Garlic : राजस्थान के जोधपुर जिले का मथानिया गांव उम्दा खेतीकिसानी के लिए जाना जाता है. मथानिया की लाल मिर्च के नाम से इस गांव के खेतों में उपजी मिर्च की मांग विदेशों तक थी. फिर किसानों द्वारा फसलचक्र को तवज्जुह न देने की वजह से यहां की मिर्ची की खेती तमाम रोगों का शिकार हो गई. लेकिन धीरेधीरे किसान जागरूक हुए हैं और कुदरत के नियमों का पालन कर रहे हैं. अब इस इलाके में मिर्च के अलावा गाजर, पुदीना और लहसुन की खेती भी जोरों पर है.
लहसुन (Garlic) की खेती में यहां के किसानों को शिकायत थी कि जब वे लहसुन (Garlic) को खेत में से उखाड़ने का काम करते हैं, तो उन के हाथ खराब हो जाते हैं. हाथ फटने और नाखूनों में मिट्टी चले जाने के कारण अगले दिन खेत में जा कर मेहनत करना कठिन होता था.
किसान मदन सांखला ने इस समस्या को चैलेंज के रूप में स्वीकारते हुए लहसुन की फसल निकालने के लिए एक मशीन बनाने की सोची. मदन को किसान होने के साथसाथ अपने बड़े भाई अरविंद के लोहे के यंत्र बनाने के कारखाने में मिस्त्री के काम का अनुभव भी था. उस ने अपने अनुभव के आधार पर जो मशीन बनाई, उसे काफी बदलावों के बाद कुली मशीन नाम दिया, चूंकि लहसुन में कई कुलियां होती हैं.
लहसुन (Garlic) की खेती में 1 मजदूर दिन भर में 100 से 200 किलोग्राम लहसुन ही खेत से उखाड़ (निकाल) पाता है. दिन भर की मेहनत के बाद अगले दिन खेत में मजदूरी करना सब के बस की बात नहीं रहती थी. इस तरह से लागत बढ़ने लगी और हम लोग लहसुन को कम महत्त्व देने लगे.
‘समस्या के हल के लिए हम ने लहसुन (Garlic) को लोहे की राड या हलवानी से निकालना शुरू किया. इस से हमें काम में थोड़ीबहुत आसानी जरूर हुई, पर यह समस्या का अंत नहीं था. मुझे अंत तक पहुंचने की जल्दी थी.
‘तब मैं ने एक मशीन बनाई. नालीदार शेप वाले मजबूत ऐंगल से बनी हल जितनी ऊंची यह मशीन खूब लोकप्रिय हो रही है. इसे ट्रैक्टर के पीछे टोचिंग कर के इस्तेमाल किया जाता है. यह एक एडजस्टेबल मशीन है. खेत में मिट्टी के हिसाब से लहसुन की गांठें कम या ज्यादा गहराई तक बैठती हैं, लिहाजा ट्रैक्टर से जोड़ कर इसे हल की तरह मनचाहे एंगल पर खेत में उतारा जा सकता है. जमीन के भीतर रहने वाले हिस्से में एक आड़ी पत्ती (ब्लेड) लगी रहती है, जिसे जमीनतल के समानांतर न रख कर थोड़ा टेढ़ा रखा गया है. यह आड़ी पत्ती मजबूत लोहे की बनी होती है.
मशीन की पत्ती जमीन में 7-8 इंच या 1 फुट तक गहरी जाती है और मिट्टी को नरम कर देती है. इस से फायदा यह होता है कि लहसुन को ढीली पड़ चुकी मिट्टी से बाद में आसानी से इकट्ठा किया जा सकता है. लहसुन रहता मिट्टी के अंदर ही है, बाहर निकलने और धूप में खराब होने का अब डर नहीं है.
पहले हाथ से लहसुन (Garlic) निकालने पर पूरे दिन में 1 लेबर 5 क्यारियों से लहसुन निकाल पाता था. गौरतलब है कि 1 बीघे में 100 क्यारियां होती हैं. इस मशीन के नतीजे चौंकाने वाले हैं. इसे ट्रैक्टर से जोड़ कर 1 बीघे का लहसुन महज 15 मिनट में उखाड़ लिया जाता है.
हाथ से लहसुन उखाड़ने के दौरान करीब 3 से 4 फीसदी लहसुन जमीन में ही रह जाता था. किसान या मजदूर चाहे कितना भी अनुभवी क्यों न हो, लहसुन टूट कर जमीन में रह ही जाता था. इस के अलावा पत्तों समेत उखाड़े जाने वाले लहसुन की कुलियों (गांठों) को खराब होने से बचाने के लिए तुरंत ही इकट्ठा कर के छाया में सुखाना पड़ता था. इस काम की मजदूरी भी देनी पड़ती थी.
अब 1 लेबर 1 दिन में 1 बीघे यानी 100 क्यारियों में से लहसुन उखाड़ सकता है. इस मशीन से वक्त की बचत हुई है और दाम भी अच्छे मिलने लगे हैं. राजस्थान के कोटा में लहसुन ज्यादा होता है, इसलिए वहां इस मशीन की मांग ज्यादा है.
पहले हाथ से लहसुन निकालने पर उसे खराब होने से बचाने के लिए बोरी से ढक कर रखना पड़ता था. अब यह फायदा है कि लहसुन रहता तो जमीन में ही है, बस मिट्टी नर्म हो जाती है, इसलिए इसे जरूरत के मुताबिक निकाला जा सकता है. इस मशीन की लागत 13000 से 15000 रुपए के बीच आती है.
ज्यादा जानकारी के लिए किसान निम्न पते पर संपर्क कर सकते हैं:
मदन सांखला, मार्फत विजयलक्ष्मी इंजीनियरिंग वर्क्स, राम कुटिया के सामने, नयापुरा, मारवाड़ मथानिया 342305, जिला जोधपुर, राजस्थान. फोन : 09414671300.