देश में 18वीं लोकसभा चुनाव की गहमागहमी के बीच खेती से जुड़े तमाम सवाल गांवदेहात में मुखर हो रहे हैं. विभिन्न राजनीतिक दलों के चुनाव घोषणापत्रों में एमएसपी की कानूनी गारंटी से ले कर किसानों की फसलों के वाजिब दाम समेत कई मुद्दे शामिल हैं. सभी दल 14 करोड़ से अधिक किसान परिवारों को रिझाने में लगे हैं. चुनाव के पहले और किसान आंदोलन के बीच चौधरी चरण सिंह और कर्पूरी ठाकुर को ‘भारत रत्न’ देने के साथ राजनीति गरमा गई. भाजपा ने किसान वोटों को रिझाने के लिए रालोद के साथ गठबंधन भी किया.

राजनीतिक गहमागहमी के बीच 15 मई को किसान राजनीति के असली चौधरी यानी चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत का जन्मदिन ‘जल, जंगल और जमीन बचाओ दिवस’ के रूप में मनाया गया. आजाद भारत की किसान राजनीति के वे सब से बड़े नायक थे.

आजादी के पहले देश में पिछले सौ सालों में कई किसान आंदोलन हुए. खुद महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, आचार्य नरेंद्र देव, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन, स्वामी सहजानंद और प्रो. एनजी रंगा जैसे दिग्गज किसान आंदोलनों से जुड़े रहे, पर आजादी के बाद तसवीर बदली. कई किसान संगठन बने और कई बड़े नेता उभरे. समय के साथ किसान राजनीति के रंग, तेवर व कलेवर बदल गए.

लेकिन चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत बाकी किसान नेताओं से हमेशा अलग रहे. इसी कारण वे भारत के किसानों के दिलों में स्थायी जगह बनाने में कामयाब रहे. बेबाकी से किसानों की बात रखना और नफानुकसान की परवाह न करना उन की खूबी थी.

चौधरी महेंद्र सिंह से मैं पहली बार साल 1988 में मेरठ कमिश्नरी धरने पर मिला था. बाद में ‘अमर उजाला’ अखबार में आने के बाद मैं लगातार उन के संपर्क में बना रहा. चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत से जुड़ी तमाम ऐतिहासिक और निजी घटनाओं का मैं गवाह भी रहा हूं. ऐसे दौर में उन्होंने किसानों को संगठित किया, जब वास्तव में इस की सब से अधिक जरूरत थी.

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