उदयपुर : 18 सितंबर, 2023. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के अनुसंधान निदेशालय में संस्थागत विकास कार्यक्रम के अंतर्गत ‘‘प्राकृतिक खेती- वर्तमान स्थिति एवं भविष्य की संभावनाओं’’ पर 15 दिवसीय राष्ट्रीय प्रशिक्षण का समापन हुआ.

इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में प्रोफैसर एसआर मालू, सदस्य, प्रबंधक मंडल एवं पूर्व अनुसंधान निदेशक, एमपीयूएटी ने अपने उद्बोधन में कहा कि प्राकृतिक कृषि की महत्त्वता को देखते हुए, प्राकृतिक खेती पर स्नातक छात्रों के लिए विशेष पाठ्यक्रम के लिए 30 ब्रांड एंबेसडर के लिए तैयार हो चुके हैं.

इस प्रशिक्षण में सभी विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों, शिक्षकों एवं विषय विशेषज्ञों के लिए 15 दिवसीय प्रशिक्षण आयोजित हुआ.

Prakritik Khetiउन्होंने बताया कि किसान के पास उपयोग नहीं की जाने वाली भूमि पर प्राकृतिक खेती कर के इस को बढ़ावा दे सकते हैं, जिस से कम लागत पर अधिक मुनाफा कमा सके. प्राकृतिक खेती से दूषित पर्यावरण पर नियंत्रण से ओजोन परत को संरक्षित किया जा सकता है.

विदित है कि महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय का प्राकृतिक खेती में वृहद अनुसंधान कार्य एवं अनुभव होने के कारण यह विशेष दायित्व विश्वविद्यालय को दिया गया है.

डा. अरविंद वर्मा, निदेशक अनुसंधान एवं कोर्स डायरेक्टर ने अतिथियों का स्वागत किया एवं प्रशिक्षण की रूपरेखा सदन के समक्ष प्रस्तुत की.

उन्होंने बताया कि प्रशिक्षण में 2 राज्यों से 8 विश्वविद्यालय के 30 प्रतिभागी ने भाग लिया.

डा. अरविंद वर्मा ने बताया कि पूरे प्रशिक्षण में 33 सैद्धांतिक व्याख्यान, 8 प्रयोग प्रशिक्षण एवं 7 प्रशिक्षण भ्रमणों द्वारा प्रतिभागियों को प्रशिक्षित किया गया.

उन्होंने प्राकृतिक खेती पर सुदृढ़ साहित्य विकसित करने की आवश्यकता बताई. साथ ही, इस ट्रेनिंग के रिकौर्ड वीडियो यूट्यूब व अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म के माध्यम से प्रसारित करने की आवश्यकता पर बल दिया, जिस से कि वैज्ञानिक समुदाय एवं जनसामान्य में प्राकृतिक खेती के प्रति जागरूकता बढ़े एवं इस की जानकारी सुलभ हो सके.

उन्होंने कहा कि सभी को खाद्य सुरक्षा प्रदान करना एवं प्रकृति और पारिस्थितिक कारकों को कृषि में समावेश कर के ही पूरे कृषि तंत्र को ‘‘शुद्ध कृषि’’ में रूपांतरित किया जा सकता है.

डा. अरविंद वर्मा ने कहा कि प्राकृतिक खेती को सफल रूप में प्रचारित में प्रसारित करने हेतु सर्वप्रथम आवश्यकता है कि इस के गूढ ज्ञान को स्पष्ट रूप से अर्जित किया जा सके, अन्यथा पूरी जानकारी के अभाव में प्राकृतिक खेती को सफल रूप से लागू करना असंभव होगा.

Prakritik Khetiडा. अरविंद वर्मा ने बताया कि इस प्राकृतिक खेती के पाठ्यक्रम के द्वारा स्नातक छात्र तैयार होंगे, जो किसानो तक इसे सही रूप में प्रचारित करेंगे.

डा. अनुपम भटनागर, आचार्य, सीटीआई ने बताया कि प्रशिक्षण के उपरांत सभी प्रतिभागी अपनेअपने क्षेत्र में प्राकृतिक खेती के प्रचार के लिए उपयोग में ले सकेंगे.

कार्यक्रम के समन्वयक डा. रवि कांत शर्मा ने विगत 15 दिवसीय कार्यक्रम का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया.
डा. अमित त्रिवेदी, क्षेत्रीय अनुसंधान निदेशक, कृषि अनुसंधान केंद्र, उदयपुर ने समस्त अतिथियों एवं प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापित किया. कार्यक्रम का संचालन अनुसंधान निदेशालय के डा. बीजी छीपा ने किया.

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