Convocation: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् – भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली का 63वां दीक्षांत समारोह पिछले दिनों 17 मार्च से 22 मार्च, 2025 को राष्ट्रीय कृषि विज्ञान परिसर (NASC) के भारत रत्न सी. सुब्रमण्यम हौल में आयोजित किया गया. इस दीक्षांत समारोह के मुख्य अतिथि भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री, शिवराज सिंह चौहान रहे.

इस कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि केंद्रीय राज्य मंत्री (कृषि एवं किसान कल्याण) भगीरथ चौधरी और राम नाथ ठाकुर थे. इस अवसर पर कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के सचिव एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक देवेश चतुर्वेदी, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के कुलपति एवं निदेशक डा. सीएच श्रीनिवास राव, डीन एवं संयुक्त निदेशक (शिक्षा) डा. अनुपमा सिंह, संयुक्त निदेशक (अनुसंधान), संयुक्त निदेशक (प्रसार), परियोजना निदेशक डब्ल्यूटीसी, संयुक्त निदेशक (प्रशासन), आईसीएआर के पूर्व महानिदेशक और पूसा संस्थान के पूर्व निदेशक एवं डीन भी उपस्थित थे.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आईसीएआर) – भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) कृषि अनुसंधान, शिक्षा और प्रसार में नवाचार और उत्कृष्टता को प्रोत्साहित करने के लिए प्रसिद्ध है. हमारी पहल, रणनीतियां और नीतियां न केवल राष्ट्र की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सावधानीपूर्वक तैयार की गई हैं, बल्कि वैश्विक अवसरों का लाभ उठाने के लिए भी केंद्रित हैं.

हम उन्नत तकनीकों और उच्च स्तरीय मानव संसाधन के माध्यम से विज्ञान और समाज में प्रगति को प्राथमिकता देते हैं. आईएआरआई ने 12 से अधिक दशकों में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में अनुसंधान और शिक्षा के लिए उत्कृष्टता के एक प्रतिष्ठित केंद्र के रूप में अपनी पहचान बनाई है. पूसा संस्थान के शैक्षणिक कार्यक्रम की यात्रा साल 1923 में शुरू हुई थी और पिछले एक सदी से इस ने अपनी गौरवशाली परंपरा को बनाए रखा है.

पिछले साल स्नातकोत्तर विद्यालय का नाम बदल कर स्नातक विद्यालय किया गया था. अब तक, इस संस्थान ने कुल 11,731 छात्रों को डिग्रियां प्रदान की हैं, जिन में एसोसिएटशिप, एम.एससी., एम.टेक., और पीएच.डी. डिग्रियां शामिल हैं, साथ ही विभिन्न देशों के 512 अंतरराष्ट्रीय छात्रों को भी उपाधियां प्रदान की गई हैं. इस 63वें दीक्षांत समारोह के दौरान, कुल 399 छात्रों को उन की कड़ी मेहनत और सफलता के उपलक्ष्य में डिग्रियां प्रदान की गईं, जिन में 233 एम.एससी, 166 पीएच.डी, और 5 विदेशी छात्र शामिल हैं.

अनुसंधान की उपलब्धियां:

साल 2024 के दौरान, 10 विभिन्न फसलों में कुल 27 फसल किस्मों को विकसित और जारी किया गया. इन में 16 प्रजातियां और 11 संकर किस्में शामिल हैं.

आईसीएआर – आईएआरआई के द्वारा विकसित 10 जलवायु सहिष्णु और बायोफोर्टिफाइड फसल किस्मों को राष्ट्र को समर्पित किया गया. इन में 7 अनाज एवं मोटे अनाज, 2 दलहनी फसलें और 1 चारे की किस्म शामिल हैं.

Convocationआईएआरआई ने बासमती धान के उत्पादन और व्यापार में उत्कृष्ट योगदान दिया है, जिस में उन्नत किस्मों के विकास की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. पूसा बासमती किस्में, जैसे पूसा बासमती 1718, पूसा बासमती 1692, पूसा बासमती 1509 और जीवाणु झुलसा  व ब्लास्ट रोग प्रतिरोधी उन्नत बासमती किस्में पीबी 1847, पीबी 1885 और पीबी 1886, भारत से 5.2 मिलियन टन बासमती धान निर्यात में लगभग 90 फीसदी योगदान देती हैं. वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत को बासमती धान निर्यात से 48,389 करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा प्राप्त हुई है. वहीं, अप्रैल, 2024 से नवंबर, 2024 के दौरान बासमती धान निर्यात से 31,488 करोड़ रुपए की आय हुई है.

