गाजर सर्दियों के मौसम में पैदा की जाने वाली फसल है. इस फसल को तकरीबन हर तरह की मिट्टी में उपजाया जा सकता है, लेकिन इस के लिए सब से सही मिट्टी बलुई दोमट होती है. इस फसल पर पाले का असर भी नहीं होता है.
खेत की तैयारी
खेत की जुताई कर के छोड़ दें, जिस से मिट्टी को तेज धूप लगे और कीड़ेमकोड़े खत्म हो जाएं. उस के बाद ट्रैक्टर हैरो या कल्टीवेटर से 3-4 बार जुताई करें. अच्छी तरह से पाटा चलाएं, जिस से मिट्टी भुरभुरी हो जाए. देशी गोबर वाली खाद मिला कर खेत को तैयार करें. इस के बाद गाजर के बीजों की बोआई करें.
बीज की मात्रा और समय
अगेती किस्मों को अगस्त से सितंबर महीने तक बो दें. मध्यम व पछेती किस्मों को नवंबर महीने के आखिरी हफ्ते तक बोया जा सकता है. गाजर की बोआई के लिए 6-7 किलोग्राम बीजों की प्रति हेक्टेयर जरूरत होती है. बोआई लाइनों में मेंड़ बना कर करें. इन मेंड़ों की आपस की दूरी 30-45 सैंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 6 से 8 सैंटीमीटर रखें या छोटीछोटी क्यारियां बना कर बोएं.
खाद एवं उर्वरक
गाजर की अच्छी उपज लेने के लिए देशी गोबर की खाद 15 से 20 ट्रौली प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में डालें. नाइट्रोजन 30 किलोग्राम, फास्फोरस 40 किलोग्राम और पोटाश 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई से 15-20 दिन पहले मिट्टी में अच्छी तरह मिलाएं. 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से नाइट्रोजन बोआई से 35-40 दिनों के बाद छिड़कें, जिस से जड़ें अच्छी विकसित हो सकें.
सिंचाई : बोआई के लिए पलेवा करें या नमी होने पर बोएं. बोआई के 10-15 दिनों के बाद नमी न होने पर हलकी सिंचाई करें. सिंचाई अधिक पैदावार लेने के लिए जरूरी है, इसलिए हलकीहलकी सिंचाई करें. खेत में नमी रहना जरूरी है.
खरपतवार : खेत में खरपतवार न पनपने दें. समयसमय पर खरपतवार निकालते रहें. साथ ही, गाजर के पौधे ज्यादा घने महसूस हों, तो उन्हें कम कर दें.
कीड़े व बीमारियां : गाजर में ज्यादातर पत्ती काटने वाला कीड़ा लगता है, जो पत्तियों को नुकसान पहुंचाता है. इस की रोकथाम के लिए जरूरी उपाय करें. फसल की अगेती बोएं. गाजर की फसल में एक पीलापन वाली बीमारी लगती है, जो पत्तियों को खराब करती है. बीजों को 0.1 फीसदी मरक्यूरिक क्लोराइड से उपचारित कर के बोने पर यह बीमारी नहीं लगती है.
खुदाई : जब गाजर की मोटाई व लंबाई ठीकठाक और बाजार में भेजने लायक हो जाए, तो खुदाई करनी चाहिए. खुदाई के लिए खेत में नमी होनी चाहिए. खुदाई के समय ध्यान रखें कि जड़ों को नुकसान न पहुंचे. जड़ों के कटने से इन का भाव घट जाता है.
उपज : गाजर की फसल का ठीक तरह से ध्यान रखा जाए, तो 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज होती है. वैसे, उपज किस्मों पर अधिक निर्भर करती है.
गाजर की बिजाई मजदूरों के अलावा मशीन से भी कर सकते हैं. इस के लिए तमाम कृषि यंत्र बाजार में मौजूद हैं. हरियाणा के अमन विश्वकर्मा इंजीनियरिंग वर्क्स के मालिक महावीर प्रसाद जांगड़ा ने खेती में इस्तेमाल की जाने वाली तमाम मशीनें बनाई हैं, जिन में गाजर बोने के लिए गाजर बिजाई की मशीन भी शामिल है.
पूसा गाजर प्लांटर
यह यंत्र भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में कृषि अभियांत्रिकी विभाग द्वारा तैयार किया गया है. इस यंत्र को कम से कम 35 हौर्सपावर के ट्रैक्टर के साथ जोड़ कर चलाया जाता है. यह यंत्र 1 घंटे में तकरीबन 0.5 हेक्टेयर खेत में गाजर बीज की बोआई करने में सक्षम है. यह यंत्र एकसाथ 8 लाइनों से बीज की बोआई करता है.
इस यंत्र की खासीयत है कि यह उठी हुई बैड पर, एकसमान गहराई पर बीज बोता है. इस यंत्र में बोई गई फसल से उपज भी अधिक मिलती है. बड़े स्तर पर गाजर की खेती करने वाले किसानों के लिए यह बहुत उपयोगी यंत्र है.
