सबौर : निदेशक अनुसंधान, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के तत्वावधान में कुलपति सभागार, बिहार कृषि विश्वविद्यालय में कुलपति डा. डीआर सिंह की अध्यक्षता में तिलहन फसल को केंद्र में रख कर गहन विचार मंथन किया गया. इस बैठक में डा. आरके माथुर, निदेशक, भारतीय तिलहन शोध संस्थान, हैदराबाद मुख्य अतिथ के रूप में मौजूद थे.

इस विचार मंथन संगोष्ठी में बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के निदेशक अनुसंधान डा. एके सिंह, उपनिदेशक अनुसंधान डा. शैलबाला डे, अध्यक्ष, पौधा प्रजनन एवं आनुवंशिकी विभाग डा. पीके सिंह एवं तिलहन अनुसंधान से जुड़े बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के प्रमुख वैज्ञानिकों, जिस में डा. रामबालक प्रसाद निराला, डा. चंदन किशोर, मनोज कुमार, डा. खुशबू चंद्रा, डा. लोकेश्वर रेड्डी प्रत्यक्ष रूप से बैठक में तिलहनी फसलों से संबंधित अनुसंधान कार्यक्रमों में प्रस्तुत किया गया.

बैठक की शुरुआत निदेशक अनुसंधान डा. डीआर सिंह ने संक्षिप्त रूप से बिहार में तिलहन के सभी 9 फसलों जैसे राईसरसों, सोयाबिन, मूंगफली, तिल, तीसी, सूरजमुखी, कुसुम, अरंडी एवं रामतिल (नाइजर) के बिहार में वर्तमान स्थिति एवं भविष्य में इस की संभावनाओं पर प्रकाश डाला. तदोपरांत डा. रामबालक प्रसाद निराला ने समग्र एवं विस्तृत रूप से बिहार में हो रहे सभी तिलहन फसलों की एक रूपरेखा प्रस्तुत की.

विदित हो कि डा. रामबालक प्रसाद निराला तीसी के प्रमुख वैज्ञानिक हैं एवं तिलहन फसलों के अनुसंधान समन्वयक भी हैं.

उन्होंने अपने प्रस्तुति के दरम्यान तिलहन फसल के कृषि हेतु उन की शक्ति, कमजोरी, उपयोगिता एवं समस्या पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला. इसी क्रम में डा. चंदन किशोर, डा. अमरेंद्र ने भी राईसरसों से जुड़े अपने अनुसंधान कार्यक्रमों की प्रस्तुति की. वहीं मूंगफली एवं सोयाबीन से संबंधित कार्यक्रमों को डा. मनोज कुमार, तिल से संबंधित कार्यक्रमों को डा. खुशबू चंद्रा एवं अरंडी से संबंधी कार्यक्रमों को डा. लोकेश्वर रेड्डी ने प्रस्तुत किया.

कुलपति के निर्देश पर विश्वविद्यालय के तिलहन से जुड़े सभी केंद्रों के अनुसंधान वैज्ञानिक भी आभासी रूप से जुड़े हुए थे एवं भारतीय तिलहन शोध संस्थान, हैदराबाद के प्रमुख वैज्ञानिक डा. एएल रत्नाकुमार, डा. जी. सुरेश, डा. मणिमुर्गन एवं डा. लावण्या, डा. दिनेश कुमार, डा. विश्वकर्मा, डा. पुष्पा, डा. जीडी सतीष एवं डा. रमन्ना भी आभाषी रूप से इस बैठक में जुड़े रहे और अंत में उन्होंने अपनी विशिष्ट सलाह बैठक में दी.

डा. आरके माथुर ने अपने विशिष्ट सलाह में विश्वविद्यालय को भारतीय तिलहन शोध संस्थान, हैदराबाद को संयुक्त रूप से अनुसंधान कार्यक्रम चलाने की सलाह दी. साथ ही, बीज प्रतिस्थापन दर को बढ़ाने एवं सभी तिलहन फसलों के उत्पादन क्षेत्रों को बढ़ाने पर जोर दिया.

इसी बीच उन्होंने तिल अनुसंधान के लिए बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर को मुख्य केंद्र के रूप में अंगीकार एवं सूरजमुखी के अनुसंधान के लिए बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर को सहायक केंद्र के रूप में अंगीकार करने का आश्वासन दिया.

किसानों की मांग को देखते हुए डा. फिजा अहमद, निदेशक बीज एवं प्रक्षेत्र, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर द्वारा तिल के सफेद बीज वाले प्रभेद को विकसित करने पर जोर दिया गया.

बैठक का समापन कुलपति डा. डीआर सिंह के समीक्षात्मक टिप्पणी के साथ संपन्न हुआ. कुलपति डा. डीआर सिंह, बिहार सरकार के चतुर्थ कृषि रोड मैप को ध्यान में रखते हुए तिलहन फसल के उत्पादन के महत्व को बताया.

उन्होंने वैज्ञानिकों को निर्देश दिया कि जिलेवार तिलहन फसल की खेती की योजना बनाई जाए और प्रत्येक कृषि विज्ञान केंद्र को तेल कर्षण इकाई को लगाने के लिए कहा. इसी कड़ी में विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा की जा रही अनुसंधान कार्यों की राष्ट्रीय स्तर प्रदान करने के लिए भारतीय तिलहन शोध संस्थान, हैदराबाद के साथ एमओयू पर काम करने को कहा गया.

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