उदयपुर : 20 दिसंबर, 2023. प्रदेश के राज्यपाल कलराज मिश्र ने विवेकानंद सभागार में आयोजित महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के 17वें दीक्षांत समारोह को संबोधित किया. उन्होंने दीक्षांत समारोह में 864 स्नातक (बीएससी), 201 स्नातकोत्तर (एमएससी) व 74 विद्या वाचस्पति छात्रछात्राओं को दीक्षा प्रदान करने के साथ ही उपाधियां 42 स्वर्ण पदक से नवाजा.

राज्यपाल ने इस वर्ष का कुलाधिपति स्वर्ण पदक दीक्षा शर्मा, एमएससी, कृषि (सस्य विज्ञान) को प्रदान किया.

इस कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि शिक्षा और कृषि पर विशेष ध्यान दे कर ही हम सही माने में राष्ट्र को समृद्ध बना सकते हैं. राष्ट्र की प्रगति का मूल आधार खाद्य और पोषण सुरक्षा ही है. हरित क्रांति और दुग्ध क्रांति के बाद देश खाद्य व पोषण सुरक्षा में आज आत्मनिर्भर जरूर बन गया है, लेकिन यह अंत नहीं है. हमें अभी विकसित भारत के स्वप्न को साकार करना है. इस के लिए हमें कृषि निर्यात को बढ़ाना होगा. यह भी ध्यान रखना होगा कि भूमि की उर्वर शक्ति और जैव विविधता पर खतरा न मंडराए.

उन्होंने आगे कहा कि प्रति व्यक्ति खाद्य उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि के उपरांत भी आबादी का एक बड़ा तबका अभी भी अल्पपोषण व कुपोषण की विपदा झेल रहा है.

कृषि में महिलाओं की खास भूमिका

राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा कि कृषि में महिलाओं की भूमिका आज भी महत्वपूर्ण है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के शोध से पता चलता है कि प्रमुख फसलों के उत्पादन में महिलाओं की भागीदारी 75 फीसदी, बागबानी में 79 फीसदी, फसल कटाई के उपरांत के कामों में 51 फीसदी और पशुपालन व मत्स्यपालन में 95 फीसदी है. इसी के मद्देनजर कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने 15 अक्तूबर को महिला कृषक दिवस मनाने की पहल की है.

दुग्ध उत्पादन में अव्वल

कार्यक्रम में डा. आरसी अग्रवाल, उपमहानिदेशक, कृषि शिक्षा, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने कहा कि भारतीय कृषि विविधतापूर्ण है. इस में जलवायु, मृदा, भूगर्भीय पारिस्थितिकी व वनस्पति तंत्र सम्मिलित हैं, जो सहस्त्राब्दियों से विकसित प्राकृतिक आवास, फसलों व पशुधन की विविधता तय करता है. भारत फसली पौधों की उत्पत्ति के विश्व के 8 केंद्रों में से एक है. तकरीबन 166 फसल प्रजातियां व फसलों की 320 जंगली प्रजातियों की उत्पत्ति यहां हुई.

उन्होंने आगे कहा कि देश में इस समय कुल 76 विश्वविद्यालय और 732 केवीके हैं. 8 वर्ष पूर्व तक 23 फीसदी छात्राएं कृषि शिक्षा ग्रहण कर रही थीं, जो आज बढ़ कर 50 फीसदी हो चुकी है. कृषि में महिलाओं की भागीदारी के अच्छे संकेत हैं. वर्ष 2040 तक 9.50 लाख कृषि स्नातकों की आवश्यकता होगी, जो आज 50 फीसदी ही है.

Doctorateडा. आरसी अग्रवाल ने बताया कि पशुपालन भारतीय अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग है. पशु आनुवांशिक संसाधन राष्ट्र की पारंपरिक शक्ति है. आज 221 मिलियन टन दुग्ध उत्पादन के साथ हम विश्व पटल पर प्रथम पायदान पर है. दुग्ध उत्पादन में राजस्थान ने उत्तर प्रदेश को पीछे छोड़ते हुए सर्वाधिक दुग्ध उत्पादन वाले राज्य का गौरव पाया है.

उन्होंने खुशी जाहिर की कि एमपीयूएटी ने भी बकरी की 3 प्रजातियों के पंजीकरण में महती भूमिका निभाई है.

डा. आरसी अग्रवाल ने कहा कि वर्ष 1960 से आरंभ हुए कृषि विश्वविद्यालयों ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के साथ मिल कर कृषि को नई दिशा दी है. हम ने फसलों के क्षेत्र में हरित, दुग्ध में श्वेत, मत्स्य में नीली, तिलहन में पीली, उद्यानिकी व मधुमक्खीपालन में स्वर्णिम, अंडा उत्पादन में रजत, कौफी में भूरी व ऊन उत्पादन में स्लेटी क्रांतियों से एक इंद्रधनुषी परिक्रमण का निर्माण किया है. भारत की 1950-51 से अब तक की यात्रा उत्कृष्ट रही है. इस काल में हम ने उत्पादन की दृष्टि से खाद्यान्न में 6.46, उद्यानिकी में 14.36, दुग्ध में 13.06, अंडे में 76.87 व मत्स्य उत्पादन में 22 फीसदी की वृद्धि दर्ज की है. यही नहीं, वर्ष 2010 तक हम खाद्यान्न सुरक्षित राष्ट्र की श्रेणी में आ गए.