बासमती धान की खेती के कारण भूजल स्तर पर पड़ने वाले प्रभावों को ध्यान में रखते हुए, आईएआरआई ने दो शाकनाशी सहिष्णु बासमती धान किस्में, पीबी 1979 और पीबी 1985, विकसित और जारी की हैं. ये किस्में प्रत्यक्ष बीजाई के लिए उपयुक्त हैं, जिस से गिरते भूजल स्तर की समस्या और रोपाई में किए गए धान से उत्पन्न ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलेगी.

इस के अलावा दो अल्पावधि गैरबासमती धान किस्में, पूसा 1824 और पूसा 2090 विकसित और जारी की गई हैं. ये किस्में फसल कटाई के बाद की कृषि गतिविधियों के लिए पर्याप्त समय प्रदान करेगी. इस से खेतों की समय पर सफाई में सहायता मिलेगी, जिस से पर्यावरण प्रदूषण कम होगा और सिंधु गंगा के मैदान में गेहूं की अगली फसल की समय पर बोआई सुनिश्चित हो सकेगी. वर्तमान में आईएआरआई के अनुसार गेहूं किस्मों की खेती लगभग 9 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में की जा रही है, जिस से देश के अन्न भंडार में लगभग 40 मिलियन टन गेहूं का योगदान हो रहा है.

हमारे अनुसंधान कार्यक्रम ने पोषण सुरक्षा पर भी ध्यान केंद्रित किया है और 8 बायोफोर्टिफाइड फसल किस्में विकसित की हैं. एक ब्रेड गेहूं (एच आई 1665) और एक ड्यूरम गेहूं एच आई-8840  अधिक आयरन और जिंक युक्त जो केंद्रीय क्षेत्र के लिए, दो ब्रेड गेहूं किस्में उच्च प्रोटीन (एच डी 3390 उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र के लिए और एच डी 3410 दिल्लीएनसीआर क्षेत्रों के लिए ), 2 बायोफोर्टिफाइड मक्का संकर, जिन में एक बहुपोषक संकर, पूसा बायोफोर्टिफाइड मक्का संकर 5 शामिल है, जिस में α-टोकोफेरौल (21.60 पीपीएम), विटामिन ए (6.22 पीपीएम), हाई लाइसिन ( 4.93 फीसदी )  और ट्रिप्टोफैन ( 1.01फीसदी ) की उच्च मात्रा है, 2 डबल जीरो (शून्य इरूसिक एसिड और ग्लूकोसिनोलेट) सरसों किस्में – पूसा सरसों 35 और पूसा सरसों 36, 1 सोयाबीन किस्म (पूसा 21), जो कि कुनीट्ज कुन्तिज ट्रिप्सिन इन्हिबीटर (KTI) की कम मात्रा वाली किस्म है.

येलो वेन मोजेक वायरस प्रतिरोधी और एनेशन लीफ कर्ल वायरस प्रतिरोधक भिंडी की दो किस्में पूसा भिंडी-5 और डीओएच-1 विकसित किस्में और जारी की गई हैं. ये किस्में कीटनाशकों के उपयोग को कम करने और खेती की लागत को घटाने में मदद करेगी.

संरक्षित खेती को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न सब्जी फसलों की उन्नत किस्में खीरा सीवी, पूसा पार्थेनोकार्पिक खीरा-6, पूसा पार्थेनोकार्पिक खीरा संकर-1, खरबूजा सीवी, पूसा सुनहरी और पूसा शारदा, टमाटर संकर पूसा रक्षित, पूसा चेरी टमाटर-1, करेला सीवी, पूसा संरक्षित करेला-2 और समर स्क्वैश सीवी, पूसा श्रेयस विकसित किस्में और जारी की गई हैं.

सब्जी फसलों की उन्नत गुणवत्ता वाली बीज उपलब्ध कराने के लिए, ब्रीडर बीज नियमित रूप से राष्ट्रीय बीज निगम और राष्ट्रीय बागबानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान को सप्लाई किए जा रहे हैं. वर्ष 2024-25 के दौरान, विभिन्न सब्जी किस्मों और संकरों के लिए 17 समझौता ज्ञापन निजी बीज कंपनियों के साथ हस्ताक्षरित किए गए हैं.

