बनाने, ट्रांसपोर्ट व स्टोर वगैरह में खर्च होता है. इन सभी कामों को पूरा करने में फसल को कई तरह के नुकसान भी होते हैं.

अगर फसल की कटाई समय पर न की जाए तो नुकसान और भी बढ़ सकता है. कटाई से जुड़ी मशीनों के इस्तेमाल से मजदूरों की कमी को पूरा किया जा सकता है और इस से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है. फसल कटाई की एक खास मशीन वर्टिकल कनवेयर रीपर है.

फसल कटाई यंत्र रीपर

फसलों की कटाई करने के लिए वर्टिकल कनवेयर रीपर बहुत ही कारगर मशीन है. इस के द्वारा कम समय में ज्यादा फसल कम खर्च पर काटी जा सकती है. मजदूरों की बढ़ती परेशानी के चलते यह वर्टिकल कनवेयर रीपर और भी कारगर साबित हो रहा है.

ट्रैक्टर से चलने वाले इस रीपर की अपनी कुछ खासीयतों के चलते यह दूसरी कटाई मशीनों से अलग है.

इस मशीन से फसलों की बाली मशीन के संपर्क में नहीं आती. इस से फसल के टूटने से होने वाला नुकसान कम होता है. यह रीपर कटाई के बाद फसलों को एक दिशा में लाइन में रखता है, जिस से फसलों को इकट्ठा करना व बंडल बनाना आसान हो जाता है.

इस मशीन को ट्रैक्टर के द्वारा जरूरत के मुताबिक ऊपरनीचे किया जा सकता है. खड़ी फसल को एक सीध में पंक्ति बना कर रखा  जाता है और स्टार ह्वील फसलों को कटरबार की तरफ ढकेलता है. उस के बाद कटरबार खड़ी फसल की कटाई कर देता है.

रीपर का इस्तेमाल उन्हीं फसलों की कटाई के लिए किया जाता है, जिन के बीच में कोई दूसरी फसल न बोई गई हो. कटाई के बाद बैल्ट कनवेयर की मदद से कटी फसल को मशीन की दाहिनी दिशा में ले जाया जाता है. उसे लाइन से मशीन की दिशा में जमीन पर रखता जाता है.

आमतौर पर एक हेक्टेयर गेहूं की फसल की एक घंटे की कटाई व मढ़ाई के लिए 48 मजदूरों की जरूरत होती है, जबकि वर्टिकल कनवेयर रीपर द्वारा इस काम के लिए 3-4 मजदूरों की ही जरूरत होती है. इस के इस्तेमाल से किसान फसलों से भूसा भी हासिल कर सकते हैं, जबकि कंबाइन से कटाई के बाद भूसा नहीं मिलता है. किसान इसे अपना कर समय, पैसा और ऊर्जा की बचत कर सकते हैं.

Reaperरीपर का रखरखाव

अगर रीपर चलाने में परेशानी हो तो रीपर के कटरबार पर लंबाई के मुताबिक वजन कम होना चाहिए. छुरी पैनी न हो, तो उन्हें पैना करवाना चाहिए या बदल कर नया लगाना चाहिए. अगर रीपर से कटाई एकजैसी नहीं हो रही हो तो यह देखना चाहिए कि लेजर प्लेट कहीं से टूटी तो नहीं है. और अगर ऐसा है तो प्लेट बदल देनी चाहिए. मशीन को चलाते समय सभी नटबोल्ट अच्छी तरह से कसे होने चाहिए व दोनों कनवेयर बैल्ट और स्टार ह्वील आसानी के साथ बिना रुकावट के चलना चाहिए.

मशीन के सभी घूमने वाले भागों में अच्छी तरह से ग्रीस या तेल डालते रहना चाहिए. छुरों के धार को समयसमय पर तेज करते रहना चाहिए. खेत में काम पूरा करने के बाद कटरबार की सफाई करना बहुत जरूरी होता है. मशीन के काम करते समय इस के नजदीक किसी भी इनसान को नहीं होना चाहिए, वरना दुर्घटना घट सकती है.