बिजाई की मशीन
बैड प्लांटर व मल्टीक्रौप बिजाई मशीन बोआई के साथसाथ मेंड़ भी बनाती है. इस मशीन से गाजर के अलावा मूली, पालक, धनिया, हरी प्याज, मूंग, अरहर, जीरा, गेहूं, लोबिया, भिंडी, मटर, मक्का, चना, कपास, टिंडा, तुरई, फ्रांसबीन, सोयाबीन, टमाटर, फूलगोभी, पत्तागोभी, सरसों, राई और शलगम जैसी तमाम फसलें बोई और काटी जा सकती हैं.
मशीन से धोएं गाजर
खेत से निकालने के बाद गाजरों की धुलाई का काम भी काफी मशक्कत वाला होता है, जिस के लिए मजदूरों के साथसाथ ज्यादा पानी की जरूरत भी होती है.
जिन किसानों के खेत किसी नहरपोखर वगैरह के किनारे होते हैं, उन्हें गाजर की धुलाई में आसानी हो जाती है. इस के लिए वे लोग नहर के किनारे मोटर पंप के जरीए पानी उठा कर गाजरों की धुलाई कर लेते हैं. लेकिन सभी को यह फायदा नहीं मिल पाता.
महावीर जांगड़ा ने जड़ वाली सब्जियों की धुलाई करने के लिए भी मशीन बनाई है. इस धुलाई मशीन से गाजर, अदरक व हलदी जैसी फसलों की धुलाई आसानी से की जाती है. इस मशीन से कम पानी में ज्यादा गाजरों की धुलाई की जा सकती है. इस मशीन को ट्रैक्टर से जोड़ कर आसानी से इधरउधर ले जाया जा सकता है.
इस मशीन के बारे में यदि आप ज्यादा जानकारी जानना चाहते हैं, तो आप अमन विश्वकर्मा इंजीनियरिंग वर्क्स के फोन नंबर 09896822103 और 09813048612 पर बात कर सकते हैं.
जैविक खेती के सिरमौर बने किसान
राजगढ़ जिले के ग्राम घोधटपुर के किसान रमेश चंद्र मेरोठा और श्याम सुंदर पाटीदार द्वारा प्राकृतिक कृषि पद्धति से एक बीघा भूमि से जैविक सब्जियों का उत्पादन किया गया. इन्हें उपसंचालक कृषि सहपरियोजना संचालक आत्मा एवं उपसंचालक उद्यानिकी विभाग द्वारा सलाह दी गई थी कि प्राकृतिक कृषि पद्धति से अपने घर के उपयोग के लिए सब्जियों का उत्पादन करें. इस से प्रेरित हो कर दोनों किसान कृषि मेला, उज्जैन गए, वहां से करेले का बीज ले कर आए और इन का प्राकृतिक कृषि पद्धति से उत्पादन किया. इन बीजों को बीजामृत द्वारा बीज उपचारित कर बोआई की गई. इस के बाद समयसमय पर जीवामृत का छिड़काव किया गया और भूमि में वर्मी कंपोस्ट मिलाया गया एवं वर्मीवास करेला की फसल पर टौनिक के रूप में इस्तेमाल किया.
सब्जियों में किसी प्रकार का कीट न लगे, इस के लिए समयसमय पर नीमास्त्र एवं ब्रह्मास्त्र का छिड़काव किया गया. प्राकृतिक पद्धति से उत्पादित सब्जियां स्वाद में बेहद अच्छी और उन का आकार सामान्य से ज्यादा है. प्राकृतिक कृषि में उत्पादित सब्जियां स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक हैं.
इन किसानों ने बताया कि प्राकृतिक पद्धति से सब्जियों का उत्पादन कर इस्तेमाल करने से लोग स्वस्थ एवं रोग से मुक्त रहेंगे. एक बीघा सब्जियों की फसल से निम्न सब्जियों का प्रति सप्ताह उत्पादन प्राप्त हो रहा है, जिस में स्वस्थ करेले की औसतन लंबाई 35 से 45 सैंटीमीटर है. सब्जियों में प्रति सप्ताह अनुमानित उत्पादन किलोग्राम में करेला 75, गिलकी 60, खीरा 150, लौकी 160, कद्दू 150 किलोग्राम शामिल है.
गाजर की मुख्य किस्में
पूसा केसर : यह एक उन्नतशील एशियाई किस्म है, जिस की जड़ें लालनारंगी सी होती हैं. जड़ें लंबीपतली व पत्तियां कम होती हैं. यह अगेती किस्म है, जिस में अधिक तापमान को सहन करने की कूवत होती है.
पूसा यमदग्नि : यह अधिक उपज देने वाली किस्म है. इस की जड़ों का रंग हलका नारंगी (बीच के हिस्से में हलका पीला) होता है. गूदा मुलायम व मीठा होता है.
पूसा मेघाली : यह किस्म अच्छी मानी जाती है. किसान अपने इलाके के हिसाब से कृषि जानकारों से राय ले कर इस के बीज बो सकते हैं. यह किस्म भी अच्छे गुण वाली है.
पूसा रुधिर : यह पूसा की खास किस्म है. आकर्षक लंबी लाल जड़ें, चमकता लाल रंग, समान आकार और ज्यादा मिठास इस प्रजाति की खासीयतें हैं. इस के अलावा हिसार गेरिक, हिसार रसीली, हिसार मधुर, पूसा अंकिता वगैरह किस्में हैं.