गेंदा की एक नई किस्म पूसा बहार और ग्लेडियोलस की मध्यम मौसम वाली किस्म पूसा सिंदूरी को केंद्रीय किस्म विमोचन समिति द्वारा जारी करने की सिफारिश की गई है. इस के साथ ही, देश में पहली बार, आम के दो बौने जड़वृक्ष पूसा मूलव्रंत-1 और पूसा मूलव्रंत-2 जारी किए गए हैं. ये जड़वृक्ष कलमी आम के पौधों की ऊंचाई को कम करने में सहायक होंगे और बागों के बेहतर प्रबंधन में मदद करेंगे.

आईसीएआर – आईएआरआई द्वारा छोटे किसानों के लिए 1.0  हेक्टेयर क्षेत्र का एकीकृत कृषि प्रणाली मौडल विकसित किया गया है, जिस में फसल उत्पादन, डेयरी, मछली पालन, बतख पालन, बायोगैस संयंत्र, फलदार वृक्ष और कृषि वानिकी को शामिल किया गया है. यह मौडल प्रति हेक्टेयर हर साल लगभग 3.8 लाख रुपए तक का शुद्ध लाभ उत्पन्न करने और 628 मानव दिवस का रोजगार सृजित करने की क्षमता रखता है.

यह प्रणाली अपशिष्ट पुनर्चक्रण और उत्पादकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि इस में एक इकाई के उपउत्पादों को दूसरी इकाई के इनपुट के रूप में उपयोग किया जाता है, जिस से संसाधनों की दक्षता बढ़ती है.

इसी प्रकार से, आईसीएआर – आईएआरआई द्वारा सीमांत किसानों के लिए 0.4 हेक्टेयर क्षेत्र का एकीकृत कृषि प्रणाली मौडल विकसित किया गया है. इस मौडल में पौलीहाउस खेती, मशरूम उत्पादन, फसल उत्पादन और बागबानी एंटरप्राइज को शामिल किया गया है. यह मौडल 1.76 लाख रुपए प्रति एकड़ प्रति वर्ष तक का शुद्ध लाभ उत्पन्न करने की क्षमता रखता है.

आईसीएआर – आईएआरआई द्वारा विकसित पूसा एसटीएफआर मीटर एक कम लागत वाला, उपयोगकर्ता के अनुकूल, डिजिटल एंबेडेड सिस्टम और प्रोग्रामेबल उपकरण है. इस एक ही उपकरण के माध्यम से द्वितीयक और सूक्ष्म पोषक तत्वों सहित कुल 14 महत्वपूर्ण मृदा पैरामीटर का परीक्षण किया जा सकता है.

संस्थान द्वारा विकसित पूसा डिकंपोजर एक पर्यावरण अनुकूल और किफायती माइक्रोबियल समाधान है, जो फसल अवशेषों के इनसीटू और एक्ससीटू प्रबंधन के लिए प्रभावी है. यह खेत में ही फसल अवशेषों, विशेष रूप से पराली के तेजी से अपघटन को बढ़ावा देने के लिए विकसित किया गया है. कृषि अपशिष्ट को पौधों के पोषक तत्वों और ह्यूमस से भरपूर जैविक खाद में बदला जा सकता है. पूसा डिकंपोजर अब एक रेडी-टू-यूज पाउडर फार्मूलेशन में भी विकसित किया गया है, जो पूरी तरह से पानी में घुलनशील है और मशीन स्प्रेयर की मदद से आसानी से उपयोग किया जा सकता है.

आईसीएआर – आईएआरआई कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन वाली तकनीकों और इनपुट उपयोग दक्षता बढ़ाने वाली तकनीकों के विकास व पहचान पर कार्य कर रहा है, जिस से नेट जीरो उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त किया जा सके. नीम तेल लेपित यूरिया के उपयोग से नाइट्रस औक्साइड (N₂O) उत्सर्जन में लगभग 9 फीसदी की कमी लाई जा सकती है.

इसी तरह, ओलियोरेसिन लेपित यूरिया के उपयोग से धान में मीथेन उत्सर्जन 8.4 फीसदी और नाइट्रस औक्साइड (N₂O) उत्सर्जन 11.3 फीसदी तक कम हुआ है. गेहूं में नाइट्रस औक्साइड (N₂O) उत्सर्जन में 10.6 फीसदी की कमी देखी गई है. डायरेक्ट सीडेड राइस न केवल कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन वाली तकनीक है, बल्कि इस में पानी उपयोग दक्षता भी अधिक होती है.