कल्टीवेटर

कल्टीवेटर खेती की बहुत ही कारगर मशीन है. नर्सरी की तैयारी के बाद या खेत में फसल बोने से ले कर कटाई के समय तक के सभी काम जल्दी और आसानी से कल्टीवेटर करता है.

कल्टीवेटर का इस्तेमाल लाइन में बोई गई फसलों के लिए ही होता है. यह निराई करने की खास मशीन है. पावर के आधार पर कल्टीवेटर हाथ से चलाने वाला, पशु चलित व ट्रैक्टर  से चलने वाले होते हैं.

बनावट के आधार पर खुरपादार, तवेदार और सतही कल्टीवेटर इस्तेमाल में लाए जाते हैं.

ट्रैक्टर से चलने वाले कल्टीवेटर कमानीदार, डिस्क व खूंटीदार होते हैं. इस की लंबाई व चौड़ाई घटाईबढ़ाई जा सकती है. इस मशीन में एक लोहे के फ्रेम में छोटेछोटे नुकीले खुरपे लगे होते हैं, जो कि निराई का काम करते हैं. निराई के अलावा कल्टीवेटर जुताई व बोआई के लिए तभी किया जाता है, जब खेत अच्छी तरह जुता हुआ हो. कल्टीवेटर से निराई का काम करने के लिए फसलों को लाइन में बोना जरूरी होता है.

लाइनों की चौड़ाई के मुताबिक कल्टीवेटर के खुरपों की दूरी को कम या ज्यादा किया जा सकता है. कल्टीवेटर से काम करने के लिए 2 आदमियों की जरूरत पड़ती है, फिर भी इस के इस्तेमाल से समय, पैसा व मजदूरी की बचत होती है.

Cultivatorकल्टीवेटर का काम

खेत में छिटकवां विधि से बीज बोने के बाद कल्टीवेटर से हलकी जुताई कर दी जाती है, जिस से बीज कम समय में मिट्टी में मिल जाते हैं. जो फसल लाइनों में तय दूरी पर बोई जाती है, उन की निराईगुड़ाई करने के लिए कल्टीवेटर बड़े काम का है.

गन्ना, कपास, मक्का वगैरह की निराईगुड़ाई कल्टीवेटर के खुरपों की दूरी को कम या ज्यादा कर के या 1-2 खुरपों को निकाल कर की जाती है.

जुते हुए खेतों में कल्टीवेटर का इस्तेमाल करने से खेत की घास खत्म होती है. मिट्टी भुरभुरी हो जाती है व मिट्टी में नीचे दबे हुए ढेले ऊपर आ कर टूट जाते हैं.

कल्टीवेटर पर बीज बोने का इंतजाम कर के गेहूं जैसी फसलों को लाइन में बोया जा सकता है. इस में 3 या 5 कूंड़े एकसाथ बोए जाते हैं और देशी हल के मुकाबले कई गुना ज्यादा काम होता है.

खेत में गोबर या कंपोस्ट वगैरह खाद बिखेर कर कल्टीवेटर की मदद से उसे मिट्टी में अच्छी तरह से मिलाया जा सकता है.

मेंड़ों पर मिट्टी चढ़ाने के लिए कल्टीवेटर की बाहर की 2 शावल निकाल कर उन की जगह पर हिलर्स यानी रिजर के फाल का आधा भाग लगा दिए जाते हैं.

शावल अलग कर के हिलर जोड़ने से कल्टीवेटर पीछे की ओर एक मेंड़ बनाता हुआ चलता है. मेंड़ की मोटाई कल्टीवेटर की चौड़ाई घटानेबढ़ाने से कम या ज्यादा की जा सकती है. आलू व शकरकंद जैसी फसलों की मेंड़ इस की मदद से बनाई जा सकती है.

फसल बोने के बाद ही बारिश हो जाती है तो 3 से 5 सैंटीमीटर की गहराई तक कल्टीवेटर की मदद से पपड़ी तोड़ी जा सकती है.

