कृषि विज्ञान केंद्र, बगही संत कबीर नगर द्वारा 18वां राष्ट्रीय गाजरघास जागरूकता सप्ताह 16 अगस्त से 22 अगस्त, 2023 तक सफलतापूर्वक मनाया गया.
फसलों को खासा नुकसान पहुंचाने वाली खरपतवार गाजरघास अभियान के अंतर्गत 22 अगस्त, 2023 को कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा स्वामी अभेदानंद सरस्वती इंटर कालेज धोबखरा, संत कबीर नगर के 154 बच्चों को जागरूकता कार्यक्रम में सम्मलित किया गया. साथ ही, गाजरघास पर शपथ ग्रहण भी कराई गई.
3-4 फुट तक ऊंचाई वाले गाजरघास के पौधे का तना रोएंदार और अत्यधिक शाखा वाला होता है. इस की पत्तियां असामान्य रूप से गाजर की पत्ती की तरह होती हैं. इस के फूल का रंग सफेद होता है. प्रत्येक पौधा 1,000 से 50,000 अत्यंत सूक्ष्म बीज पैदा करता है, जो शीघ्र ही जमीन पर गिरने के बाद प्रकाश और अंधकार में नमी पा कर अंकुरित हो जाते हैं.
यह पौधा 3-4 माह में ही अपना जीवनचक्र पूरा कर लेता है और सालभर उगता और फलताफूलता है. यह हर प्रकार के वातावरण में तेजी से वृद्धि करता है. इस का प्रकोप खाद्यान्न फसलों जैसे धान, ज्वार, मक्का, सोयाबीन, मटर, तिल, अरंडी, गन्ना, बाजरा, मूंगफली, सब्जियों एवं उद्यान फसलों में भी देखा गया है.
गाजरघास के बीज बहुत ही सूक्ष्म होते हैं, जो अपनी दो स्पंजी गद्दियों की मदद से हवा और पानी द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से पहुंच जाते हैं.
गाजरघास इनसानों और पशुओं के लिए भी एक गंभीर समस्या है. इस से खाद्यान्न फसल की पैदावार में तकरीबन 40 फीसदी तक की कमी आंकी गई है. इस के पौधे में पाए जाने वाले एक विषाक्त पर्दाथ के कारण फसलों के अंकुरण एवं वृद्धि पर उलटा असर पड़ता है.
दलहनी फसलों में यह खतरपतवार जड़ ग्रंथियों के विकास को प्रभावित करता है और नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीवाणुओं की क्रियाशीलता को भी कम कर देता है. इस के पराग कण बैगन, मिर्च, टमाटर आदि सब्जियों के पौधे पर एकत्रित हो कर उन के परागण अंकुरण एवं फल विन्यास को प्रभावित करते हैं और पत्तियों में क्लोरोफिल की कमी एवं पुष्प शीर्षों में असामान्यता पैदा कर देते हैं.
केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डा. अरविंद कुमार सिंह ने बताया कि गाजरघास में विनाशक गुण है और हर जलवायु मौसम में बढ़ने, फूलनेफलने और पकने की क्षमता, बीज का तुरंत जमाव इस की खतरनाक खरपतवार की विशिष्टता है, जिस से इस का अनवरत फैलाव फसलों व पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा सकता है.
राघवेंद्र विक्रम सिंह, वरिष्ठ वैज्ञानिक, कृषि प्रसार ने बताया कि गाजरघास को नष्ट करने के लिए मैक्सिकन बीटल, जाईगोग्रामा का संरक्षण व संवर्धन करें एवं इस के अलावा किसान इस के अर्क से नाइट्रोजनयुक्त तरल प्राप्त कर के 2 फीसदी की दर से फसल पर छिड़काव करने से नाइट्रोजन की पूर्ति होती है. इस के बचे हुए अवशेष को मिट्टी में मिला कर कार्बन की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है.
केंद्र के वैज्ञानक डा. तरुण कुमार ने बताया कि फूल आने के पहले गाजरघास को खेत में मिलाने व कंपोस्ट बना कर किसान अपने खेत की उपजाऊपन को बढ़ा सकते हैं.
डा. देवेश कुमार ने बताया कि फसल अवशेष प्रबंधन से बच्चों को पुआल न जलाने की जानकारी दी और इस के पराग कणों से मनुष्यों में होने वाली दमा जैसी जानलेवा बीमारी, त्वचा स्पर्श से शरीर में एलर्जी होती है.
विद्यालय के बच्चों को विभिन्न विषयों पर भी जानकारी दी गई. इस मौके पर विद्यालय के प्राचार्य मलय कुमार पांडे एवं अध्यापक नूतन पांडे, महेंद्र कुमार, उदय प्रताप पाल, नवनीत पांडे, वंदना, अनूप कुमार पांडे आदि उपस्थित रहे.