उदयपुर: राजस्थान कृषि महाविद्यालय में ‘‘विश्व मृदा दिवस‘‘ कार्यक्रम का आयोजन हुआ. इस मौके पर डा. अजीत कुमार कर्नाटक, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने सेमिनार के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए बताया कि कृषि रसायनों के अत्यधिक प्रयोग से खाद्य पदार्थों में रसायनों के दुष्प्रभाव सामने आ रहे हैं.

अतः उपभोक्ताओं द्वारा ‘‘पेस्टीसाइड रेजीड्यू फ्री भोजन‘‘ या ग्रीन फूड की मांग बढ़ती जा रही है, इस के लिए जैविक खेती पर जोर देने की आवश्यकता है, ताकि रसायनमुक्त खाद्यान्न प्राप्त किया जा सके. साथ ही, मिट्टी का जैविक कार्बन स्तर को भी बढ़ाया जा सके.

देश में 8 प्रकार की मिट्टी पाई जाती है, जिन में अलगअलग प्रकार के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुण होते हैं, जिन के अनुसार उन का उपयोग करना चाहिए. मिट्टी में जैविक कार्बन स्तर 0.2-0.4 फीसदी से बढ़ाने की बहुत आवश्यकता है, ताकि मिट्टी की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में अनुकूल प्रभाव पड़े एवं मिट्टी की उत्पादक क्षमता बढ़ाई जा सके.

डा. एसके बेहरा, प्रधान वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, मृदा रसायन एवं उर्वरता विभाग, भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान, भोपाल (मध्य प्रदेश) ने अपने उद्बोधन में बताया कि देश में विभिन्न वैज्ञानिकों को मिल कर मृदा स्वास्थ्य के उत्तम प्रबंधन पर मिल कर काम करना होगा.

 World Soil Dayयदि हम सही प्रबंधन करते हैं, तो ये जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को भी कम करती है. साथ ही, उन्होंने बताया कि मृदा के कार्बन स्तर पर बनाए रखने की आवश्यकता है, ताकि मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की उचित मात्रा व सूक्ष्म जीवों की संख्या बनी रह सके, जिस से मिट्टी की उर्वरता एवं उत्पादकता क्षमता बनी रह सके.

डा. अरविंद वर्मा, निदेशक अनुसंधान ने अपने उद्बोधन में कहा कि मृदा एक सजीव संघटक है, जिस में असंख्य सूक्ष्म जीवों की क्रियाशीलता हमेशा बनी रहती है. साथ ही, उन्होंने बताया कि मिट्टी में जैविक कार्बन की मात्रा 0.75 फीसदी से अधिक एवं सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या प्रति ग्राम मिट्टी में कम से कम 10 लाख से ऊपर होनी चाहिए.

कार्यक्रम में सीटीएई, अधिष्ठाता, डा. पीके सिंह ने अपने उद्बोधन में मृदा स्वास्थ्य को सहेज कर रखने की अपील की. साथ ही, उन्होंने बताया कि भारत में विभिन्न तरह की मिट्टियां पाई जाती हैं, जिस का प्रयोग उन की गुणवत्ता के आधार पर करने की आवश्यकता है एवं मिट्टी के क्षरण को रोकना काफी जरूरी है.

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