इस्तेमाल का तरीका

कल्टीवेटर टाइनों के बीच की दूरी छेदों पर टाइन कैरियर की बोल्ट को कस कर हासिल की जाती है. ये छेद मुख्य फ्रेम में एक इंच के अंतर पर होते हैं. हर टाइन में एक बदलने के लिए खुरपा लगा होता है, जो टाइन में 2 बोल्ट से कसा होता है. जब खुरपा बिलकुल घिस जाए, तो खुरपे को पलट दें या नया लगाना चाहिए.

कल्टीवेटर का रखरखाव

कल्टीवेटर के सभी नटबोल्टों की जांच करते रहना चाहिए, जिस से वे हमेशा कसे रहें. रोज काम खत्म करने के बाद मशीन की सतहों पर ग्रीस लगाना चाहिए, जिस से कल्टीवेटर में जंग न लगने पाए. जो पार्ट काम के दौरान घिस  गए हैं या खराब हो गए हैं, उन को बदल देना चाहिए. पार्ट हमेशा भरोसेमंद कंपनी व दुकानदार से जांचपरख के बाद ही लेना चाहिए.

इस्तेमाल के दौरान एहतियात

बोआई करते समय फालों के बीच एक तय दूरी होनी चाहिए और फालों की गहराई भी बराबर होनी चाहिए. बीज बोने वाला इनसान होशियार होना चाहिए. खेत की तैयारी करते समय लाइनों के बीच की दूरी इतनी ज्यादा नहीं होनी चाहिए कि खेत बिना जुता हुआ रहे.

खाद डालते समय यह जरूर ध्यान रखना चाहिए कि खाद सूखी व भुरभुरी है या नहीं. अगर भुरभुरी न हो तो उसे सुखा लेना चाहिए. खाद डालने के लिए मशीन में लगने वाले भाग में प्लास्टिक का इस्तेमाल करना चाहिए. मशीन में निराईगुड़ाई करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि लाइनों में बोए हुए पौधे खराब न हों.

थ्रेशर यंत्र और उसकी देखभाल

अकसर देखा गया है कि गेहूं की दौनी करने के बाद थ्रेशर को खुली जगह पर रख देते हैं. थ्रेशर को भी देखभाल की जरूरत होती है. इस से थ्रेशर के काम करने की उम्र बढ़ जाती है. फसल की दौनी हो जाने के बाद किसानों को इन बातों का ध्यान रखना चाहिए :

*           जब थ्रेशर का काम पूरी तरह से खत्म हो जाए, तो उसे 10-15 मिनट तक खाली चलाना चाहिए, ताकि उस में बचीखुची बालियां या भूसा बाहर निकल जाए. थ्रेशर को बंद करने के बाद उस की कपड़े वगैरह से भी सफाई कर दें.

*           थ्रेशर से ट्रैक्टर, मोटर, इंजन वगैरह को अलग कर देना चाहिए.

*           सभी बैल्ट को निकाल कर उन्हें साफ कर महफूज रखें. थ्रेशर को अच्छी तरह से साफ पानी से धोएं और उसे धूप में सुखा लें.

*           जहांजहां जरूरत हो, वहां रंगाई करें या ग्रीस की पतली परत थ्रेशर पर चढ़ा दें. ग्रीस की जगह काम में लाया हुआ इंजन का तेल भी इस्तेमाल कर सकते हैं. इस से थ्रेशर में जंग कम लगती है.

*           ग्रीस कप व बेयरिंग को डीजल या केरोसीन से धो कर साफ करें और उन में नया ग्रीस और तेल डालें.

*           थ्रेशर को ऐसी जगह रखें, जहां धूप और बारिश से उस का बचाव हो सके. थ्रेशर के पायदानों को लकड़ी के टुकड़े या ईंट के ऊपर रखें.

*           थ्रेशर का इस्तेमाल साल में कुछ समय के लिए ही होता है. 8-10 महीने तक यह बिलकुल भी काम में नहीं आता, इसलिए यह जरूरी है कि इस की देखभाल ठीक से की जाए, ताकि समय आने पर किसान जल्द से जल्द इस का इस्तेमाल कर पाएं.

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