आईएआरआई उत्तर-पश्चिम भारत में धान और गेहूं की पराली जलाने की निगरानी और भारत में फसल अवशेष जलाने की स्थिति का रोजाना थर्मल सैटेलाइट रिमोट सैंसिंग के माध्यम से विश्लेषण करता है. धान और गेहूं जलाने की घटनाओं पर दैनिक बुलेटिन तैयार कर केंद्र एवं राज्य सरकार के हितधारकों को भेजे जाते हैं, ताकि वे आवश्यक नीतिगत और प्रशासनिक कदम उठा सकें.

पूसा फार्म सन फ्रिज, जिसे आईएआरआई द्वारा विकसित किया गया है, एक औफ ग्रिड, बिना बैटरी वाला सौर ऊर्जा चालित प्रशीतित एवं वाष्पीकरणीय शीतलन संरचना है. इस तकनीक का उद्देश्य कृषि क्षेत्रों में सौर ऊर्जा आधारित कोल्ड स्टोरेज प्रदान करना है, जिस से नाशवंत कृषि उत्पादों का भंडारण किया जा सके.

“पूसा मीफ्लाई किट” और “पूसा क्यूफ्लाई किट” तैयार उपयोग किट है, जो क्रमशः फलों और कुकुरबिट सब्जियों में फल मक्खी के प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए विकसित की गई है. यह किट पराफेरोमोन इम्प्रेग्नेशन तकनीक का उपयोग कर के बैक्ट्रोसेरा प्रजाति की नर फल मक्खियों को आकर्षित और समाप्त करने में सक्षम है. एक बार लगाने पर, यह किट पूरे मौसम तक प्रभावी रहती है, जिस से फसल की गुणवत्ता एवं उत्पादन में वृद्धि होती है और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग को रोका जा सकता है.

“पूसा व्हाइटफ्लाई अट्रैक्टेंट” एक नवीन प्रलोभक (ल्यूर) है, जिसे खेतों और बागवानी फसलों में सफेद मक्खियों को आकर्षित करने के लिए विकसित और व्यावसायिक रूप से उपलब्ध कराया गया है. इसे पीले स्टिकी ट्रैप्स के साथ उपयोग किया जा सकता है और यह समेकित कीट प्रबंधन और जैविक कृषि का एक महत्वपूर्ण घटक है.

Convocation

संस्थान का पूसा समाचार है खास, 6 भाषाओं में मिलती है जानकारी:

संस्थान ने वीडियो आधारित विस्तार मौडल “पूसा समाचार” विकसित किया है, जिस का उद्देश्य दूरदराज के किसानों तक कृषि सलाह पहुंचाना है. यह एक साप्ताहिक कार्यक्रम है, जो हिंदी, तेलुगु, कन्नड़, तमिल, बांग्ला और उड़िया सहित छह भाषाओं में उपलब्ध है और हर शनिवार शाम 7 बजे यूट्यूब चैनल पर प्रसारित किया जाता है. इस की कुल दर्शक संख्या लगभग 1.3 मिलियन है.

पूसा व्हाट्सएप पर घर बैठे मिलती है सलाह:

‘पूसा व्हाट्सएप सलाह (9560297502) सेवा भी शुरू की गई है, जिस से किसान अपने प्रश्न पूछ सकते हैं और विशेषज्ञों से समाधान प्राप्त कर सकते हैं.

कृषि मेले में मिली ढेरों जानकारी :

संस्थान ने नवीनतम तकनीकों के प्रदर्शन और हितधारकों के बीच परस्पर सीखने को बढ़ावा देने के लिए वार्षिक पूसा कृषि विज्ञान मेला आयोजित किया. इस वर्ष, यह मेला दिनांक 22 फरवरी से 24 फरवरी, 2025 के दौरान आयोजित किया गया था. इस का मुख्य विषय “उन्नत कृषि – विकसित भारत” था. इस मेले में एक लाख से अधिक किसानों और अन्य हितधारकों ने भाग लिया था.

किसानों को मिला सम्मान:
संस्थान ने 41 किसानों को उन के नवाचारों के लिए “आईएआरआई फैलो” और “आईएआरआई इनोवेटिव फार्मर्स” के रूप में सम्मानित किया.

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