रायसेन : लोक व्यवस्था को बनाए रखने के उद्देश्य से कलक्टर एवं जिला दंडाधिकारी अरविंद दुबे द्वारा पूरे जिले की भौगोलिक सीमा में खेत में खड़े धान, सोयाबीन के डंठलों (नरवाई) में आग लगाने पर तत्काल प्रभाव से दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 144 के तहत प्रतिबंध लगाया गया है. यह प्रतिबंध तत्काल प्रभावशील हो कर आगामी 31 दिसंबर, 2024 की अवधि तक के लिए प्रभावशील रहेगा. इस आदेश का उल्लंघन भादवि की धारा 188 के अंतर्गत दंडनीय होगा.
उल्लेखनीय है कि जिले की राजस्व सीमा में धान, सोयाबीन की फसल की कटाई के बाद अगली फसल के लिए खेत तैयार करने के लिए बहुसंख्यक किसानों द्वारा अपनी सुविधा के लिए खेत में आग लगा कर धान, सोयाबीन के डंठलों को नष्ट कर खेत साफ किया जाता है. आग लगाने से हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है, जिस से पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. इसे नरवाई में आग लगाने की प्रथा के नाम से भी जाना जाता है.
नरवाई में आग लगाना खेती के लिए नुकसानदायक होने के साथ ही पर्यावरण की दृष्टि से भी हानिकारक है. इस के कारण विगत वर्षो में गंभीर अग्नि दुर्घटनाएं घटित हुई हैं और बड़े पैमाने पर सम्पत्ति की हानि हुई है. साथ ही, बढ़ते जल संकट में इस से बढ़ोतरी तो होती ही है. कानून, व्यवसायी के लिए भी विपरीत स्थितियां बन जाती हैं. खेत की आग के अनियंत्रित होने पर जनसम्पत्ति व प्राकृतिक वनस्पति, जीवजंतु आदि नष्ट हो जाते हैं. खेत की मिट्टी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले लाभकारी सूक्ष्म जीवाणु इस से नष्ट होते हैं, जिस से खेत की उर्वराशक्ति भी धीरेधीरे घट रही है और उत्पादन प्रभावित हो रहा है.
नरवाई जलाने से हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है, जिस से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है. यदि फसल अवशेषों, नरवाई को एकत्र कर जैविक खाद जैसे भूनाडेप वर्मी कंपोस्ट आदि बनाने में उपयोग किया जाए, तो यह बहुत जल्दी सड़ कर पोषक तत्वों से भरपूर खाद बना सकते हैं. इस के अतिरिक्त खेत में कल्टीवेटर, रोटावेटर या डिस्क हेरो की सहायता से फसल अवशेषों को भूमि में मिलाने से आने वाली फसलों में जीवांश के रूप में बचत की जा सकती है.