उन्होंने आगे कहा कि आज हमारी आबादी 142 करोड़ है. अनुमान के अनुसार, वर्ष 2023 तक भारत की आबादी 150 करोड़ और वर्ष 2040 तक 159 करोड़ पहुंचने की संभावना है. चिंता इस बात की है कि शहरीकरण औद्योगिकीकरण के कारण ग्रामीण श्रेत्रों में फसली क्षेत्रफल में कमी आ रही है. हम जल की दृष्टि से भी असमृद्ध देखा हैं. विश्व के ताजा पानी का मात्र 4 फीसदी हिस्सा ही हमारे पास है. ऐसे में चुनौतियों को ध्यान में रख कर योजनाएं बनानी होंगी.

उपलब्धियों में शीर्ष पर विश्वविद्यालय

Doctorateकुलपति अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि विगत एक वर्ष में विश्वविद्यालय ने अनुसंधान के अलावा विभिन्न क्षेत्रों में अनेक उपलब्धियां हासिल की हैं. विराट परिसर, श्रेष्ठ अकादमिक स्तर व शैक्षणिक गुणवत्ता के कारण आज विश्वविद्यालय की भूमिका अद्वितीय है.

प्राकृतिक खेती पर डिगरी कोर्स होगा शुरू

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि प्राकृतिक खेती पर आगामी वर्ष से विश्ववि़द्यालय कृषि स्नातक कार्यक्रम का एक कोर्स चलाएगा. साथ ही, एक प्रथम डिगरी कार्यक्रम आरंभ करने का भी विचार चल रहा है.

12 भारतीय व विदेशी पेटेंट हासिल

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने प्रमुख उपलब्धियां गिनाते हुए कहा कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पहली बार अभिन्न तकनीक विकसित कर विगत एक वर्ष में 12 भारतीय व विदेशी पेटेंट हासिल किए. इन में प्रमुख है, बायोचार निर्माण, सौर ऊर्जा चलित आइसक्रीम गाड़ी का निर्माण, कृषि अवशेषों से हाइड्रोजनयुक्त सिनगैस का निर्माण व स्वचालित सब्जी पौध रोपण तकनीक आदि.

ड्रोन के उपयोग में प्रथम विश्वविद्यालय

उन्होंने बताया कि भारतीय विश्वविद्यालय कृषि में ड्रोन के उपयोग में राज्य का प्रथम विश्वविद्यालय है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा उपलब्ध 2 ड्रोन खरीद कर किसानों के खेतों पर छिड़काव के लिए सब से पहले उपयोग में लाना शुरू किया.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद राष्ट्रीय पशु आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो करनाल में बकरी की 3 प्रजातियां सोजत, गूजरी व करौली का पंजीकरण कराया गया, जबकि चैथी प्रजाति नैनणा के पंजीकरण की कार्यवाही अंतिम चरण में है.

Milletsमिलेट्स वर्ष में भी पहचान बनाई

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष में भी विश्वविद्यालय ने राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है. मिलेट्स पर सचित्र मार्गदर्शन, जागरूकता, रैलियां व कार्यशालाएं आयोजित की गईं. छात्रों द्वारा मिलेट्स केक ने तो राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की. मिलेट्स को भोजन में शामिल करने व मिलेट्स पर किए गए कामों के संबंध में एक कौफी टेबल बुक भी तैयार की गई.

अनेक उन्नत बीज किस्में भी रिलीज

अनुसंधान के क्षेत्र में विश्वविद्यालय द्वारा विकसित मक्का की किस्म प्रताप संकर मक्का-6 को राष्ट्रीय स्तर पर चिन्हित व अनुमोदित किया गया. वर्ष 2022-23 में ज्वार, मूंगफली, चना, अश्वगंधा, असालिया, इसबगोल, एवं अफीम फसलों की 8 किस्में यथा प्रताप ज्वार-2510, प्रताप मूंगफली-4, प्रताप चना-2, प्रताप चना-3, प्रताप अश्वगंधा-1, प्रताप असालिया, प्रताप इसबगोल-1 एवं चेतक अफीम राज्य स्तरीय किस्म रिलीज समिति को अनुमोदन हेतु भेजी गई है. विभिन्न अनुसंधान परियोजनाओं द्वारा वर्ष 2023 में 76 तकनीकों का विकास कर किसानों के उपयोग के लिए सिफारिश की गई. वर्ष 2022-23 में हमारे प्रक्षेत्रों पर 4105.71 क्विंटल गुणवत्ता बीज का उत्पादन किया गया और 7.35 लाख पादप रोपण सामग्री तैयार की. साथ ही, मछली के 125 लाख स्पान, 3.20 लाख फ्राई और 1.95 लाख फिंगरलिंग का उत्पादन कर किसानों को वितरित किए गए.

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